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गुरुवार, 8 फ़रवरी 2024

जो मेरे अन्दर से गुजरता है

 

जाने कौन है वो
जो मेरे अन्दर से गुजरता है 

थरथरायी नब्ज़ सा खामोश रहता है 
मैं उसे पकड़ नहीं सकती 
छू नहीं सकती 
एक आखेटक सा 
शिकार मेरा करता है 

जाने कौन है वो 
जो मेरे अन्दर से गुजरता है 
कभी बेबसी बन उमड़ता है 
कभी बेचैनी सा घुमड़ता है 
न शब्द उसे बाँध पाते हैं 
न अर्थों तक मैं पहुँच पाती हूँ 
जाने कौन सा व्याकरण वो रचता है 

जाने कौन है वो 
जो मेरे अन्दर से गुजरता है 
मुझे मुझसे अलग कर देता है 
न किसी ख्याल में अंटता है 
न किसी जुबान में ठहरता है 
किसी टूटे स्वप्न की किरच सा 
बस हर पल चुभा करता है 

जाने कौन है वो 
जो मेरे अन्दर से गुजरता है 
न मेरी धडकनों में धड़कता है 
न मेरी श्वासों में अटकता है 
प्राण मेरे लेकर मुझे 
बस मृत घोषित करता है 

जाने कौन है वो 
जो मेरे अन्दर से गुजरता है 
नामुराद अश्क बनकर भी न ढलकता है ...

4 टिप्‍पणियां:

  1. मर्म छूती भावपूर्ण अभिव्यक्ति ....उदास और बेचैन मन के भाव उकेर दिए आपने।
    सादर।
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ९ फरवरी २०२४ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  2. वह एक छाया ही है मेरी जो झट से गुजर जाती है
    कभी जीत की ख़ुशी कभी हार का दर्द लेके आती है
    सुंदर सृजन

    जवाब देंहटाएं
  3. काफी साल हो गये.. वन्दना जी...

    जवाब देंहटाएं

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