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सोमवार, 16 मई 2011

सूद के साथ मूल भी छीन लेती है

ज़िन्दगी जब भी करवट लेती है
सब कुछ नेस्तनाबूद कर देती है
कभी जीने का पता नही देती है
कभी मरने का ठिकाना नही देती है
कभी आईने मे अक्स दिखा देती है
कभी अक्स को आईने मे छुपा देती है
नाज़ था जिन गुंचों पर माली को
उन्हे ही दामन से छीन लेती है 
सब कुछ छीनने के बाद ही
ज़िन्दगी जीने को उम्र देती है 
ना दिन को सहर देती है 
ना रात को कहर देती है
खून के घूंट पीने के बाद ही
अमृत का कलश देती है 
मगर अमर होने की चाहत  
को तेज़ाब मे घोल देती है 
कभी दोस्ती के भरम मे 
दुश्मनी निभा देती है 
ज़िन्दगी ज़िन्दगी को 
कुछ यूँ भरमा देती है 
कयामत ना आती गर 
गैरों से खाते घात 
ज़िन्दगी तो अपनो से 
दिलाती है मात 
कभी रुसवाईयों के  
अंधेरो मे धकेल देती है 
कभी दुश्वारियों से 
दामन भर देती है 
सूद के साथ  
मूल भी छीन लेती है
मंजी हुई व्यापारी सी  
ज़िन्दगी, ज़िन्दगी भी छीन लेती है

34 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत लिखा और पढ़ा आपको भी लेकिन.... आज जो पढ़ा वो एक...... कटु सत्य है जिसकी परिणति आज इस कविता में हो गई, अपनर दर्द को तो जानवर भी आवाज दे देते हैं, लेकिन सारे जहां के दर्द को आवाज देना ये करियत्री प्रतिभा है,

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  2. जिंदगी के खेल निराले होते हैं ... कभी सुख तो कभी दुख देती है ....बहुत लाजवाब ....

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  3. ज़िन्दगी जब भी करवट लेती हैसब कुछ नेस्तनाबूद कर देती हैकभी जीने का पता नही देती हैकभी मरने का ठिकाना नही देती हैकभी आईने मे अक्स दिखा देती हैकभी अक्स को आईने मे छुपा देती है... zindagi n jane kai imtihaan leti hai

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  4. सब कुछ छिनने के बाद ही जिंदगी जीने को उम्र देती है
    क्या खूब वंदना जी

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  5. ज़ालिम जिंदगी पर आपकी सुन्दर रचना के लिए बधाई !

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  6. बहुत भावमयी प्रस्तुति ... ज़िंदगी जो न दिखाए वो कम है ..

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  7. बहुत गहरे में कुछ महसूस कर आपने इस नायब रचना को लिखा है, जिंदगी की सच्चाई को हुबहू व्यक्त करती कविता!

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  8. बहुत खूब कहा है आपने इस अभिव्‍यक्ति में ... ।

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  9. vndnaa bahn zindgi ka sch alfaazon me sjaa snvar kr bhtrin andaz me pesh kiya hai bdhai ho ..akhtar khan akela kota rajsthan

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  10. ज़िंदगी की फितरत को बखूबी समझा दिया है आपने अपनी रचना में ! बहुत सुन्दर और सारगर्भित प्रस्तुति ! बधाई एवं शुभकामनायें !

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  11. आदरणीया वंदना जी ,

    जिंदगी की तल्ख़ सच्चाइयों को बड़ी बेबाकी और खूबसूरती से प्रस्तुत किया है आपने अपनी सुन्दर रचना में .....

    अनुभूतियाँ जब शब्द पाती हैं तो ऐसी ही कविता जन्म लेती है |

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  12. सच है पर ये क्या कम है की जिंदगी हमेशा कुछ न कुछ देती ही है |

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  13. "जिन्दगी -भर गम जुदाई का हमे तड्पाएगा
    हर नया मोसम पुरानी याद लेकर जाएगा "

    जिन्दगी के बदलते पैमाने ...

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  14. बहुत ही गहरे भाव व्यक्त हुए हैं...
    जिंदगी के खेल ही ऐसे हैं...बढ़िया रचना

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  15. इसी का नाम जिन्दगी है और इससे ही सब सीख कर इन पन्नों पर लिखा जाता है , कुछ अपने कुछ औरों से लेकर फलसफे रचे जाते हैं.

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  16. संपूर्ण रचना में सुंदर और अदभुत अभिव्यक्ति

    पति द्वारा क्रूरता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझावअपने अनुभवों से तैयार पति के नातेदारों द्वारा क्रूरता के विषय में दंड संबंधी भा.दं.संहिता की धारा 498A में संशोधन हेतु सुझाव विधि आयोग में भेज रहा हूँ.जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए के दुरुपयोग और उसे रोके जाने और प्रभावी बनाए जाने के लिए सुझाव आमंत्रित किए गए हैं. अगर आपने भी अपने आस-पास देखा हो या आप या आपने अपने किसी रिश्तेदार को महिलाओं के हितों में बनाये कानूनों के दुरूपयोग पर परेशान देखकर कोई मन में इन कानून लेकर बदलाव हेतु कोई सुझाव आया हो तब आप भी बताये.

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  17. अरे वाह!
    यह रचना तो दिल को छू गई!
    इसमें तो जिन्दगी की बहुत परिभाषाएँ अंकित हैं!

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  18. चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 17 - 05 - 2011
    को ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..

    http://charchamanch.blogspot.com/

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  19. खून के घूंट पीने के बाद हीअमृत का कलश देती है मगर अमर होने की चाहत को तेज़ाब मे घोल देती है कभी दोस्ती के भरम मे दुश्मनी निभा देती है ज़िन्दगी ज़िन्दगी को कुछ यूँ भरमा देती है कयामत ना आती गर गैरों से खाते घात ज़िन्दगी तो अपनो से दिलाती है मात कभी रुसवाईयों के अंधेरो मे धकेल देती है कभी दुश्वारियों से दामन भर देती है सूद के साथ मूल भी छीन लेती हैमंजी हुई व्यापारी सी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी भी छीन लेती है
    V
    Wah Vandana ji...kya baat likhi hai aapne...maza aa gaya...zindgi ki sachhyi...bahut acche se aapne batlayi.

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  20. जिन्दगी इम्तहान लेती है...

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  21. ज़िन्दगी जब भी करवट लेती है सब कुछ नेस्तनाबूद कर देती है कभी जीने का पता नही देती हैकभी मरने का ठिकाना नही देती हैकभी आईने मे अक्स दिखा देती हैकभी अक्स को आईने मे छुपा देती है

    अपनी रचना बहुत सुन्दर और सारगर्भित ..बधाई

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  22. jindgi.. jindgi cheen leti hai... jindgi har aise hi imthaan leti hai... bhut acchi rachna...

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  23. सच्चाई को व्यक्त करती कविता के लिए बधाई !! आप की लेखनी यथार्थ को इसके मूलस्वरूप में अभिव्यक्त करती है !
    आभार !!

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  24. गहन चिंतन के साथ ज़िन्दगी के अर्थ को समझने समझाने का प्रयास सराहनीय है।

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  25. एक सत्य हे जो आप की इस कविता मे झलकता हे, बहुत अच्छी , धन्यवाद

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  26. jindagi ke anekon roop ko ek dhaage me piro diya.bahut saarthak rachna.

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  27. सब कुछ छीनने के बाद ही
    ज़िन्दगी जीने को उम्र देती है
    बहुत खूब .. विरोधाभासी आभास

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  28. बहुत ही गहरे भाव ...बढ़िया रचना

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया