1
कभी कभी मन किसी ठौर ठहरता नहीं
न जाने नामुराद क्या चाहता है
चुप्पी उदासी बेचैनी का छोर पकड़ आता नहीं
अब किस लट को बनाऊँ हिंडोला और भरूँ पींग
बिन पिया मिलन सखी कैसी तीज?
2
न जाने कहाँ गुम हो गयीं
मेरे अन्दर की संवेदनाएं
सुना था
सावन में ठूंठ भी हरे हो जाते हैं
और आज है हरियाली तीज
3
चूड़ी पायल कंगना जब भी छनके
तुम थे संग साथ
लहरिया चुनरी लहरा उठती थी
अब हरित क्रांति के बीज कहाँ से लाऊँ?
4
हरियल तोता ही नहीं होता
हरियल सावन ही नहीं होता
मन भी होता है हरियल
जानते हो न
कुछ उदासियों के विकल्प नहीं होते
5
सूखे सावन
रूखे मन
भूखे तन
से नहीं लिखी जा सकती कोई नयी इबारत
जब हर घर में घुटी इक चीत्कार हो
ये सावन चाहे जितना बरसे
कुछ आँगन गीले न कर पायेगा - इस बरस
6
ख्यालों की बदली
रिमझिम बरसे
सावनी गीत गुनगुनाये
हिंडोले आसमान से बतियाएं
जब हर चेहरा खिलखिलाए
तभी हरियाली होती है तीज
मगर इस बार
रूह का आँगन है कि भीगता ही नहीं
7
हरियाली तीज का कोरस है ये
जहाँ पीड़ा है
प्रेम है
और सूनी आँखों में ठहरा पतझड़
अब किस बुहारी से बुहारूं आँगन
सप्तपदी का अंतिम उतार है ये ...
पीड़ा शब्दहीन होती है बस पीड़ा की चंद फुहारों में भीगकर ही जानी जा सकती है किसी की मनःस्थिति
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १३ अगस्त २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
बिरहा को सुंदर शब्द दिए | सुंदर रचना |
जवाब देंहटाएंवाकई , कुछ आँगन तो सूखे ही रह जाएँगे ।
जवाब देंहटाएंबहुत संवेदनशील क्षणिकाएँ ।
और सूनी आँखों में ठहरा पतझड़
जवाब देंहटाएंअब किस बुहारी से बुहारूं आँगन
सप्तपदी का अंतिम उतार है ये ...गहन सृजन।
कुछ उदासियों के विकल्प नहीं होते
जवाब देंहटाएंबहुत सटीक सुन्दर...
लाजवाब सृजन
वाह!!!
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