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गुरुवार, 7 जनवरी 2010

कुछ ख्याल

पति होने का धर्म
उसने कुछ ऐसे निभाया
इक हँसते , मुस्कुराते
ज़िन्दगी की उमंगों से
भरपूर गुल को
निर्जीव, बेजान बनाया


तू
तेरा ख्याल
और
तेरी ज़िन्दगी
सब तेरा
इसमें
'मैं ' कहाँ हूँ ?


जो दिखाई ना दे
वो अश्क
जो सुनाई ना दे
वो शब्द
और दोनों का दर्द
कभी झांकना
उनके आईने में
वहां जलते हुए
रेगिस्तान मिलेंगे


रोज चूर -चूर होना
और फिर जुड़ जाना
ए दिल-ए-नादाँ
ये फितरत कहाँ से पाई ?


कोई भाग सकता है सबसे
मगर नही भाग सकता खुदी से


ख्वाहिशों के बिस्तर पर
करवट बदलती रात
भोर की पहली किरण के साथ
दम तोड़ जाती है

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब !आख़िरी पंक्तियाँ अति सुन्दर !

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  2. "तू
    तेरा ख्याल
    और
    तेरी ज़िन्दगी
    सब तेरा
    इसमें
    'मैं ' कहाँ हूँ ?"

    यही तो सब लोग खोजने में लगे हैं!
    है अपरम्पार प्रभो तुम्हारी महिमा!

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  3. सभी ख्याल बहुत सुन्दर है ..एक से बढ़ कर एक ..

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  4. just speachless ji..baad me phir aaunga kuch kahne ke liye ..abhi to maun hoon

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  5. तू
    तेरा ख्याल
    और
    तेरी ज़िन्दगी
    सब तेरा
    इसमें
    'मैं ' कहाँ हूँ ..

    सच है कभी कभी इंसान अपनी पहचान खो देता है किसी दूसरे के अक्स में ........ खुद को ढूँढती हुई बेहतरीन रचना .......

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  6. इसमें ’मैं’कहां हूं

    सुंदर भाव

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  7. ख्वाहिशों के बिस्तर पर
    करवट बदलती रात
    भोर की पहली किरण के साथ
    दम तोड़ जाती है
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।

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  8. तू
    तेरा ख्‍याल
    और
    तेरी जिंदगी
    सब तेरा
    इसमें
    मैं कहां हूं

    बहुत सुंदर
    रचना
    मन को छू गयीं

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  9. वो ...उसका खयाल ...उसकी जिंदगी ....आप भी तो शामिल रही होंगी उसमे ही
    इतनी निराशा उदासी क्यों ...प्यार समर्पण की चाह हमेशा दूसरे से क्यों ....
    टटोले अपना दिल .....!!

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  10. कोई भाग सकता है सबसे
    मगर नही भाग सकता खुदी से


    ख्वाहिशों के बिस्तर पर
    करवट बदलती रात
    भोर की पहली किरण के साथ
    दम तोड़ जाती है...

    बहुत सुंदर कविता.....आखिरी पंक्तियों ने दिल को छू लिया.....

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  11. कोई भाग सकता है सबसे
    मगर नही भाग सकता खुदी से
    खुदी से कौन भागा है भला
    बहुत सुन्दर

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  12. सच्चे अहसासों से लबरेज़ कविता,बहुत सुन्दर बन पड़ी है

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  13. आखि‍री चार पंक्‍ि‍तयां खूबसूरती से कुरूपता की असलि‍यत बयान करती हैं।

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  14. ख्वाहिशों के बिस्तर पर
    करवट बदलती रात
    भोर की पहली किरण के साथ
    दम तोड़ जाती है...
    ये पंक्ति दिल को छूने वाली हैं
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  15. साथ तूने
    कुछ यूं निभाया
    उमंगों से
    भरे फूल को
    बेजान बनाया

    तू
    तेरा ख्याल
    तेरी जिंदगी
    सब तेरा..
    इसमें
    'मैं' कहाँ हूँ ?

    जो दिखाई न दे
    जो सुनाई न दे
    दोनों दर्द...
    कभी झांकना
    जलती हुई रेत के
    इस आईने में


    रोज चूर होना
    जुड़ जाना
    दिल-ए-नादाँ
    ये मामला क्या है?

    ख्वाहिशों के बिस्तर पर
    करवट बदलती रात
    भोर की पहली किरण के साथ
    आखिर क्यों
    तोड़ जाती है दम?

    कविता मेरा जनून है इसलिए कहीं भी सम्भावना दिखे अनदेखा नहीं कर पाता...अपनी टिपण्णी का उत्तर मिलने के बावजूद .. कुछ लोग होते हैं मेरे जैसे सिरफिरे..लेकिन आपसे एक लम्बी बात करनी है उस दर्द को लेकर जो हमारे चारों तरफ गाजर घास कि तरह फैला हुआ है

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  16. "तू
    तेरा ख्याल
    और
    तेरी ज़िन्दगी
    सब तेरा
    इसमें
    'मैं ' कहाँ हूँ ?"
    ................
    gagar mein sagar

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  17. "तू
    तेरा ख्याल
    और
    तेरी ज़िन्दगी
    सब तेरा
    इसमें
    'मैं ' कहाँ हूँ ?"

    और
    ख्वाहिशों के बिस्तर पर
    करवट बदलती रात
    भोर की पहली किरण के साथ
    दम तोड़ जाती है
    वाह लाजवाब अभिव्यक्तियाँ हैं बधाई

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  18. वदंना जी कुछ ख्यालों में ये वाला ख्याल कुछ ज्यादा ही भाया और अपने नजदीक पाया।

    ख्वाहिशों के बिस्तर पर
    करवट बदलती रात
    भोर की पहली किरण के साथ
    दम तोड़ जाती है
    अति सुन्दर।

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  19. बहुत सुंदर रचना . मन को छू गयी .शायद सबके लिए यह तलाश जारी है !

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