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शुक्रवार, 30 जनवरी 2009

क्यूँ ऐसा होता है

भावुक मन की भावुक बातें भावुक दिल ही समझता है
हर भावुक मन में इक भावुक दिल धड़कता है



नारी ह्रदय की पीड़ा को
जब नारी ह्रदय भी
नही समझता है
हाय! ये कैसे दंश है
जो हर पल दिल में सिसकता है
पुरूष ह्रदय को कठोर कहने वालों
क्या तुम्हारा ह्रदय तड़पता है
नारी क्यूँ नारी की तड़प को
समझ नही पाती है
क्या वो तपिश उसने नही सही थी
हर पल हर नारी जब
उन्ही हालत से गुजरी हो
फिर कैसे नारी होकर
नारी का दर्द नही समझती है
ये कैसे नारी रूप है
ये कैसे नारी ह्रदय है
जो नारी के लिए न रोता है
नारी मन होकर भी
नारी का दुश्मन बन
नारी को ही तडपता है
फिर कहो कैसे
नारी ह्रदय को
कोमल ह्रदय मानें
ये तो पुरूष की
कठोरता से भी
कठोर बन जाता है
जब पुरूष नारी के
उत्थान में साथ हो सकता है
उसके दर्द को समझ सकता है
फिर क्यूँ
नारी ही नारी की नही बन पाती है

6 टिप्‍पणियां:

  1. उल्लेखनीय प्रविष्टि। धन्यवाद ।

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  2. vandana ji , bahut achai kavita ,

    in fact naariyon ki bhaavnao ko aapne achi tarah se ujagar kiya hai .

    badhai

    जवाब देंहटाएं
  3. जब पुरूष नारी के
    उत्थान में साथ हो सकता है
    उसके दर्द को समझ सकता है
    फिर क्यूँ
    नारी ही नारी की नही बन पाती है
    बहुत सच्ची बात लिखी है आपने...सहज शब्दों में नारी मन की पीड़ा को खूब उजागर किया है आपने...
    नीरज

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