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शनिवार, 21 अप्रैल 2012

"मेरे बाद " ………एक शुरुआत





पेशे से युवा इंजिनियर सत्यम शिवम् अब ब्लॉग जगत में किसी परिचय के मोहताज नहीं . अपने लेखन और कार्यशैली से उन्होंने हर दिल में जगह बनाई है . सत्यम की रचनायें सीधे दिल को छूती हैं क्योंकि उनमे मानवीय संवेदनाएं रची बसी होती हैं आम इन्सान का दर्द होता है तो कहीं भक्ति का पथ जो सीधे प्रभु से नाता जोड़ता है .

हाल में प्रकाशित सत्यम का खुद का पहला काव्य संग्रह  "मेरे बाद "  उनकी उत्कृष्ट सोच का परिचायक है . उम्र और तजुर्बे में कम होते हुए भी इतनी गहनता और विविधता का होना ही उन्हें सबसे अलग करता है जो उनके लेखन में झलकता है .

इस काव्य संग्रह में प्रकाशित उनकी कवितायेँ बहुत धीरे से मगर अन्दर गहरे तक प्रवेश कर जाती हैं जो उनके विलक्षण व्यक्तित्व को दर्शाती हैं और ये बताती हैं कि जरूर इस पर माँ सरस्वती की असीम कृपा है वरना धर्म के गूढ़ रहस्य वो भी इतनी कम उम्र में उकेरना हर किसी के बस की बात नहीं होती जिसका अवलोकन उनकी इस कविता से किया जा सकता है 

हे देव 

ये जानती हूँ देव ! तुम मेरे नहीं हो 
तुम तो उस राधा के हो ना 
जिसके साथ तुम अक्सर रासलीला किया करते हो

जब तुम उस मीरा के नहीं हो सकते
जो तुम्हारी खातिर विष भी पी लेटी है
तो भला मेरे कैसे हो सकते हो 

मैं जानती हूँ तुम बाल कौतुहल करते करते
यमुना में भी चले आते हो 
कभी आओ ना मेरी इस यमुना में मेरे माधव

कोई नहीं है इस यमुना के किनाय्रे वंशी बजने वाला
हे वंशीधर समा जाओ ना मेरी नज़रों में

की हर ओर बस तुम ही दिखो , तुम ही .............

कितनी कातर पुकार है  साथ ही कितना अद्भुत प्रेम का विस्तार है और ये यूँ ही संभव नहीं होता जब तक कोई अलौकिक कृपा ना बरसे किसी का वरद हस्त ना हो सिर पर ............और उनकी ज्यादातर रचनाएं जीवन और उसके बाद की परिस्थितयों का आईना हैं .

"आखिरी पल का अकेला
गीत तुमको ढूँढता है
रुक ना जाए श्वांस वेला
मीत तुमको ढूँढता है 

एक बेहद गहनता लिए शाश्वत सत्य को दर्शाती रचना है . आखिरी पल में जीवन के प्रति मोह का त्याग और पिय से मिलन की आतुरता को बहुत खूबसूरती से संजोया है तो दूसरी तरफ "तुझको पा लिया " कविता में प्रभु प्रेम और उनसे मिलन का अद्भुत संगम है जो यूँ ही प्रस्फुटित नहीं हो सकता जब तक कोई इस आनंद सागर में डुबकी ना लगा ले जिसकी बानगी देखिये तो उनके ही लफ़्ज़ों में 

मन के घनघोर बादलों पे
जैसे छाई हो रात की लालिमा 
वैसे ही मैं तुझमे समा के
खुद को करूँगा लालिमा
मेरी आत्मा परमात्मा से 
मिल के जो सुख पायेगी
मैं कैसे कहूं क्या नाम दूं
शब्दों में कैसे व्यक्त करूँ
उस मधुर मिलन की कामना

वहीँ दूसरी तरफ उनका कवि मन कवि के मन की बात को भी कितनी संजीदगी से संजोता है जिसकी बानगी इन लफ़्ज़ों में देखिये

जुबान रखकर भी बेजुबान हूँ मैं
लेखनी के बिना
तो मैं कविता से अन्जान हूँ
मीलों की दूरी
कविता से कवि की हो जाती है
जब लेखनी सही वक्त पर 
साथ नहीं निभाती है


अर्जुन का धर्मसंकट नामक कविता के माध्यम से अर्जुन के डांवाडोल मन की स्थिति का और उसके प्रश्नों को खूबसूरती से सहेजा है और साथ में समाधान भी दिया है और यही कविता की उच्चता है इसका एक अंश देखिये

हे तात तुम्हारी पीड़ा का
ना कभी अंत ही होगा
जब तक ना लड़ोगे अधिकार को
तब तक ना तुम्हारा यश अमर होगा
जब पांचाली का चीरहरण
भारी सभा में सबने देखा था
सारे तुम्हारे अपनी ही तो थे
फिर क्यों ना इस अधर्म को रोका था

तर्क और वितर्क के माध्यम से अर्जुन को कैसे प्रभु उबारते हैं उसे सही ढंग से प्रस्तुत करके अपनी काव्य प्रतिभा का परिचय तो दिया ही साथ ही बता दिया की यूँ ही नहीं आसमा बुलंद होते कुछ तो हौसलों में परवाज़ होती ही है .

वहीँ दूसरी तरफ श्रृंगार रस से ओत - प्रोत कविता है "सौन्दर्यता की देवी" जो उनके कवि मन की श्रृंगारिकता को दर्शाती है .

"दर्पण से परिचय " कविता अपने आप में बेमिसाल है 

आज मुझसे पूछ बैठा
दर्पण ही मेरा परिचय
कहने लगा मैं जनता हूँ
उम्र का जो फासला किया तूने तय
मेरे नयन में तेरी छवि
है बसी बड़ी पुरानी
दर्पण को परिचय देना
तो है तेरी नादानी

दुनिया को होगी जरूरत
तेरे पहचान की
दर्पण से परिचय तो है
ठेस मेरे सम्मान की
तेरा और मेरा तो
साया तन सा साथ है
दोनों में हो कोई पहचान
परिचय को
बताओ ये कैसी बात है .........

आ गयी थी चिड़िया जो ,विचारों का घर ,आत्मा सौंप रहा हूँ ,तन का अवसान , सफ़र में ठोकर , प्रलय पुरुष उनकी बेजोड़ कृतियाँ हैं जिनमे जीवन के विविध रंग समाये हैं और साथ में अध्यात्मिक मनन भी है और वो ही उनके लेखन की शक्ति है जो इस काव्य संग्रह से दिखाई देता है . 

यूँ तो सारी पुस्तक ही बेजोड़ है मगर सबके बारे में तो नहीं लिख सकती इसलिए कुछ कवितायेँ चुन कर उनके माध्यम से सत्यम के व्यक्तित्व और लेखन पर प्रकाश डालने की कोशिश भर की है . 


दुआ करती हूँ उनके लेखन और जीवन पर प्रभु का वरद हस्त हमेशा कायम रहे और वो ज़िन्दगी में उन्नति और सफलता के शिखर छूते रहें. 



अगर कोई पढना चाहे तो सत्यम से मोबाइल या मेल पर संपर्क कर सकता है उसके लिंक दे रही हूँ

satyamshivam95@gmail.com

M: 9934405997,9031197811

16 टिप्‍पणियां:

  1. कम लफ़्ज़ों में एक मुकम्मल बयान

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  2. शिवम साहब के बारे में बहुत अच्छा बताया.

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  3. आपकी कलम से शिवम जी को पढ़ना अच्‍छा लगा बहुत ही सार्थक समीक्षा की है ... बधाई सहित शुभकामनाएं

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  4. bahut sundar sameeksha ki vandana satyam ji ke upar humesha maa sarasvati ki krapa bani rahe.shubhkamnayen.aur aapko bhi is pyaari sameeksha ke liye shabaashi.

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  5. सत्यम शिवम् की पुस्तक पर बढ़िया विवेचना .
    शिवम् ने छोटी उम्र में भी बड़ी सफलता हासिल की है .
    बधाई .

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  6. shivm jee ko hardi shubhkeeamayein..aapke lekha ko salam...behtarin

    sadar badhay ke sath

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  7. विविधता को विस्तार लिये हैं कविता के विषय..

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  8. सत्यम जी को शुभकामनायें. सुंदर समीक्षा. रचनाओं से परिचय कराना बड़ा अच्छा लगा.

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    लिंक आपका है यहीं, कोई नहीं प्रपंच।।
    आपकी प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  10. अच्छी चर्चा की है ..पुस्तक जरुर संग्रह योग्य होगी.

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  11. बहुत सुंदर रचनाएँ..... शिवम् जी की पुस्तक की सुंदर समीक्षा .....

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  12. सत्यम शिवम् की पुस्तक पर बढ़िया विवेचना .

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  13. आपकी चर्चा अति सार्थक,रोचक और विश्लेषणात्मकता
    है.शिवम जी की पुस्तक व उनके लेखन की बहुत अच्छी जानकारी आपने अपनी अनोखी शैली में दी है बहुत बहुत आभार,वंदना जी.

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