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शनिवार, 2 जुलाई 2011

कैलेण्डर ज़िन्दगी का



दोस्तों 
ये कविता जुलाई माह के गर्भनाल अंक मे छपी है और अभी तक आपने इसे पढा भी नही है तो आज ये आपके समक्ष है। 


33 टिप्‍पणियां:

  1. और फिर एक दिन कैलेण्‍डर बदल जाता है...

    वाह ...बिल्‍कुल सही कहा है इस पंक्ति में ...रचना प्रकाशन की बहुत-बहुत बधाई ।

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  2. बहुत खूब ...ज़िंदगी का अलग अंदाज़ पेश करने का ...

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  3. दुनिया अजब सराये फानी देखी
    हर चीज यहाँ की आनी जानी देखी
    जो जा के न आये वो जवानी देखी
    जो आ के न जाये वो बुढ़ापा देखा.

    और फिर बुढ़ापे के बाद कैलेण्डर बदल दिया जायेगा.
    एक नया कैलेण्डर जारी हो जायेगा
    आईये इस खुशी/गम में मिलकर गायें.

    'बस आज की रात है जिंदगी
    कल तू कहाँ मैं कहाँ '

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  4. samay calander ki tareekhon ke saath bitataa chala tata hai . bahut sundar rachna .

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  5. बहुत खूब ...रचना प्रकाशन की बहुत-बहुत बधाई

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  6. bahut sunder jindagi ko alag andaaj main prastut karane ke liye.badhaai aapko.

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  7. sabse pahle to badhai:)
    hamari shubhkamnayen hai ki aap hindi se juri sabhi patrikaon me sthan payen...:)
    aur mujhe lagta hai ki aapke rachna me ye kuwwat bhi hai..:)

    waise jindagi aur calender dono sayad sahchar shabd hi to hain...dono ko badalna hai...:)

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  8. sabse pahle to badhai:)
    hamari shubhkamnayen hai ki aap hindi se juri sabhi patrikaon me sthan payen...:)
    aur mujhe lagta hai ki aapke rachna me ye kuwwat bhi hai..:)

    waise jindagi aur calender dono sayad sahchar shabd hi to hain...dono ko badalna hai...:)

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  9. फिर एक दिन कैलेण्‍डर बदल जाता है...

    सच है...
    बहुत सुन्दर कविता.

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  10. बहुत खूब कहा है आपने कैलेंडर की तरह ज़िन्दगी भी बदल ही जाती है,

    आभार!!

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  11. गर्भनाल में ही पढ़ लिया है :)
    बहुत सुन्दर कविता है.

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  12. खूब कहा ,जिन्दगी एक कलेंडर ही है, दिन, महीने साल ,छुट्टी, लला हरे पीले नीले रंग जिन्दगी ही तो है वाह प्रकाशित कविता के लिए बधाई

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  13. बहुत सुन्दर कैलेण्‍डर, ज़िंदगी का अलग अंदाज़
    विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

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  14. बहुत अच्छी रचना |
    कृपया मेरे ब्लॉग में भी पधारें |

    www.pradip13m.blogspot.com

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  15. कैलेंडर की प्रतीकात्मक व्याख्या सुंदर लगी ,..बधाई

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  16. ज़िन्दगी का यह सफ़र यूं ही चलता रहता है कटता रहता है।
    बेहतरीन रचना।

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  17. बधाई के साथ अनुरोध भी कर रहा हूं कि अब समय वीर रस मे देश प्रेम से ओत प्रोत कविताएं लिखने का आ चुका है आप भी इस ओर अग्रसर हों

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  18. han sach men zindgi bilkul calender ki tarah hi hoti hai,roz ek naya panna......khul jata hai.

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  19. आपकी यह रचना वाकई में बहुत सुन्दर है!
    गर्भनाल पत्रिका में प्रकाशन के लिए बधाई स्वीकार करें!

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  20. बहुत ही सुन्दर ...जीवन का परिवर्तनशील कलेंडर ..सुन्दर रचना शुभ कामनाएं...

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  21. आपकी रचना 'कैलेण्डर जिंदगी' का बहुत ही अच्छा लगा।
    धन्यवाद।

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  22. बहुत खूब ! सच में ज़िंदगी एक कलेंडर से बिलकुल अलग नहीं है..बहुत सुन्दर प्रस्तुति..आभार

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  23. हमने तो गर्भनाल में भी पढ़ लिया था ... आज फिर पढ़ लिया ... बहुत बहुत बधाई ...

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  24. बहुत बहुत बधाई और शुभकामनायें!

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