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रविवार, 31 जुलाई 2011

बहारें यूँ ही नहीं आती हैं ...................

ये हरी - भरी धरा और
ये  नीला - नीला आकाश
उल्लसित प्रफुल्लित कर गया
जीने की एक हसरत दे गया
आस का एक बीज बो गया
बादल आयेंगे और बरसेंगे भी
यूँ ही धरा ने नहीं ओढ़ी धानी चादर
यूँ ही नहीं मयूर ने पंख फैलाये हैं
यूँ नहीं हर आँगन चहचहाये हैं
कोई तो कारण होगा
शायद प्रिया का पिया से मिलन होगा
शायद कहीं कोई कली चटकी होगी
शायद कहीं कोई ड़ाल झुकी होगी
शायद कहीं कोई रस बरसा होगा
शायद कहीं कोई प्रेम धुन बजी होगी
शायद कहीं कोई प्रेमराग गाया होगा
शायद कहीं कोई नव निर्माण हुआ होगा
यूँ ही धरा नहीं बदलती श्रृंगार अपना
यूँ ही धरा पर नहीं आता यौवन पूरा
यूँ ही धरा नहीं बनती दुल्हन फिर से
यूँ ही धरा नहीं करती आत्मसमर्पण अपना
जरूर कहीं सावन बरसा है
जरूर कहीं कोई मन तडपा है
जरूर कहीं कोई बिछड़ा
फिर से मिला है
मेघ यूँ ही नहीं छाते हैं
बहारें यूँ  ही नहीं आती हैं
बहारें यूँ ही नहीं आती हैं ...................

27 टिप्‍पणियां:

  1. आतीं तो नहीं - पर चली यूँ ही जाती हैं ...

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  2. सिलसिला जीवन का ...और मन के सुंदर ,ठहरे हुए भाव ...कोमल रचना का सृजन कर गए ....
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...!!

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  3. यूं ही धरा नहीं करती आत्मसमर्पण अपना
    जरूर कहीं सावन बरसा है .

    बहुत सुन्दर रचना , बधाई

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  4. सुन्दर प्रस्तुति ||
    बहुत-बहुत बधाई ||

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  5. kavitaa padhne ke baad meree bhee ummes badh gayee
    very good poem,congrats

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  6. जरूर कहीं सावन बरसा है
    जरूर कहीं कोई मन तडपा है
    जरूर कहीं कोई बिछड़ा
    फिर से मिला है
    मेघ यूँ ही नहीं छाते हैं
    बहारें यूँ ही नहीं आती हैं
    बहारें यूँ ही नहीं आती हैं ..


    बहुत सुन्दर सावनी भावाभिव्यक्ति....

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  7. खूबसूरत रचना ,प्रेम और व्याकुल मन की सुंदर प्रस्तुति

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  8. बहारें और भी आते रहेंगी बादल यूँ ही बरसते रहेंगे ...सुंदर रचना

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  9. जरूर किसी की आंखें बरसी होंगी और किसी के मन की खुश्की कम हुई होगी...

    वाह...यूँ ही मेघ नही बरसा करते ..

    बरसते हैं बस नेह बरसाने को...

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  10. कहीं न कहीं सावन का बरसना और धरा का आत्मसमर्पण ..बहुत सुन्दर प्रवाहमयी रचना

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  11. Aapane bilkul sach kaha hai.."Bahaaren u hi nahi aati"..prashanshatulya rachanaa..aabhaar..

    mere blog par aapakaa swaagata hai..

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  12. बहुत सुन्दर पोस्ट है जी!
    --
    आज पूरे 36 घंटे बाद ब्लॉग पर आया हूँ!
    धीरे-धीरे सब जगह पहुँच रहा हूँ!

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  13. सावन के कितने रूप बिखर-से गए हैं इस रचना में ...

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  14. बेहद भावमयी और खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.

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  15. क्या खूब समां बाँधा है .....वाह|

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  16. यूँ ही धरा ने नहीं ओढ़ी धानी चादर
    यूँ ही नहीं मयूर ने पंख फैलाये हैं
    यूँ नहीं हर आँगन चहचहाये हैं
    कोई तो कारण होगा
    बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना !

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  17. अच्छा लगा आपको पढ़कर....ज्वाइन भी कर लिया है आपको...३०० वें नंबर पर....आगे भी पड़ना चाहूँगा....
    मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है...

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  18. बहुत सुन्दर बरसते भावाभिव्यक्ति....

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  19. 300 फालोवर होने पर बधाई और शुभकामनाएं।

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  20. सुंदर और भावपूर्ण रचना।

    शुभकामनाएं आपको........

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