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रविवार, 7 नवंबर 2010

फिर क्यूँ ढूँढूँ अवलम्बन?

मै
अपने आप से
बेहद खुश
फिर किसलिये
ढूँढूँ अवलम्बन

मुझे मेरा "मै"
भटकाता नही
उसके सिवा कुछ
रास आता नही
अब बंधन 
स्वीकार नही
अब ना कोई

दीवार रही
मै अपने "मै" मे

जी लेती हूँ
शायद इसीलिये 

हँस लेती हूँ
जब जान लिया
है  खुद को
फिर क्यूँ
ढूँढूँ अवलम्बन

25 टिप्‍पणियां:

  1. जब जान लिया
    है खुद को
    फिर क्यूँ
    ढूँढूँ अवलम्बन
    जिसने खुद को जान लिया है उसे अवलम्बन क्यूँ ढूढना.
    सुन्दर भाव

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  2. अपने लिखा हैं तो रचना तो अच्छी ही होगी . टिप्पणिया भी खूब मिलेंगी क्योंकि परंपरा ही ऐसी हैं .आपने मै और अवलंबन का भेद कुछ स्पष्ट सा नहीं क्या . मुझे यही समझ आया की आप अवलंबन नहीं चाहती हैं .

    आपने ऊपर निर्भरता ज्ञान हैं परम पिता का "मै " हैं ज्ञान हर पर अवलंबन ही तो भक्ति हैं , शायद आपको रजनीगंधा फिल्म की ये पंक्तियाँ याद रखनी चाहिए
    "अधिकार ये जब से साजन का हर धड़कन पर माना मैंने
    मै जब से उनके साथ बंधी ये भेद तभी जाना मैंने
    कितना सुख हैं बंधन में "

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  3. बहुत सुन्दर, स्वावलंबी भावनाओं को सुन्दर तरीके से उकेरा है आपने ...

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  4. जिसे मिला हो खुद अपना ही अवलम्बन!
    क्यों माँगे वो जग से कोई आलम्बन!
    --
    मन में आत्मविश्वास का संचार करती हुई!
    सुन्दर रचना!

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  5. बहुत सुन्दर विचार ....खुद को जान लेना ही आत्मनिर्भर बना देता है ...खुश रहने की कला आ जाती है ...किसी से कोई अप्र्क्षा नहीं रहती ....

    अच्छी प्रस्तुति

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  6. I wish ma mom cud understand dis as well, in dat case she wud nt force me to get married.. :D neways jokes apart.. i loved dis beautiful poem :)

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  7. अपने मैं में जी लेती हूँ ....
    इसलिए ही हंस लेती हूँ ...
    रश्मि जी से सहमत की जब खुद से परिचित हो जाते हैं हम तो खुश होने की वजह बन जाते हैं ..!

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  8. गज़ब ... खुद को ढूंढना बहुत मुश्किल होता है जीवन में ... और जो स्वयं को प् लेता है फिर उसे किसी सहारे की क्या जरूरत ... अछा लिखा है बहुत ही ...

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  9. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 09-11-2010 मंगलवार को ली गयी है ...
    कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

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  10. मै अपने "मै" मे
    जी लेती हूँ
    शायद इसीलिये
    हँस लेती हूँ
    बस यही सच है...हँसते रहने का यही राज़ है
    सुन्दर अभिव्यक्ति

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  11. खुद को ही अवलंब बनाकर जीने का संकल्प, हर परिस्थति से जूझने का हौसला देती और आत्मविश्वास का संचार कराती प्रेरणादायक अभिव्यक्ति. आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  12. बस जी गुरु मन्त्र सीख लिया आपने फिर कोई चिंता ही नहीं रही. बढ़िया पोस्ट.

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  13. अच्छी रचना खुद में खुद को ही तलासने की अच्छी कोशिश ..............

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  14. जब यह सीख लिया फिर तो जग जीत लिया।

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  15. फिर क्यों ढूंढूं अवलंबन...

    गहरी संवेदनाओं से पूरित एक उत्तम रचना।

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया