1
ये जानते हुए भी
कि महज वक्त की बर्बादी है
खेल रहा है मेरा मन
ख्याली पिट्ठुओं से
उस पर सितम ये
कि
मौजूद हैं सब रोकने के माकूल उपाय
कितने इत्मीनान से वक्त से ये दांव लगाया है मैंने ...
2
वक्त में से वक्त को कैसे काटा जाए
जो वक्त से कुछ वक्त मिल जाए
तो कुछ अधूरे ख्वाब , कुछ अनकही चाहतें और एक अदद मुस्कान संग
मैं लिख दूं दास्ताने ज़िन्दगी ..........
3
अक्सर छलते हैं लोग चेहरे बदल - बदल कर
छले जाते हैं लोग हर बार बदला चेहरा देखकर
4
तुम्हें नहीं आना था
तुम नहीं आये
फिर वो
प्यार की हों , तकरार की हों या इंतज़ार की .........
और गुजार देती है दुनिया महज
झाड़ने फटकारने और बुहारने में उसको
ज़िन्दगी के न जाने किस मुकाम पर पहुँच गया हूँ
यूं इश्क का मौसम बदलते देखा है अक्सर
यूं ख्वाब को निर्झर झरते देखा है अक्सर
मंजिलों से पहले ही सफ़र बदल जाते हैं
कैसी दुनिया की गज़ब कहानी है दोस्तों
आइनों को देखते ही शक्ल बदल जाते हैं
जो खुद से ही खिलाफत कर बैठे
तेरी यादों पर पहरे बिठाकर
मोहब्बत से अदावत कर बैठे
जुड़ने से पहले जुड़ जाए जो
वो है
आस्था अनास्था , विश्वास अविश्वास से परे ..........एक स्त्री
उजालों के हिसाब कैसे चुकता करें
पहचान के चिन्हों से परे
बस तेरे चेहरे का कहर चाहता हूँ
देखें कब होगी दुआ-ए-इश्क कबूल
कि बस तुझ तक ही बसर चाहता हूँ
गोया इस जहान में मेरा होना, होना न था
ये जानते हुए भी
कि महज वक्त की बर्बादी है
खेल रहा है मेरा मन
ख्याली पिट्ठुओं से
उस पर सितम ये
कि
मौजूद हैं सब रोकने के माकूल उपाय
कितने इत्मीनान से वक्त से ये दांव लगाया है मैंने ...
2
वक्त में से वक्त को कैसे काटा जाए
जो वक्त से कुछ वक्त मिल जाए
तो कुछ अधूरे ख्वाब , कुछ अनकही चाहतें और एक अदद मुस्कान संग
मैं लिख दूं दास्ताने ज़िन्दगी ..........
3
अक्सर छलते हैं लोग चेहरे बदल - बदल कर
छले जाते हैं लोग हर बार बदला चेहरा देखकर
4
चलो
तुम्हें नहीं आना था
तुम नहीं आये
और
मेरी उम्र के बाल पकते रहे
रस्में तो अदा करनी ही पड़ती हैं
फिर वो
प्यार की हों , तकरार की हों या इंतज़ार की .........
5
ज़िन्दगी रोज देती है एक नया दिन सबको
और गुजार देती है दुनिया महज
झाड़ने फटकारने और बुहारने में उसको
6
आजकल खुद से भी मिलूँ तो अजनबी सा लगता हूँ
ज़िन्दगी के न जाने किस मुकाम पर पहुँच गया हूँ
7
छन्न से टूट जाता है जैसे कोई कांच
यूं इश्क का मौसम बदलते देखा है अक्सर
बिखर जाते हैं आँधियों से जैसे दरख्त भी
यूं ख्वाब को निर्झर झरते देखा है अक्सर
8
जिस राह भी चलूँ रास्ते ख़त्म हो जाते हैं
मंजिलों से पहले ही सफ़र बदल जाते हैं
कैसी दुनिया की गज़ब कहानी है दोस्तों
आइनों को देखते ही शक्ल बदल जाते हैं
9
मुझसा खाली न मिला होगा कोई
जो खुद से ही खिलाफत कर बैठे
तेरी यादों पर पहरे बिठाकर
मोहब्बत से अदावत कर बैठे
10
टूटने से पहले टूट जाए जो
जुड़ने से पहले जुड़ जाए जो
वो है
आस्था अनास्था , विश्वास अविश्वास से परे ..........एक स्त्री
11
आसान था अंधेरों से लड़ना मगर
उजालों के हिसाब कैसे चुकता करें
12
मैंने देखे चेहरे तमाम
पहचान के चिन्हों से परे
अजब तबियत का गुलाम सारा शहर हुआ है
13
कि इक खालिस शहर चाहता हूँ
बस तेरे चेहरे का कहर चाहता हूँ
देखें कब होगी दुआ-ए-इश्क कबूल
कि बस तुझ तक ही बसर चाहता हूँ
मुझे जल्दी कुछ नहीं मिलता ये नियति है मेरी इसलिए आदत है मुझे
इंतज़ार की ......
14
देख कर कुछ इस तरह मुंह मोड़ा उसने
गोया इस जहान में मेरा होना, होना न था
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (04-04-2015) को "दायरे यादों के" { चर्चा - 1937 } पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
बहुत ही सुंदर
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