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बुधवार, 30 दिसंबर 2015

बेमुरव्वत!

आने वाला आता है जाने वाला जाता है
दस्तूर दुनिया का हर कोई निभाता है

कोई खार बन तल्ख़ ज़ख्म दे जाता है
कोई यादों में गुलाब बन खिल जाता है

बेमुरव्वत! इक फाँस सा सीने में धंसा जाता है
उम्र भर का लाइलाज दर्द जो दिए जाता है

गिले शिकवों का शमशानी शहर बना जाता है
जब भी यादों में बिन बुलाये चला आता है

यही जाते साल को नज़राना देने को जी चाहता है
फिर न किसी मोड़ पर तू ज़िन्दगी के नज़र आना

मुझे मुझसे चुरा लिया बेखुदी में डुबा दिया
अब किसी पर न ऐतबार करने को जी चाहता है


5 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 31-12-2015 को चर्चा मंच पर अलविदा - 2015 { चर्चा - 2207 } में दिया जाएगा । नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाओं के साथ
    धन्यवाद

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  2. बेहतरीन रचना और उम्दा प्रस्तुति....आपको सपरिवार नववर्ष की शुभकामनाएं...HAPPY NEW YEAR 2016...
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  3. नये साल पर ऐसी उदासी और गुस्सा न न न। फिर भी अच्छी लगी ।

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  4. नये वर्ष की अनेकानेक शुभ कामनायें।

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  5. ओह , इतनी भी निराशा क्यों ? आने वाला समय तो आपका है :)

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