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गुरुवार, 9 सितंबर 2010

शायद तब ही .................

जो दीन ईमान से 
ऊपर उठ जाये 
जो जिस्म के 
तूफ़ान से
ऊपर उठ जाए 
दीवानगी 
पागलपन जैसे
शब्दों की महत्ता
ख़त्म हो जाए

हर चाहत 
हर अहसास
के स्रोत 
लुप्त होने लगें 


जहाँ विरह 
श्रृंगार भी 
गौण हो जायें
जब सारे शब्द 
विलुप्त हो जायें



जहाँ दुनिया भी

सजदा करने लगे 
जहाँ खुदा भी 
छोटा लगने लगे


जब रूहों का 
मिलन होने लगे
जब बिना कहे ही
दूजे की आवाज़ 
सुनने लगें
तरंगों पर ही 
भावों का 
आदान- प्रदान 
होने लगे


इक दूजे में ही
प्राण बसने लगे
जहाँ ज़िन्दगी 
और मौत की भी
परवाह ना हो
सिर्फ आत्मिक 
मिलन का ही 
आधिपत्य हो
आग का दरिया
मोम के घोड़े 
पर सवार हो
जब बिना 
पिघले पार
कर जाए
तब जानना
मोहब्बत हुई है
या 
यही मोहब्बत 
होती है
या 
शायद तब ही 
मोहब्बत होती है

23 टिप्‍पणियां:

  1. मुहव्बत कब होती शायद अब पता चला बधाई

    जवाब देंहटाएं
  2. तब जानना
    मोहब्बत हुई है
    या
    यही मोहब्बत
    होती है
    या
    शायद तब ही
    मोहब्बत होती है
    --
    मुहब्बत की इससे सटीक परिभाषा तो
    दूसरी हो ही नही सकती!

    जवाब देंहटाएं
  3. मोम के घोड़े
    पर सवार हो
    जब बिना
    पिघले पार
    कर जाए
    तब जानना
    मोहब्बत हुई है

    वाह क्या नया प्रयोग है ...सुन्दर अभिव्यक्ति ...सटीक परिभाषा मुहब्बत की ..

    जवाब देंहटाएं
  4. जब रूहों का
    मिलन होने लगे
    जब बिना कहे ही
    दूजे की आवाज़
    सुनने लगें
    तरंगों पर ही
    भावों का
    आदान- प्रदान
    होने लगे
    bahut khub ....bahut pasand aayi yah panktiyan ...

    जवाब देंहटाएं
  5. वन्दना दी नमस्कार। वाह! क्या कविता है। कविता मेँ गति देखने लायक हैँ। कविता एक तरंग की भाँति लहर गई हैँ। कभी गहरे अध्यात्म मे, तो कभी संवेदना मेँ, तो कभी गहरे प्रेम मेँ। इस कविता के बहुत आयाम हैँ।एक बहतरीन कविता के लिए बधाई। -: VISIT MY BLOG :- जब तन्हा होँ किसी सफर मेँ.............. गजल को पढ़ने के लिए आप सादर आमंत्रित हैँ। आप इस लिँक पर क्लिक कर सकती हैँ।

    जवाब देंहटाएं
  6. आप की रचना 10 सितम्बर, शुक्रवार के चर्चा मंच के लिए ली जा रही है, कृप्या नीचे दिए लिंक पर आ कर अपनी टिप्पणियाँ और सुझाव देकर हमें अनुगृहीत करें.
    http://charchamanch.blogspot.com


    आभार

    अनामिका

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  7. बढ़िया पोस्ट. बधाई

    आपको भी ईद की बधाई.

    जवाब देंहटाएं
  8. बिलकुल यही तो है मुहब्बत की परिभाषा ......बहुत प्यारी रचना !!

    जवाब देंहटाएं
  9. जब रूहों का
    मिलन होने लगे
    जब बिना कहे ही
    दूजे की आवाज़
    सुनने लगें
    तरंगों पर ही
    भावों का
    आदान- प्रदान
    होने लगे...
    उपर्युक्त पंक्तियाँ कविता को नई ऊँचाइयों पर ले जाती हैं... इस कविता में आपने प्रेम के सभी आयामों और लक्षों को परिभाषित सा कर दिया है.. कविता ए़क नदी कि तरह गतिमान है ! बहुत सुंदर रचना !

