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रविवार, 28 नवंबर 2010

टिशु पेपर हूँ मैं………………

लोग आते हैं
अपनी कहते हैं
चले जाते हैं
हम सुनते हैं 

ध्यान से गुनते हैं
दिल से लगा लेते हैं
जब तक संभलते हैं
वो किसी और
मुकाम पर
चले जाते हैं
और हम वहीं
उसी मोड़ पर
खाली हाथ
खड़े रह जाते हैं

कभी कभी लगता है
टिशु  पेपर हूँ  मैं

29 टिप्‍पणियां:

  1. इस कविता की प्रतिक्रिया में और कुछ नहीं कह सकता कि,,,

    परित्यक्त किये जाने के बाद
    दुसरे पल ही
    एक चिड़िया ने
    उठाया मुझे
    अपनी चोंच से
    और बना लिया
    घोंसला
    खुश थी मैं
    इस बार ...

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  2. "..और हम वहीं
    उसी मोड़ पर
    खाली हाथ
    खड़े रह जाते हैं..."

    बिलकुल सही कहा आपने.
    टिशु पेपर से तुलना अच्छी लगी.

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  3. वंदना जी ....
    बहुत ही खूबसूरत रचना...
    हर किसी की ज़िन्दगी इसी प्रकार बीतती है .....

    पहचान कौन चित्र पहेली :-६ .

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  4. आँसू पोछने के बाद भी फेंक दिया जाता है, टिशू पेपर।

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  5. वंदना जी इस बार आपकी कविता पढकर ऐसा लगा कि ये मैं ही कह रही हूँ. बहुत पहले की ही बात है जब बिलकुल ऐसी ही बात कही थी मैंने. टिशु पेपर हूँ मैं...... बेहद अच्छी लगी यह कविता.

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  6. क्या करें आख़िर वो लोग हैं न...बहुत खूब वंदना जी...

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  7. और हम वहीं
    उसी मोड़ पर
    खाली हाथ
    खड़े रह जाते हैं...
    shayad yahin niyati hai hamari..
    man ke bhavon ko sundertam shabd dia hai aapne..
    really nice..

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  8. bilkul sach kaha apne vandana ji sunder rachna hai....mere blog par ane ka bahut shukriya.........

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  9. यही कटु सत्य है!सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  10. आत्मविश्लेषण के लिए प्रेरित करने वाली सुन्दर रचना!

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  11. कभी कभी लगता है
    टिशु पेपर हूँ मैं

    सुन्दर भाव हैं. टिशू पेपर के माध्यम से आपने एक सामाजित चरित्र को उजागर कर दिया है

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  12. गहरा अहसास दिलाती है यह रचना !
    शुभकामनायें !

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  13. kya khoob metaphor diya hai aapne...bohot hi kamaal ki tulna hai....lovely nazm dear :)

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  14. Bewafa logon ki fitrak bakhoobi likhi hai aapne ... tissue paper ka prayog achhaa laga ...

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  15. सुंदर कटाक्ष. टिशु पेपर की तरह रिश्ते और भावनाएं भी डिसपोजेबल हो गए हैं.

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  16. लोग आते हैं
    अपनी कहते हैं
    चले जाते हैं
    हम सुनते हैं
    ध्यान से गुनते हैं
    दिल से लगा लेते हैं
    जब तक संभलते हैं
    वो किसी और
    मुकाम पर
    चले जाते हैं
    और हम वहीं
    उसी मोड़ पर
    खाली हाथ
    खड़े रह जाते हैं


    ज़िन्दगी के चलन पर एक अच्छी रचना .. जो सुन कर दिल से लगा लेते हैं वो सोचते हैं और खाली हाथ रह जाते है.. बाकी आगे निकल जाते हैं

    manju

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  17. ye tissue kmjoor nhi bhut khuddar hai tbhi glta nhi blki apne vjood ko vkt ki ksauti pr mjbooti se kse huye hai .
    ye drasal ek kism ka ahvahn hai . is bimb pr utar jane ko ji chahta hai . bhut khoob .

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  18. अरे वाह वंदना जी लकड़ियों के बाद अब टिशु पेपर .....क्या बात है.....

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  19. वंदना जी,
    जीवन के सन्दर्भों को टिसू पेपर के साथ जोड़ना अविव्यक्ति का अच्छा सम्प्रेषण लगा !
    -ज्ञानचंद मर्मज्ञ

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  20. टिशु पेपर हूँ मैं...... बेहद अच्छी लगी यह कविता........यही कटु सत्य है

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  21. कविता अच्छी है परंतु प्लीज अपनी तुलना टिशू पेपर से कभी मत कीजिए

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