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रविवार, 29 नवंबर 2015

लव ब्लॉसम्स हेयर जानां ...........

 
 
प्यार महकता है
मोहब्बत की सौंधी सौंधी महक
इश्क की खुशबू
कुछ भी कहूँ
बात तो एक ही है
बस जरूरत है तो इतनी सी
वो तुम तक पहुँचे

वो ' तुम '
कोई भी हो सकते हो
न मैंने नहीं देखा तुम्हें
नहीं जानती कौन हो
कहाँ हो , कैसे हो
बस महकते हो मुझमे साँसों से
चहकते हो , बहकते हो
और मैं बेबस सी
तुम्हारी अनजानी अनदेखी मोहब्बत में गिरफ्तार
युगों से प्रतीक्षा की दहलीज पर
सजदा किये बैठी हूँ
एक कभी न बुझने वाली चिर परिचित प्यास का घूँट पीकर

जबकि जानती हूँ
तुम नहीं हो कहीं
न यहाँ न कहीं और इस पूरे ब्रह्माण्ड में
सिवाय मेरे अनचीन्हे ख्याल की पुआल पर बैठे एक जोगी की तरह

सदायें बिना पंखों की वो पंछी हैं
जिन्हें उड़ने को न आकाश चाहिए
और न ही धड़कने को दिल
पहुँच ही जाती हैं मंजिल तक

जाने क्यों फिर भी कहने को दिल करता है
मृग की नाभि में कस्तूरी सा
लव ब्लॉसम्स हेयर जानां ...........

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रेम की अनुपम अनुभूति .... बहुत सुन्दर

    जवाब देंहटाएं
  2. जय मां हाटेशवरी....
    आप ने लिखा...
    कुठ लोगों ने ही पढ़ा...
    हमारा प्रयास है कि इसे सभी पढ़े...
    इस लिये आप की ये खूबसूरत रचना....
    दिनांक 01/12/2015 को रचना के महत्वपूर्ण अंश के साथ....
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की जा रही है...
    इस हलचल में आप भी सादर आमंत्रित हैं...
    टिप्पणियों के माध्यम से आप के सुझावों का स्वागत है....
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    कुलदीप ठाकुर...

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगवार (01-12-2015) को "वाणी का संधान" (चर्चा अंक-2177) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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