गोली और गाली
जो बन चुके हैं पर्यायवाची
इस अंधे युग की बनकर सौगात
लगाते हैं ठिकाने
बडबोली जुबान को
तुम , तुम्हारी जुबान और तुम्हारी कलम
रहन है सत्ता की
नहीं बर्दाश्त सत्ता को कलम का अनायास चल जाना
बन्दूक की निकली गोली सा
गर करोगे विद्रोह तो गोली मिलेगी
और मरने के बाद गालियों के फूलों से सजेगी तुम्हारी राख
आमूलचूल परिवर्तन आ चुका है हवाओं में
अब नहीं बहा करती हवा
पूरब से पश्चिम या उत्तर से दक्षिण
अब हवाएँ बहती हैं ऊपर से नीचे
आग उगलती हुईं, झुलसाती हुईं , मिटाती हुईं
ये नया युग है
नाम है अँधा युग
यहाँ जरूरत है ऐसे ताबेदारों की
जो फूँक से पहाड़ उड़ा दें
जो दस्तावेजों से हकीकत मिटा दें
जो देशभक्त को गद्दार बता दें
आओ , नवाओ सिर
कि कलम हो जाओ उससे पहले...
तुम थोथे चने हो
निराश हताश जंगल के बिखरे तिनके
कोई संगठित बुहारी नहीं
जो बुहार ले कूड़े करकट के ढेर को
सांत्वना के शब्द ख़त्म हो चुके हैं शब्दकोशों से
अब तुम तय करो अपना भविष्य
प्रतिमाएं स्थापित करने का युग है ये
शब्दों के कोड़ों से अक्सर उभर आते हैं नीले निशान
बच सको तो बच के रहना
ये वक्त न प्रतिशोध का है न प्रतिरोध का
दानव मुँह फाड़े खड़ा है
दाढ़ों में फँसने को हो जाओ सज्ज
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©वन्दना गुप्ता vandana gupta
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-09-2017) को "चमन का सिंगार करना चाहिए" (चर्चा अंक 2723) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
विचारोत्तेजक रचना
जवाब देंहटाएंबहुत जरूरी है लिखना। सटीक।
जवाब देंहटाएंwaah bahut khoob avismarneey rachna
जवाब देंहटाएंhttp://www.pushpendradwivedi.com/%E0%A5%9E%E0%A4%BF%E0%A5%9B%E0%A4%BE%E0%A4%93%E0%A4%82-%E0%A4%AE%E0%A5%87%E0%A4%82-%E0%A4%9C%E0%A5%8B-%E0%A4%AE%E0%A5%8B%E0%A4%B9%E0%A4%AC%E0%A5%8D%E0%A4%AC%E0%A4%A4-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AA/