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  10. हां यही मोहब्बत होती है ,अच्छी रचना ।

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  11. प्रथम पैरा की शुरुआत का शब्द चयन तो वाह! मग़र पूरी रचना और इसके भावों को देखते हुए कहीं-कहीं पर शब्द-चयन दुरुस्त करने की ज़रूरत सी लगी मुझे. इक़ उम्दा रचना.शुक्रिया.

    जवाब देंहटाएं
  12. जहां ऐसा सब होगा या जब ऐसा सब होगा वहां मोहब्‍बत नहीं होगी। मोहब्‍बत किसी के सापेक्ष होती है,शून्‍य में नहीं।

    जवाब देंहटाएं
  13. जो दीन ईमान से
    ऊपर उठ जाये
    जो जिस्म के
    तूफ़ान से
    ऊपर उठ जाए
    दीवानगी
    पागलपन जैसे
    शब्दों की महत्ता
    ख़त्म हो जाए

    -------------------------------------------------------------
    यहाँ से हो रही है शुरुआत अहेसास के समंदर में उतरने की
    ________________________________________

    हर चाहत
    हर अहसास
    के स्रोत
    लुप्त होने लगें


    जहाँ विरह
    श्रृंगार भी
    गौण हो जायें
    जब सारे शब्द
    विलुप्त हो जायें



    जहाँ दुनिया भी
    सजदा करने लगे
    जहाँ खुदा भी
    छोटा लगने लगे
    ---------------------------------------------------------------
    अहेसास की लहरों की शीतलता आत्मा और गीलापन शरीर पर छाने लगा है
    ----------------------------------------------------------------------------------

    जब रूहों का
    मिलन होने लगे
    जब बिना कहे ही
    दूजे की आवाज़
    सुनने लगें
    तरंगों पर ही
    भावों का
    आदान- प्रदान
    होने लगे


    इक दूजे में ही
    प्राण बसने लगे
    जहाँ ज़िन्दगी
    और मौत की भी
    परवाह ना हो
    सिर्फ आत्मिक
    मिलन का ही
    आधिपत्य हो
    आग का दरिया
    मोम के घोड़े
    पर सवार हो
    जब बिना
    पिघले पार
    कर जाए
    तब जानना
    मोहब्बत हुई है
    या
    यही मोहब्बत
    होती है
    या
    शायद तब ही
    मोहब्बत होती है
    ---------------------------------------------------------------------------------------
    यकीनन, मोहोब्बत होने के अहेसास के साथ इश्क के समंदर के आगोश में समां गया हूँ

    ज़बरदस्त प्रस्तुति के लिए बधाइयाँ

    जवाब देंहटाएं
  14. दिव्य प्रेम को बहुत खूबसूरती से परिभाषित किया है आपने !
    आग का दरिया
    मोम के घोड़े
    पर सवार हो
    जब बिना
    पिघले पार
    कर जाए
    तब जानना
    मोहब्बत हुई है
    बहुत खूब ! बहुत ही बेहतरीन रचना ! बधाई स्वीकार करें !

    जवाब देंहटाएं
  15. ये प्रेम ही वो चीज है जिसे व्यक्ति अपनी मनोभावना के अनुरुप देखता है. जिसमें अपना अस्तित्व ही समाहित हो जाता है. आपने खूबसूरती से परिभाषित किया है.बधाई.

    --

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  16. मोहब्बत की गहराइयों को अभिव्यक्त करती .... यह रचना बहुत अच्छी लगी...

    जवाब देंहटाएं
  17. प्रेम की पराकाष्ठा-
    बहुत सुब्दर रचना -
    शुभकामनाएं .

    जवाब देंहटाएं
  18. मुहब्बत मुहब्बत ... मुहब्बत ... सब जागे मुहब्बत बिखर जाती है तब ...
    अच्छी रचना है ...

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  19. सुन्दर परिभाषा दी है आपने....
    सुन्दर भावोद्गार... !!!!

    जवाब देंहटाएं

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