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सोमवार, 22 मार्च 2021

पानी आँख का सूख जाए

 पानी आँख का सूख जाए 

पानी जिस्म का सूख जाए 
पानी संबंधों के मध्य भी सूख जाए 
नहीं फर्क पड़ेगा सृष्टि को 

जहाँ जल ही जीवन हो 
वहाँ पानी के सूखने से 
समाप्त हो जाती हैं प्रजातियाँ 
समाप्त हो जाती हैं सभ्यताएं 

जैसे जीवन के लिए साँसों का होना जरूरी है 
जैसे जीवन के लिए भोजन जरूरी है 
वैसे ही जीवन के लिए पानी जरूरी है 

अगला विश्व युद्ध पानी के लिए हो 
उससे पहले आवश्यक है 
जागृत होकर एक एक बूँद संजोना 

पानी केवल जीवन ही नहीं
वरदान है 
अमृत है 
धरोहर है 
संजो सको तो संजो लो 
वो वक्त आने से पहले 
जहाँ अवशेषों से होगी निशानदेही अस्तित्व की 
और कहेगा कोई पुरातत्वविद फिर किसी युग में 
हाँ, जिंदा थी कभी यहाँ भी एक सभ्यता 
जो जान न सकी विकास के मायने 
अपना ही दोहन स्वयं करती रही 
आँख पर पट्टी बाँध चलती रही 

क्या आवश्यक है हर युग में गांधारी का जन्म?

गुरुवार, 11 मार्च 2021

जरूरी तो नहीं मुकम्मल होना हर ज़िन्दगी का…………

पास रहने पर
साथ रहने पर
फिर भी इक
उम्र बीतने पर
एक दूजे के
मन को ना जान पाना
आह ! कितना सालता होगा ना वो दर्द
जो ना कह पाये ना सह पाये


ज़िन्दगी के तमाशे में तमाशबीन बनकर रह जाना
जैसे नींद से उम्र भर ना जागना और ज़िन्दगी का मुकम्मल हो जाना
जैसे जागने वाली रातों के ख्वाब संजोना मगर दिन का ना ढलना
जैसे चाशनी को जुबां पर रखना मगर स्वाद का ना पता चलना


अधूरी हसरतें अधूरे ख्वाब अधूरी ज़िन्दगी और स्वप्न टूट जाये
खुली किताब हो और अक्षर धुंधला जायें ज़िन्दगी के मोतियाबिंद से
जीने के बहानों में इज़ाफ़ा हो और ज़िन्दगी ही हाथ से छूट जाये
बस कुछ यूँ तय कर लिया एक अनचाहा, अनमाँगा सफ़र हमने
जरूरी तो नहीं मुकम्मल होना हर ज़िन्दगी का…………

शुक्रवार, 5 मार्च 2021

यत्र तत्र सर्वत्र ...

हम सभी शेर हैं बधाई देने में फिर वो जन्मदिन हो शादी की सालगिरह या कोई उपलब्धि ...

इसी तरह निभाते हैं हम
श्रद्धांजलियों का सिलसिला
करके नमन या कहकर बेहद दुखद
कर ही देते हैं प्रगट अपनी संवेदनाएं ....
बस नहीं हो पाते इतने उदारवादी
किसी भी अच्छी
कविता, कहानी या पोस्ट पर ...
हाँ होते हैं उदारवादी
किसी भी कंट्रोवर्शल पोस्ट
या महिला के फोटो पर
शायद यही है वास्तविक चरित्र
जहाँ हम उगल देते हैं
अपनी कुंठित सोच
और हो जाते हैं निश्चिन्त
करके दुसरे की नींद हराम
बस इतना सा है हमारे होने का अभिप्राय
कि पहचान के लिजलिजे कीड़े कुलबुलायें उससे पहले जरूरी हैं ऐसे घात प्रतिघात ...
ये शोर का समय है
और प्रतिरोध जरूरी है
चुप्पी साध के
जबकि जरूरी चीजों को
एक तरफ करने का इससे बेहतर विकल्प
भला और क्या होगा
जरूरी है हमारी तुच्छ मानसिकता का प्रसार
छोटी सोच सहायक है
हमारे मानसिक सुकून के लिए
बस इसलिए ही फैले हैं हम
यत्र तत्र सर्वत्र ...

सोमवार, 1 मार्च 2021

दस्तकों से ऐतराज नहीं

 मुझे दस्तकों से ऐतराज नहीं

यहाँ अपनी कोई आवाज़ नहीं
ये किस दौर में जीते हैं
जहाँ आज़ादी का कोई हिसाब नहीं
चलो ओढ़ लें नकाब
चलो बाँध लें जुबान
कि
ये दौर-ए बेहिसाब है
यहाँ किसी का कोई खैरख्वाह नहीं
दाँत अमृतांजन से मांजो या कॉलगेट से
साँसों पे लगे पहरों पर
तुम्हारा कोई अख्तियार नहीं
आज के दौर का यही है बस एकमात्र गणित
मूक होना ही है निर्विकल्प समाधि का प्रतीक
तो
शोर देशद्रोह है , राष्ट्रद्रोह है
हाथ ताली के लिए
मुँह खाने के लिए
सिर झुकाने के लिए
इससे आगे कोई रेखा लांघना नहीं
कि
सीमा रेखा के पार सीता का निष्कासन ही है अंतिम विकल्प...