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गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

बुद्ध .........कौन ? ........एक दृष्टिकोण


बुद्ध .........कौन ? ........एक दृष्टिकोण 



बुद्ध .........कौन ? 
सिर्फ एक व्यक्तित्व या उससे भी इतर कुछ और ? एक प्रश्न जिसके ना जाने कितने उत्तर सबने दिए. यूँ तो सिद्धार्थ नाम जग ने भी दिया और जिसे उन्होंने सार्थक भी किया ..........सिद्ध कर दे जो अपने होने के अर्थ को बस वो ही तो है सिद्धार्थ ..........और स्वयं को सिद्ध करना और वो भी अपने ही आईने में सबसे मुश्किल कार्य होता है मगर मुश्किल डगर पर चलने वाले ही मंजिलों को पाते हैं  और उन्होंने वो ही किया मगर इन दोनों रूपों में एकरूपता होते हुए भी भिन्नता समा ही गयी जब सिद्धार्थ खुद को सिद्ध करने को अर्धरात्रि में बिना किसी को कुछ कहे एक खोज पर चल दिए . अपनी खोज को पूर्णविराम भी दिया मगर क्या सिर्फ इतने में ही जीवन उनका सार्थक हुआ ये प्रश्न लाजिमी है . यूँ तो दुनिया को एक मार्ग दिया और स्वयं को भी पा लिया मगर उसके लिए किसी आग को मिटटी के हवाले किया , किसी की बलि देकर खुद को पूर्ण किया जिससे ना उनका अस्तित्व कभी पूर्ण हुआ .......हाँ पूर्ण होकर भी कहीं ना कहीं एक अपूर्णता तो रही जो ना ज़माने को दिखी मगर बुद्ध बने तो जान गए उस अपूर्णता को भी और नतमस्तक हुए उसके आगे क्यूँकि बिना उस बेनामी अस्तित्व के उनका अस्तित्व नाम नहीं पाता , बिना उसके त्याग के वो स्वयं को सिद्ध ना कर पाते ...........इस पूर्णता में , इस बुद्धत्व में कहीं ना कहीं एक ऐसे बीज का अस्तित्व है जो कभी पका ही नहीं , जिसमे अंकुर फूटा ही नहीं मगर फिर भी उसमे फल फूल लग ही गए सिर्फ और सिर्फ अपने कर्त्तव्य पथ  पर चलने के कारण , अपने धर्म का पालन करने के कारण ........नाम अमर हो गया उसका भी ...........हाँ .......उसी का जिसे अर्धांगिनी कहा जाता है ..........आधा अंग जब मिला पूर्ण से तब हुआ संपूर्ण ..........वो ही थी वास्तव में उनके पूर्णत्व की पहचान ............एक दृष्टिकोण ये भी है इस पूर्णता का , इस बुद्धत्व का जिसे हमेशा अनदेखा किया गया .






