मुझे गुजरना था
मैं गुजर गयी
वक्त की नुकीली पगडण्डी से
तुम्हें ठहरना था
तुम ठहर गए
रेत के ठहरे सागर से
मैं गुजर गयी
वक्त की नुकीली पगडण्डी से
तुम्हें ठहरना था
तुम ठहर गए
रेत के ठहरे सागर से
अब
हाशियों के चरमराते पुलों से
नहीं गुजरती
कोई रेल धडधडाती सी
क्योंकि
सूखे समन्दरों से मोहब्बत के ताजमहल नहीं बना करते ...
डिसक्लेमर :
हाशियों के चरमराते पुलों से
नहीं गुजरती
कोई रेल धडधडाती सी
क्योंकि
सूखे समन्दरों से मोहब्बत के ताजमहल नहीं बना करते ...
डिसक्लेमर :
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©वन्दना गुप्ता vandana gupta इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
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