नव कोपल
से नर्म एहसास सी
तुम
प्रकृति की सबसे अनुपम
उपहार हो मेरे लिए
वो ऊषा की पहली किरण सा
मखमली अहसास हो तुम
जाने कौन देस से आयीं
मेरे जीवन प्राण हो तुम
ओस की
पारदर्शी बूंद सी
तुम श्रृंगार हो
प्रकृति की
मगर मेरे मन के
सूने
आंगन की
इकलौती आस हो तुम
से नर्म एहसास सी
तुम
प्रकृति की सबसे अनुपम
उपहार हो मेरे लिए
वो ऊषा की पहली किरण सा
मखमली अहसास हो तुम
जाने कौन देस से आयीं
मेरे जीवन प्राण हो तुम
ओस की
पारदर्शी बूंद सी
तुम श्रृंगार हो
प्रकृति की
मगर मेरे मन के
सूने
आंगन की
इकलौती आस हो तुम
गुनगुनी धूप के
रेशमी तागों की
फिसलती धुन पर
थिरकता
परवाज़ हो तुम
पर मेरे लिए
ज़िन्दगी का
सुरमई साज़ हो तुम
38 टिप्पणियां:
प्रेम को कल्पना की जिस ऊंचाई पर ले जाती हैं वंदनाजी वह अचंभित कर देती है.. वर्तमान कविता में प्रकृति के तत्वों और परकृति के तत्वों को लेकर एक सम्पूर्ण प्रेम कविता रची गई है.. प्रभात के किरणों से लेकर गुनगुनी धूप से रची गई कविता कोमल एहसास दे रही है..
बहुत सुन्दर अहसास!
अति सुन्दर अभिव्यक्ति...
रेशमी तागों की
फिसलती धुन पर
थिरकता
परवाज़ हो तुम
पर मेरे लिए
ज़िन्दगी का
सुरमई साज़ हो तुम
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रचना में प्रकृति चित्रण के साथ पावन आकांक्षा भी निहित है!
बढ़िया लेखन, सुन्दर रचना!
क्या चित्रण किया आपने ! लाजवाब, सुन्दर लेखनी को आभार.
खुदा से जो मांगी है तुम्हें देखने के लिए
वो आखिरी साँस हो तुम...
बहुत ही सुन्दर कविता वंदना जी ...अपने अनुपम उपहार के लिए आपकी कविता भी किसी उपहार से कम नहीं....
अच्छा ये चिट्ठाजगत की बस खराब है क्या ???
मेरे ब्लॉग पर..
हिंदी साहित्य के एक महान कवि ...
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
बहुत सुन्दर शब्दचित्र!!!
गुन-गुनी धूप के रेशमी तागों की फिसलती धुन...... वाह क्या बात है , बहुत प्यारी रचना !
रेशमी तागों पे थिरकती परवाज़ हो तुम्।
अच्छी अभिव्यक्ति।
मानवीय संवेदना की आंच में सिंधी हुई ये कविता हमें मानवीय रिश्ते की गर्माहट का अहसास कराती है।
एक कोमल अहसास ! कफ़ी दिनों से मेरे ब्लोग पर आप ने दस्तक नहीं दी ! इस छोटे से ब्लोगर का होंसला बढ़ाएं ! फ़ोलो करें !
बेहद खूबसूरत।
तुम केवल तुम हो।
Mujhe ye kavita meri pyari si bhatiji ki yaad dila deti h.. koi taar nahi judta magar fir bhi jitni baar padha uski shaitaaniyaan nazro k samne ghumti rahi :)
अनुभूति आकर्षक है। बधाई
अनुभूति आकर्षक है। बधाई।
अनुभूति आकर्षक है। बधाई।
awwww....kinni pyaari nazm hai, bohot sundar, sardi ki dhoop jaisi, lovely
ओस की पारदर्शी बूंद सी तुम श्रिंगार हो।
दिल की गहराइयों से कही अभिव्यक्ति।
सुकोमल अहसास वाली कविता . आभार .
"वो उषा कई पहली किरण सा ,
मखमली अहसास हो तुम "
बहुत भावभीनी पंक्तियाँ |
बधाई
आशा
सुंदर रचना के लिए साधुवाद!
अहसास की अत्यंत सुन्दर रचना
PREMYUT VEDNA ME DOOBI KALAM HI AISI RACHNA DE PATI HAI.
BHAV KI GAHRAI...KYA KAHNA!
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, ऐसी सुंदर रचना के लिए बधाई !
प्रेम के कोमल अहसासों से पूर्ण बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति..आभार
बहुत सुंदर कविता, बहुत ही भावपूर्ण ........
सुकोमल भावों और सुंदर शब्दों से सजी एक उत्तम रचना। कविता में दिल को स्पर्श करने की क्षमता है।...बधाई, वंदना जी।
bhavbhasundar rachna .
bhavbhasundar rachna .
वंदना जी,
वाह बहुत नाज़ुकी से आपने अहसासों को लफ्जों में पिरोया है .....बहुत खूब....
वंदना जी,
आपकी अभिव्यक्ति किसी बच्चे की मुस्कान की तरह निर्मल ,भोली भाली और कोमल है !
भावों का गहरा सागर आपकी कविता में हिलोरे लेता हुआ साफ़ साफ़ परिलक्षित हो रहा है !
इतनी अच्छी रचना के लिए मेरी बधाई स्वीकार करें !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
"पर मेरे लिए
जिंदगी का सुरमई ताज हो तुन."
वंदना जी,नमस्कार.
आपकी यह रचना हमें अनायास ही wordsworh और Keats की रोमांटिक कविताओं के संसार में ले जाती है.इस तरह के खूबसूरत बिम्बों की वहां बहुतायत थी. मन को भाती रचना. आपके ब्लॉग पर देरी से आने का अफ़सोसहै.
मगर मेरे मन के
सूने
आंगन की
इकलौती आस हो तुम
गुनगुनी धूप के
रेशमी तागों की
फिसलती धुन पर
थिरकता
परवाज़ हो तुम
bahut sundar!
वैसे नया प्रोफाइल चित्र बहुत अच्छा है.
लगता है आपकी नई फोटो के बारे में कही गई कविता है।
बहुत अच्छे शब्दों में लिखी गयी बहुत ही नरम मखमल सी कविता ... पढते पढते ही दिल को शान्ति मिल गयी ..
जय हो जी आपकी
विजय
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