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गुरुवार, 2 सितंबर 2010

राधे राधे
तुम बिन 
कैसे बीते 
दिवस हमारे 

तन मथुरा था 
मन बृज में था 
निस दिन 
रोवत नयन हमारे
राधे राधे 
तुम बिन 
कैसे बीते 
दिवस हमारे

संसार में 
जीना था
कर्म भी 
करना था
प्रेम को 
तो जाने 
सिर्फ ह्रदय 
हमारे
राधे राधे
तुम बिन 
कैसे बीते
दिवस हमारे

निष्ठुर कहाया
निर्मोही बनाया
किसी ने जाना
भेद हमारा
तुम बिन 
कैसे बीती
रैन हमारी
राधे राधे
तुम बिन 
कैसे बीते 
दिवस हमारे

दूर मैं कब था
तुम तो 
बसती थी 
दिल में हमारे
द्वैत का पर्दा 
 कब था प्यारी
तुम बिन 
अधूरा था 
अस्तित्व हमारा
राधे राधे
तुम बिन
कैसे बीते
दिवस हमारे

विरह अवस्था
दोनों की थी
उद्दात प्रेम की
लहर बही थी 
इक दूजे बिन
कब पूर्ण थे
अस्तित्व हमारे
राधे राधे 
तुम बिन 
कैसे बीते
दिवस हमारे

हे सर्वेश्वरी 
प्यारी 
ये तुम जानो
या हम जाने
राधे राधे
तुम बिन 
कैसे बीते 
दिवस हमारे

35 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही दर्द भरी पुकार है....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  2. बहुत मार्मिक कविता।
    आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को श्री कृष्ण जन्म की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं!

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  3. बेहद खूबसूरती से आपके लफ़्ज़ों ने इस दर्द को उकेरा है ...बहुत पसंद आई यह ..जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाई आपको ...

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  4. लगता है वंदना जी श्‍याम आपके अंदर समा गए हैं। इससे पता चलता है आपके अंदर एक बहुत सुंदर कवि निवास करता है। पर आप उसे कभी कभी ही मौका देती हैं बाहर आने का। बहुत ही सुंदर और प्रेम में पगी इस रचना के लिए प्रेममयी बधाई। आपने कविता के साथ जो चित्र लगाया है वह दुलर्भ है। मैं पहली बार कृष्‍ण को इस तरह प्रेम में समर्पित देख रहा हूं।

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  6. राधा रानी रट रही, कृष्ण सखा का नाम।
    किन्तु कृष्ण के पास हैं, जग के कितने काम।।
    --
    दुनिया के दुख-दर्द से, छुट्टी जब मिल जाय।
    कृष्ण कन्हैय्या तो तभी, राधा के ढिंग आय।।
    --
    बहुत ही मार्मिक रचना है आपकी!
    --
    श्री कृष्ण जन्म की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ!

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  8. काश राधा जी कहती
    " तेरी इन बातो में अब आने वाली नहीं
    लुटी कभी मेरी दुनिया अब बस जाने वाली नहीं
    हजारो पत्नी वाले क्या मैं तेरे लायक नहीं थी
    क्या गृहस्थी का धर्म निभाने में सहायक नहीं थी

    अर्जुन के सामने बड़ी बड़ी शरण की बात करता था
    मुझे अपनाने को फिर क्यों तेरे अंतस डरता था
    अन्दर तक दर्द भरा हैं तुझे क्या पता कितना रोती हु
    कभी कहूँगी दिल खोलकर अभी बस विदा होती हु
    --
    !! श्री हरि : !!
    बापूजी की कृपा आप पर सदा बनी रहे

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  9. सौ वर्षों का विरह और इतने सरल शब्द... कान्हा ने राधा को तो रोने तक का अवसर नहीं दिया.. भाव में बस अपनी कहते गए... राधा को भी स्वयं में समाहित करते गए... प्रेम की. विछोह की... विरह की.. वेदना की... कर्म और प्रेम में द्वन्द की..... प्राथमिकता की... कर्त्तव्य की.. इतनी सहज अभिवयक्ति हो सकती है... !!! ए़क मर्मस्पर्शी प्रस्तुति... राधा ने तो लगता है इस बार माफ़ कर दिया होगा कान्हा को.... चित्र में कितनी संवेदना भरी है.... कान्हा राधा के पाँव में... राधा कहाँ कान्हा के कर्ज से मुक्त हो सकी होगी... सुंदर रचना...

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  10. वाह आज के दिन इतनी शानदार रचना। रचना के भाव खूब दिख रहे है। और महसूस हो रहे है।

    संसार में जीना था कर्म भी करना था प्रेम को तो जाने सिर्फ ह्रदय हमारे राधे राधे तुम बिन कैसे बीते दिवस हमारे.......। ये लाईन कुछ ज्यादा ही पसंद आई ना जाने क्यों। और हाँ सुबह भी कुछ पढा था आपका लिखा। शायद स्टेटस पर। वो भी अच्छा था।

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  11. बहुत खूबसूरती से भावों को पिरोया है ....सुन्दर अभिव्यक्ति

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  12. बहुत मार्मिक कविता। श्री कृष्ण जन्म की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ

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  13. bhn vndna ji virh , tdpn,or zimmedaari ka jo ehsas aapne is
    rchnaa ke madhym se diya he voh hqiqt men or kisis ke bs ki bat nhin bdhayi ho. akhtar khan akela kota rajsthan

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  14. शानदार अभिव्यक्ति!

    आपको श्री कृष्ण जन्माष्टमी की बहुत शुभकामनाएँ.

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  15. --सुन्दर भाव-प्रवण रचना---

    राधा तो पहले ही माफ़ कर चुकी---

    सांवरे में तुम पै वारी।
    तेरी बातें प्रीति-नीति की , नीति जगत व्योहारी।
    बतियन जाल से जीत सकै को,तुम हो गिरवरधारी।
    तुमको बांध प्रीति बंधन में ,मैं आपुन ही हारी।
    जाओ देश,समाज,राष्ट्र-हित, कान्हा भव भय हारी।
    बंधन मुक्त तो करूं, न टूटे प्रेम-डोर यह न्यारी।
    अब न बहेंगे नयनन अंसुआ,सूखे मन फ़ुलवारी।
    श्याम,श्याम-श्यामा,लीलालखि सुरनरमुनि बलिहारी॥

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  16. बहुत ही अच्छी रचना साथ ही दुर्लभ चित्र ने उसे और भी विशेष बना दिया है !!
    जन्माष्टमी की शुभकामनाएँ !!

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  17. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर एक उत्तम रचना..जय श्रीकृष्ण...सुंदर रचना के लिए बधाई

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  18. bahut hi bhawuk kar gayi yeh rachna.....
    behtareen....

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  19. सन्सार के तमाम सुखो के सम्मुख कर्म की प्रधानता का सन्देश देती आपकी यह कविता वर्तमान समय मे कई मायनो मे और अधिक प्रासन्गिक हो जाती है जब हम इसी प्रणय के वशीभूत हो अपने सारे कर्तव्यो को विस्म्रित कर आज कही बडो का अपमान करते है तो कही बुजुर्गो का तिरस्कार.

    विरह की पीडा कर्म के सम्मुख बहुत छोटा होता है यह उनका निर्मोही स्वरूप नही बल्कि उनके उदात्त प्रेम की अभिव्यक्ति है, यही सन्देश त्रेता युग मे लक्ष्मण जी ने दिया था और कदाचित यही कान्हा भी अपने विलक्षण स्वरुप मे कहते प्रतीत होते है.

    मुझे जन्माष्टमी पर प्राथमिक कक्षाओ मे पढे वे दोहे अनायास याद हो आते है -
    मर्यादा और त्याग शील का,
    पाठ मिला रघुराई से,
    कर्मभक्ति का पाठ मिला है,
    हमको क्रिष्ण कन्हाई से.

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  20. अच्छी पंक्तिया है ...
    ......
    ( क्या चमत्कार के लिए हिन्दुस्तानी होना जरुरी है ? )
    http://oshotheone.blogspot.com

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  21. वंदनाजी
    बहुत ही उत्कृष्ट रचना है| मेरे आलेख और आपकी कविता के भाव संयोग से एक ही है |
    सच ही तो है राधा के दर्द को सभी देखते है कान्हा के दरद को किसे ने समझा ?
    चित्र ने तो ह्रदय में अमित जगह बना ली है श्याम तो बस निराला ही है |

    दूर मैं कब थातुम तो बसती थी दिल में हमारेद्वैत का पर्दा कब था प्यारीतुम बिन अधूरा था अस्तित्व हमाराराधे राधेतुम बिनकैसे बीतेदिवस हमारे
    ati sundar

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  22. अमर प्रेम की अविरल सचित्र अभिव्यक्ति....

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  23. राधे राधे
    कह
    घेरा मन को
    मन ने जो कहा
    मन ने ही सुना
    आपके मन से
    बहुत अच्‍छा बुना।

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  24. .
    भावुक कर देने वाली रचना , सुन्दर चित्र के साथ।
    .

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  25. मै सोच रहा हूँ कि हज़ार साल बाद मिलते तो वे क्या कहते ?

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  26. बहुत भाव भीनी रचना |बधाई
    आशा

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  27. तब भी यही कहते---बडे लोग बार बार बात बदलते कब हैं।

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  28. तब भी यही कहते---बडे लोग बार बार बात बदलते कब हैं।

    जवाब देंहटाएं
  29. राधा और कृष्ण अलग कहा हैं .... वो तो सदा से एक थे और एक हैं ... आज भी एक हैं सबके दिलों में ... कवि की कल्पना बेजोड़ है ...

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  30. करुणा ओर श्रृंगार रस से ओतप्रोत रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई...
    नीरज

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  31. बहुत दिनों के बाद आपके ब्लॉग में आना हुआ. आते ही पहला पोस्ट राधे राधे.... पढ़ कर मन भी राधे- राधे हो गया है. बहुत ही अच्छी रचना है.

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया