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बुधवार, 20 जनवरी 2010

मन की गलियाँ

मन की
विहंगम गलियाँ
और उसके
हर मोड़ पर
हर कोने में
इक अहसास
तेरे होने का
बस और क्या चाहिए
जीने के लिए
वहाँ हम
तुझसे बतियाते हैं
और चले जाते हैं
फिर उन्ही गलियों के
किसी मोड़ पर
और खोजते हैं
उसमें खुद को
ना तुझसे बिछड़ते हैं
ना खुद से मिल पाते हैं
और मन की गलियों की
इन भूलभुलैयों में
खोये चले जाते हैं

22 टिप्‍पणियां:

  1. ना तुझसे बिछड़ते हैं
    ना खुद से मिल पाते हैं
    और मन की गलियों की
    इन भूलभुलैयों में
    खोये चले जाते हैं
    भूलभुलैयों बहुत अच्छी लगीं - खोएं रहें - सुंदर रचना के लिए बधाई.

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  2. मन की गलियां दूर तक सैर कराती हैं

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  3. सुंदर पंक्तियों... के साथ बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....

    कविता मन को छू गई.....

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  4. रचना में अद्भुत ताज़गी है। एक अहसास और एकाकी ... एक अपना का संगम।
    मन की
    विहंगम गलियाँ
    और उसके
    हर मोड़ पर
    हर कोने में
    इक अहसास
    बहुत अच्छी कविता।

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  5. सुन्दर कविता, वसंत पंचमी की शुभकामनाये !

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  6. मन की गलियों में भटकना ही तो ज़िन्दगी है

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  7. और चले जाते हैं
    फिर उन्ही गलियों के
    किसी मोड़ पर
    और खोजते हैं
    उसमें खुद को
    ना तुझसे बिछड़ते हैं
    ना खुद से मिल पाते हैं
    और मन की गलियों की
    इन भूलभुलैयों में
    खोये चले जाते हैं
    yakeenan bahut sundar baat kahi hai apne .Badhai!!

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  8. ये मन की गलियां होती ही ऐसी हैं जहाँ इंसान खुद को खोजता रह जाता है....खूबसूरत लेखन....

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  9. सुंदर रचना
    बसंत पंचमी की हार्दिक शुभकामनाये ओर बधाई आप को .

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  10. आपको वसंत पंचमी और सरस्वती पूजन की शुभकामनाये !

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  11. मन की विहंगम गलियाँ, ये भूल-भुलैयाँ, जहाँ खुद से भी मिलना संभव नहीं, जहाँ भटकाव ही भटकाव है, वहां किसी से कैसे मिलें ... सुन्दर है

    पर आप खुद को मेरे ब्लॉग पर आसानी से खोज सकती हैं.. :)

    -पीयूष
    www.NaiNaveliMadhushala.com

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  12. अति सुन्दर रचना. अकेलेपन मे मह्सूस किया एक एह्सास. बहुत खूब, मन कि गलिंया.

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  13. और मन की गलियों की
    इन भूलभुलैयों में
    खोये चले जाते
    और मन की इन्ही गलियों के खुशनुमा अहसास जीने का संबल बन जाते हैं..बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति

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  14. हर मोड़ पर
    हर कोने में
    इक अहसास
    तेरे होने का
    बस और क्या चाहिए
    जीने के लिए

    यही तो जीवन है!
    इसी का नाम तो स्वर्ग है!

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  15. हर मोड़ पर
    हर कोने में
    इक अहसास
    तेरे होने का
    बस और क्या चाहिए
    जीने के लिए ...

    ये बात तो सच है .... जीने के लिए ये सहारा बहुत है ....... अच्छा लिखा .......

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  16. man ki vihangam galian.........................ahsaas tere hone ka..........behatareen...........bahut umda abhivyakti.

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  17. ना तुझसे बिछड़ते हैं
    ना खुद से मिल पाते हैं
    और मन की गलियों की
    इन भूलभुलैयों में
    खोये चले जाते हैं
    वाह बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है शुभकामनायें

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  18. ना तुझसे बिछड़ते हैं
    ना खुद से मिल पाते हैं
    और मन की गलियों की
    इन भूलभुलैयों में
    खोये चले जाते हैं

    बहुत सुन्दर
    सारा खेल मन का ही तो है 1

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  19. dil ro baccha hai ji !! Gulzar saheb ki likhi yeh panktiyaan..sateek baith-ti hai..

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