दो जून की रोटी के लिए
एक जून को खुला देश
और सब आत्मनिर्भर हो गए
इसके बाद न प्रश्न हैं न उत्तर
ये है महिमा तंत्र की
जान सको तो जान लो ...अपनी परतंत्रता
नहीं माने तो क्या होगा ?
छोडो, क्या अब तक कुछ कर पाए ...जाने दो
तुम पेट भरो और मरो
बस यहीं तक है तुम्हारी उपादेयता
तुम्हें जो चाहिए तुम्हें मिला
उन्हें जो चाहिए उन्हें मिला
फिर कैसा गिला?
आप दोनों मिल मनाएं होली और दिवाली
बस संकट मुक्ति के यही हैं अंतिम उपाय
वक्त के हिसाब अब शापमुक्त हैं
दिन और रात अब कोरोनाग्रस्त हैं
और जीवन ...आडम्बरयुक्त
ऐसे देश में और ऐसे परिवेश में
वक्त की नागिनें नहीं डंसा करतीं
राजनीति की चौसर पर
धर्मपरायण शांतिपूर्ण देश में
महामारियां अवसर होती हैं अवसाद नहीं ...
फिर क्यों गाते हो शोकगीत
सब अच्छा है ...डम डम डिगा डिगा
आओ गायें ताल से ताल मिला
करें नृत्य
कि मृत्यु का उत्सव भी ज़िन्दगी की तरह होना चाहिए
तुम कल भी नगण्य थे, आज भी हो और कल भी रहोगे
फिर करो स्वागत निर्णय का
दो जून की रोटी के लिए एक जून को खुले देश का
ये मृत्यु का लॉक डाउन है
चढ़ा लो प्रत्यंचा गांडीव पर
क्योंकि
शिकार भी तुम हो और शिकारी भी
इति महाभारत कथा ...
एक जून को खुला देश
और सब आत्मनिर्भर हो गए
इसके बाद न प्रश्न हैं न उत्तर
ये है महिमा तंत्र की
जान सको तो जान लो ...अपनी परतंत्रता
नहीं माने तो क्या होगा ?
छोडो, क्या अब तक कुछ कर पाए ...जाने दो
तुम पेट भरो और मरो
बस यहीं तक है तुम्हारी उपादेयता
तुम्हें जो चाहिए तुम्हें मिला
उन्हें जो चाहिए उन्हें मिला
फिर कैसा गिला?
आप दोनों मिल मनाएं होली और दिवाली
बस संकट मुक्ति के यही हैं अंतिम उपाय
वक्त के हिसाब अब शापमुक्त हैं
दिन और रात अब कोरोनाग्रस्त हैं
और जीवन ...आडम्बरयुक्त
ऐसे देश में और ऐसे परिवेश में
वक्त की नागिनें नहीं डंसा करतीं
राजनीति की चौसर पर
धर्मपरायण शांतिपूर्ण देश में
महामारियां अवसर होती हैं अवसाद नहीं ...
फिर क्यों गाते हो शोकगीत
सब अच्छा है ...डम डम डिगा डिगा
आओ गायें ताल से ताल मिला
करें नृत्य
कि मृत्यु का उत्सव भी ज़िन्दगी की तरह होना चाहिए
तुम कल भी नगण्य थे, आज भी हो और कल भी रहोगे
फिर करो स्वागत निर्णय का
दो जून की रोटी के लिए एक जून को खुले देश का
ये मृत्यु का लॉक डाउन है
चढ़ा लो प्रत्यंचा गांडीव पर
क्योंकि
शिकार भी तुम हो और शिकारी भी
इति महाभारत कथा ...
आम आदमी शुरू से ही इसी हालात में है ... रहेगा ...
जवाब देंहटाएंअपने वोट की क़ीमत बिकी हुई थी ... रहेगी ... एक ढकोसला है प्रजातंत्र ...
जवाब देंहटाएंराजनीति की चौसर पर
धर्मपरायण शांतिपूर्ण देश में
महामारियां अवसर होती हैं अवसाद नहीं ...
यथार्थ को दर्शाती हुई ,समय की जरूरतों को समझाती हुई ,अति उत्तम रचना ,नमस्कार
समसामयिक कटाक्ष करती रचना ।
जवाब देंहटाएंशिकार भी तुम और शिकारी भी ---
जवाब देंहटाएंसच कहा !
राजनीति से इतर देखा जाये तो कोई रास्ता भी नहीं.... शिकार और शिकारी हर युग की पहचान रहे हैं. अब खुद को तय करना है कि उसे क्या बनना है.
जवाब देंहटाएंयह महामारी अवसर है। किसके लिए? यही तो सोचना समझना है। हज़ार लाख करोड़ की बात है, दो जून रोटी के लिए मर रहे हैं, उसकी फ़िक्र किसे? सोचने के लिए प्रेरित करती रचना।
जवाब देंहटाएंराजनीति का चौसर
जवाब देंहटाएंआज की स्थिति पर प्रहार करती रचना बढ़िया