पूर्णत्व की पहचान हो तुम 




यधोधरा
तुम सोचोगी
क्यो नही तुम्हे 
बता कर गया
क्यो नही तुम्हे 
अपने निर्णय से 
अवगत कराया
शायद तुम ना 
मुझे रोकतीं तब
अश्रुओं की दुहाई भी
ना देतीं तब
जानता हूँ
बहुत सहनशीलता है तुममे
मगर शायद 
मुझमे ही 
वो साहस ना था
शायद मै ही
कहीं कमजोर पडा था
शायद मै ही तुम्हारे
दृढ निश्चय के आगे
टिक नही पाता
तुम्हारी आँखो मे
देख नही पाता 
वो सच 
कि देखो 
स्त्री हूँ
सहधर्मिणी हूँ
मगर पथबाधा नही
और उस दम्भ से 
आलोकित तुम्हारी मुखाकृति
मेरा पथ प्रशस्त तो करती
मगर कहीं दिल मे  वो 
शूल सी चुभती रहती
क्योंकि 
अगर मै तुम्हारी जगह होता
तो शायद ऐसा ना कर पाता
यशोधरा 
तुम्हे मै जाने से रोक लेता
मगर तुम्हारा सा साहस ना कहीं पाता
धन्य हो तुम देवी
जो तुमने ऐसे अप्रतिम 
साहस का परिचय दिया
और मुझमे बुद्धत्व जगा दिया
मेरी जीवत्व से बुद्धत्व तक की राह में 
तुम्हारा बलिदान अतुलनीय है 
गर तुम मुझे खोजते पीछे आ गयीं होतीं
तो यूँ ना जन कल्याण होता 
ना ही धर्म उत्थान होता 
हे देवी !मेरे बुद्धत्व की राह का
तुम वो लौह स्तम्भ हो 
जिस पर जीवों का कल्याण हुआ 
और मुझसे पहले पूर्णत्व तो तुमने पा लिया 
क्योंकि बुद्ध होने से पहले पूर्ण होना जरूरी होता है
और तुम्हारे बुद्धत्व में पूर्णत्व को पाता सच 
या पूर्णत्व में समाहित तेजोमय ओजस्वी बुद्धत्व
तुम्हारी मुखाकृति पर झलकता 
सौम्य शांत तेजपूर्ण ओज ही तुम्हारी 
वो पहचान है जिसे गर मैं
तुम्हारी जगह होता 
तो कभी ना पा सकता था 
हाँ यशोधरा ! नमन है तुम्हें देवी 
धैर्य और संयम की बेमिसाल मिसाल हो तुम 
स्त्री पुरुष के फर्क की पहचान हो तुम 
वास्तव में तो मेरे बुद्धत्व का ओजपूर्ण गौरव हो तुम 
नारी शक्ति का प्रतिमान हो तुम 
बुद्ध की असली पहचान हो तुम ........सिर्फ तुम 

29 टिप्‍पणियां:

  1. बुद्ध की यशोधरा .... बहुत सुंदर प्रस्तुति

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  2. सशक्‍त भाव संयोजन लिए उत्‍कृष्‍ट लेखन ।

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  3. बिलकुल..बुद्ध के बुद्धत्व का क्रेडिट यशोधरा को ही जाना चाहिए.

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  4. बुद्ध को बुद्धत्व की पहचान मिली...आम आदमी को सन्मार्ग की राह मिली...जब कि यशोदरा एक प्रज्वलित ज्योति बन कर सामने आई!...नारी शक्ति के रूप में इस धरती पर अवतरित हुई!..सार्थक रचना...आभार!

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  5. यशोधरा का दृष्टिकोण उजागर करती है ये पोस्ट.....शायद गुरुवर रविन्द्र की भी ऐसी एक कविता पढ़ी थी कभी.....संसार से भाग जाना ही पूर्णत्व की प्राप्ति के लिए ज़रूरी नहीं ये 'बुद्ध' ने भी स्वीकार किया था जब यशोधरा ने कहा जो आपने पाया वो 'यहाँ' भी तो पाया जा सकता था......बहुत सुन्दर पोस्ट......शुभकामनायें इसके लिए।

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  6. बढ़िया चिंतन परक पोस्ट .भाव अनुभाव दर्शन को खंगालती .http://kabirakhadabazarmein.blogspot.in/कृपया यहाँ भी पधारें -
    जानकारी :कोलरा (हैजा ).सहमत आपके प्रस्तावों से .बढ़िया पोस्ट है .

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  7. बुद्ध है एक अत्यंत सरल
    उलझी पहेली पहेली
    जो यदि समझ गया तो
    एह संश्पर्श ही काफी है,
    समझ न सका तो कई कई
    जीवन भी छोटे और झूठे.
    ऐसे व्यत्तित्व पर लेखनी
    उठाना और सरलता से
    जन सामान्य को समझा देना
    मैं नहीं समझता कि बिना
    बुद्ध के कृपा संभव है यह?

    जवाब देंहटाएं
  8. बुद्ध है एक अत्यंत सरल
    उलझी पहेली पहेली
    जो यदि समझ गया तो
    एह संश्पर्श ही काफी है,
    समझ न सका तो कई कई
    जीवन भी छोटे और झूठे.
    ऐसे व्यत्तित्व पर लेखनी
    उठाना और सरलता से
    जन सामान्य को समझा देना
    मैं नहीं समझता कि बिना
    बुद्ध के कृपा संभव है यह?

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  9. हां यशोधरा बुध्दत्व की पहचान हो तुम । आपके इस लेख ने एक नया नज़रिया प्रस्तुत किया है । कल मेरी पोती पूछ रही थी , आजी, सिध्दार्थ का अर्थ क्या है ? मैने उसे बताया कि सिध्द यानी मास्टर और अर्थ यानि संपत्ती, ये संप्पत्ती बौध्दिक ही थी बुध्द के लिये क्यूकि साधारण संपत्ती तो वे छोड कर आये थे । जीवन का अर्थ जिसने जान लिया वह सिध्दार्थ यह सही है ।

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  10. ‎:) bahumukhi pratibha ke dhani ........:) Budhh nahi aap ho Vandana :) itni suksh vivechana isliye to Buddh ka kar paye aap:) dhanya hain ham...!

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  11. वाह...!
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    --
    बुद्धं शरणम् गच्छामि!

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  12. बहुत ही सार्थक अभिव्यक्ति

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  13. यशोधरा के त्याग और दुःख को आपने समझा और लिखा ....कबीले तारीफ़ हैं ये ....बहुत खूब

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  14. ऐसे ही नहीं कहा गया है कि पुरुष की हर सफलता के पीछे एक नारी शक्ति होती है।

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  15. हमेशा की तरह...अति सुन्दर ..हार्दिक बधाई..

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  16. बुद्ध है एक अत्यंत सरल
    उलझी पहेली पहेली
    जो यदि समझ गया तो
    एह संश्पर्श ही काफी है,
    समझ न सका तो कई कई
    जीवन भी छोटे और झूठे.
    ऐसे व्यत्तित्व पर लेखनी
    उठाना और सरलता से
    जन सामान्य को समझा देना
    मैं नहीं समझता कि बिना
    बुद्ध के कृपा संभव है यह?

    बुद्ध ने पहले ही
    कह दिया था -
    यशोधरा!
    तुम नहीं यशोधरा,
    तू तो धरा की यश है.
    तुझे बुद्ध बन कर जीना है....

    वंदन जी,
    लाजवाब प्रस्तुति, आभार, पुनः पुनः आभार..

    जवाब देंहटाएं
  17. बुद्ध है एक अत्यंत सरल
    उलझी पहेली पहेली
    जो यदि समझ गया तो
    एह संश्पर्श ही काफी है,
    समझ न सका तो कई कई
    जीवन भी छोटे और झूठे.
    ऐसे व्यत्तित्व पर लेखनी
    उठाना और सरलता से
    जन सामान्य को समझा देना
    मैं नहीं समझता कि बिना
    बुद्ध के कृपा संभव है यह?

    बुद्ध ने पहले ही
    कह दिया था -
    यशोधरा!
    तुम नहीं यशोधरा,
    तू तो धरा की यश है.
    तुझे बुद्ध बन कर जीना है....

    वंदन जी,
    लाजवाब प्रस्तुति, आभार, पुनः पुनः आभार..

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  18. जो अपने अर्थ को सिद्ध कर दे, वह सिद्धार्थ।

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  19. bahut hi sundar kavita ..kuch aise chchre hote hai jo dunia ke samne nahin aate par tyag ki anuthi misal hote hai

    मत भेद न बने मन भेद- A post for all bloggers

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  20. वास्तविक घटना और कहानी क्या है,यह तो राम ही जाने.पर आपने अपने दृष्टिकोण से जिन भावों को
    प्रकट किया है,वे अच्छे लगे.

    अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार.

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  21. सत्य का अन्वेषण
    अनिवार्य हो गया
    निर्मल था चित्त
    प्रबुद्ध हो गया
    सत्य की खोज में
    बुद्ध खो गया

    एक सत्य ,एक खोज ,बधाई

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  22. तुम्हारी मुखाकृति पर झलकता
    सौम्य शांत तेजपूर्ण ओज ही तुम्हारी
    वो पहचान है जिसे गर मैं
    तुम्हारी जगह होता
    तो कभी ना पा सकता था

    ....बहुत भावपूर्ण और सशक्त रचना...

    जवाब देंहटाएं
  23. बहुत ही बढि़या प्रस्‍तुति।

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया