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मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

कोई तो कारण रहा होगा

क्यूँ तेरी याद फिर आई है
लगता है
तुमने मुझे पुकारा है
किस दर्द ने फिर दस्तक दी है
तभी तो
हूक मेरे दिल में भी उठी है
तेरे गम से जुदा
मेरा दर्द कब था
तेरी इक आह पर
दर्द मेरा सिसकता है
लगता है
फिर कोई ज़ख्म उधड गया है
तभी तो
तेरी इक सिसकी पर
रूह मेरी कसमसाई है
कोई तो कारण रहा होगा
यूँ ही तो तेरी याद नही आई है

13 टिप्‍पणियां:

  1. छोटी बहन वन्दना!
    वियोग श्रृंगार लिखने में आपका जवाब नही है।
    बहुत बढ़िया लिखा है।

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  2. तेरी इक सिसकी पर
    रूह मेरी कसमसाई है
    कोई तो कारण रहा होगा
    यूँ ही तो तेरी याद नही आई है

    बहुत सुन्दर लिखा है।
    मान गये वन्दना जी!
    आप वाकई में दिल से लिखती है।
    बधाई!

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  3. दर्द की दस्तकें ....तुमने पुकारा है..यूँ ही तेरी याद नहीं आई है,मन तक ये दस्तकें चली आयीं

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  4. कोई तो कारण रहा होगा
    यूँ ही तो तेरी याद नही आई है
    जरूर कोई कारण रहा होगा. याद यूँ ही नही आती.
    बहुत खूब
    बेहतरीन

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  5. वाह क्या खूब एहसास को बयाँ किया है

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  6. अपने प्रिय को स्मरण करते हुए आपने यादों के चिराग ख़ूबसूरती से जलाए हैं।

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  7. सच कहाँ आपने यूं ही तेरी याद नहीं आयी। बहुत ही उम्दा अभिव्यक्ति

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  8. कोई तो कारण रहा होगा............

    मन की तरंगों की प्रतिबद्धता दर्शाती बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना.

    बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  9. बहुत ही गहरे भाव लिये हुये है रचना .....बधाई!

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  10. बढ़ा दो अपनी लौ
    कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,

    इससे पहले कि फकफका कर
    बुझ जाए ये रिश्ता
    आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
    दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
    ओम आर्य

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  11. कहते है प्रेम, विरह और इससे जुडी सारी उमन्गे और वेदनाये ईश्वर तय करता है, तभी तो सच्चा प्रेम आत्माओ से महसूस किया जाता है, एक सच्चा प्रेमी अपनी प्रियतमा के मनोभावो को बिना कहे जान जाता है, पहचान जाता है, उनका सम्बन्ध किसी तरह दैहिक ना होकर आत्माओ से होता है और आत्मिक सम्बन्ध अस्थायी या क्षणिक नही होते यह तो जन्म-जन्मान्तर तक कही ना कही, किसी ना किसी रूप मे उनका मिलन कराता ही है,

    कविता के भाव बहुत कुछ यही दर्शाते प्रतीत हो रहे है.

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