पेज

सोमवार, 24 जनवरी 2011

फिर कैसा गणतंत्र प्यारे

ये कैसा गणतंत्र है प्यारे
ये कैसा गणतंत्र ?

जो करते  घोटाले 
देश को देते  बेच
उसी को हार पहनाते हैं
देश की खातिर 
जान गंवाने वाले तो
रूखी सूखी खाते हैं
ये कैसा गणतंत्र है प्यारे
ये कैसा गणतंत्र ?


चोर- बाजारी, सीना -जोरी
कपट, छल छिद्र जो बढ़ाते हैं
ऐसे धोखेबाजों को ही 
सत्ता सिर पर बैठाती है
ईमानदार और मेहनतकश तो 
रोज़ ही मुँह की खाते हैं
ये कैसा गणतंत्र है प्यारे
ये कैसा गणतंत्र?


स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति भी
खरीदी बेची जाती है 
त्राहि- त्राहि करती जनता 
महंगाई से पिसती जाती है
हाहाकार मचा हो जहाँ
वहाँ राष्ट्रमंडल खेल कराते हैं
बची -खुची खुशियाँ भी  
खेलों की भेंट चढाते हैं 
सत्ता के लालच में जो 
भ्रष्टाचारियों से हाथ मिलाते हैं 
झूठे सच्चे वादों से 
जनता को लूटे जाते हैं 
भ्रष्टाचारी को ताज पहनाकर
अपनी शान बढ़ाते हैं 
मगर गणतंत्र देने वालों
को ही ह्रदय से भूल जाते हैं
फिर कैसा गणतंत्र प्यारे 
फिर कैसा गणतंत्र ?


सरहद पर जवान शहीद हुए जाते हैं 
मगर पडोसी को न मुंहतोड़ जवाब दे पाते हैं 
बस उसी को मुख्य अतिथि बनाते हैं 
जो पडोसी को शह देता है 
आतंकवाद के दंश से सुलगते 
देश को न बचा पाते हैं 
ईंट का जवाब पहाड़ से न दे पाते हैं 
फिर कैसा गणतंत्र प्यारे 
फिर कैसा गणतंत्र ?


41 टिप्‍पणियां:

  1. सियासती फकीर जो न करादें वही कम है!
    देश के प्ति वेदना को प्रकट करती सुन्दर रचना!

    जवाब देंहटाएं
  2. हरे देशवासी की यही पीड़ा है!
    आपने इस पर बहुत ही सशक्त लेखनी चलाई है!

    जवाब देंहटाएं
  3. आम जनता की वेदना को व्यक्त करती अच्छी रचना ...

    जवाब देंहटाएं
  4. सरल शब्दों में एक आम आदमी की बात को बखूबी रख दिया आपने । सच ही तो है कि यए क्या कैसा गणतंत्र है प्यारे , ये कैसा गणतंत्र ...

    जवाब देंहटाएं
  5. न जाने कौन दिशा बहका,
    भगा जाता है मेरा देश।

    जवाब देंहटाएं
  6. आम जनता की कहानी आपकी कलम से, अच्छी लगी बधाई

    जवाब देंहटाएं
  7. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 25-01-2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.uchcharan.com/

    जवाब देंहटाएं
  8. पीड़ा दर्शाती सुन्दर कविता.

    जवाब देंहटाएं
  9. यह हमारे और आम जनता के मन की व्यथा है। बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    बालिका दिवस
    हाउस वाइफ़

    जवाब देंहटाएं
  10. ये हमारी विडम्बना ही है कि हम सबकुछ जानते हुए भी खामोश रहते है। सही मायने में अब हम ओछी मानसिकता के गुलाम हो चुके है। करारा व्यंग्य। आभार।

    जवाब देंहटाएं
  11. काहे का गणतंत्र....
    तंत्र में गण है कहाँ आजकल?

    जवाब देंहटाएं
  12. यह कविता हर उस आदमी की जुबान हे जो इन नेताओ के हाथो लुटा हे, यानि इस देश के हर नागरिक की आवाज, बहुत सुंदर रचना धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  13. गणतंत्र दिवस ही हार्दिक शुभकामना के साथ कहता हूँ कि आपकी यह बेहतरीन कविता है.. आपकी चिंता में हम आपके साथ हैं..

