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शुक्रवार, 12 दिसंबर 2008

आहटों से मुलाक़ात न करो
आहटें तो सुनाई देती हैं सिर्फ़ दूर से
खामोशियों ने छुपा रखा है हर आहट को अपने में
खामोशियों में ही सुन सकते हैं आहटों को
मगर हर कोई नही
आहटों की बात है बहुत प्यारी
खामोशियों में ही बात करो
खामोशी में ही खामोशी से मुलाक़ात करो
ज़िन्दगी तुम्हें आहटों से दूर
खामोशियों के समीप मिल जायेगी

2 टिप्‍पणियां:

  1. खामोशी में ही खामोशी से मुलाक़ात करो

    dil ki baat hai jo shabdo mein utar aayi hai ..


    regards

    vijay

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  2. बहुत सुन्दर रचना है।बधाई।

    आहटों से मुलाक़ात न करो
    आहटें तो सुनाई देती हैं सिर्फ़ दूर से
    खामोशियों ने छुपा रखा है हर आहट को अपने में
    खामोशियों में ही सुन सकते हैं आहटों को

    जवाब देंहटाएं

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