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गुरुवार, 18 जून 2015

ओ काले गुलाब ........




यूँ तो अनेक रंगी होना 
तुम्हारा सौन्दर्य है 
उसमे लाल रंग प्रेम का प्रतीक कहा गया 
मगर कभी देखा है खुद को श्याम रंग में 
देखना जरा 
लाल से ज्यादा श्याम रंग में दिल को बहुत लुभाते हो

वैसे पता है न 
कृष्ण भी काले ही थे ........और तुम भी

और सुनो 
नज़र का टीका भी काला ही होता है 
और आँख का काजल भी 
गाल पर तिल भी 
केशों का रंग भी 
और श्याम घन भी

जरूरी तो नहीं न प्रतीक बन सिमटे रहना 
कुछ पंक्तियों में 
कुछ शब्दों में 
या कुछ अक्सों में

सौन्दर्य के प्रतिमान तो
श्याम रंग में ही ज्यादा निखर कर आते हैं 
बस देखने वाले की नज़र में मोतियाबिंद न हो

रहस्यवाद की असीम परतों में छुपे होने पर भी 
अपने सौन्दर्य से रिझाना कोई तुमसे सीखे 
ओ काले गुलाब ........

( अभी इस काले गुलाब को देख उपजा ख्याल )

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुंदर लिखा है दी ..हमेशा की तरह

    जवाब देंहटाएं
  2. गुलाब वह भी काला
    नयें प्रतीक को लेकर लिखी बेहद प्रभावी रचना
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई

    आग्रह है-- होना तो कुछ चाहिए
    आप मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

    जवाब देंहटाएं

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