    जवाब देंहटाएं
  14. ये कैसा गणतंत्र , वजा फरमाया आपने ।

    जवाब देंहटाएं
  15. आपकी ये आवाज, सबकी आवाज है ।

    जवाब देंहटाएं
  16. व्याप्त दुखों का सुन्दर चित्रण

    जवाब देंहटाएं
  17. वंदना जी,

    वाह....बेहतरीन व्यंग्य.....गीत रुपी ये पोस्ट वाकई शानदार बन पड़ी है....ये हर आम भारतीय से जुडी है .....बहुत सुन्दर|

    जवाब देंहटाएं
  18. भ्रष्टाचारी को ताज पहनकर
    अपनी शान बढ़ाते हैं
    मगर गणतंत्र देने वालों
    को ही ह्रदय से भूल जाते हैं...

    बहुत सार्थक प्रस्तुति...वर्त्तमान व्यवस्था पर सटीक टिप्पणी..

    जवाब देंहटाएं
  19. अब गणतंत्र कहां "अर्थतंत्र" और "स्वार्थतंत्र" हावी है। मन की पी्ड़ा का सुंदर चित्रण्।

    जवाब देंहटाएं
  20. कितनो की सोच शब्द दे देती हैं आप...
    वाकई क्या हम गणतंत्र है???
    सच... कितना कटु सत्य है ये...
    बहुत-बहुत धन्यवाद...

    जवाब देंहटाएं
  21. गणतंत्र के लाभों से जब जनता वंचित रहती।
    तब तब उन्ही त्योहारों पर व्यथा जग जाती है।

    जवाब देंहटाएं
  22. desh ke haalaat ka sateek chitran aur varnan. bahut achhi rachna, badhai aur shubhkaamnaayen.

    जवाब देंहटाएं
  23. स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति भी
    खरीदी बेची जाती है ...

    bahot sateek baat kahi hai!

    जवाब देंहटाएं
  24. बहुत सार्थक प्रस्तुति...वर्त्तमान व्यवस्था पर सटीक टिप्पणी
    बहुत प्रेरणा देती हुई सुन्दर रचना ...
    गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाइयाँ !!

    Happy Republic Day.........Jai HIND

    जवाब देंहटाएं
  25. कमाल की लेखनी है आपकी लेखनी को नमन बधाई

    जवाब देंहटाएं
  26. आज के दौर की पीड़ा को दर्शाती एक शसक्त कविता

    सुंदर लेखन के लिए बहुत बहुत बधाई !!

    जवाब देंहटाएं
  27. वाकई ये कैसा गणतंत्र हैं ....जहां गरीबी से लड़ाई का जोखिम कोई नहीं उठाता उस पर राष्ट्रमंडल खेल कराए जातें है....
    यही हम भारतीयों की पीड़ा है...
    सटीक रचना

    जवाब देंहटाएं
  28. आम जनता के मन की व्यथा का सुन्दर चित्रण

    जवाब देंहटाएं
  29. सच कहा आपने , इतना भ्रष्टाचार देखकर तो सबसे पहले यही प्रश्न आता है दिमाग में - " ये कैसा गणतंत्र ? "

    जवाब देंहटाएं
  30. गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ...

    जवाब देंहटाएं
  31. गणतंत्र दिवस पर आपको भी शुभकामना

    जवाब देंहटाएं
  32. सुंदर कविता. हमारे देश कि यही बदकिस्मती है

    जवाब देंहटाएं
  33. aapke hirdey ki tees,ek tees deti hai jo hirdey ko tatolne ko majboor karti hai. shaayad hirdey ko tatolna aur anterman me khoj karna hi ek matra upay hai.Bhakti yug me bhi aisa hi hua hoga,jisse Nanak, kabir, sur,meerabai aadi ka udai hua hoga.jinka darsan aaj bhi hamara marg darsan karne me saksham hai

    जवाब देंहटाएं
  34. स्वतंत्रता की अभिव्यक्ति भी
    खरीदी बेची जाती है
    त्राहि- त्राहि करती जनता
    महंगाई से पीसी जाती है

    आईना दिखती रचना .....!!

    छल,कपट,धोखेबाजों से नित मुंह की खाए जाते हैं
    न जाने क्यों फिर भी हम गणतंत्र मनाये जाते हैं .....

    जवाब देंहटाएं
  35. vandna, aaj , hamare desh ki yahi ek sacchi tasweer hai .. bahut accha likha hai ... badhayi ..

    जवाब देंहटाएं

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया