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बुधवार, 4 अप्रैल 2012

हाय रे वो श्याम क्यूँ ना आये




हाय रे वो श्याम क्यूँ ना आये
रो रो बीतीं रतियाँ सारी
उम्र भी हो गयी आज बंजारिन
हाय रे वो श्याम क्यूँ ना आये

प्रीत की रीत निभानी छोड़ी
मेरी बारी क्यूँ रीत है तोड़ी
बावरी हो गयी प्रीत निगोड़ी
हाय रे वो श्याम क्यूँ ना आये

दरस बिन अँखियाँ तरस गयीं
बिन बदरा के बरस गयीं
श्याम छवि में अटक गयीं 
हाय रे वो श्याम क्यूँ ना आये

श्याम को लिखती रोज हूँ पाती
बिन पते के वापस आ जाती 
कित ढूंढूं मै तुमको मोहन 
अब तो दे दो मुझको दर्शन
हाय रे वो श्याम क्यूँ ना आये

22 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर भक्तिमयी प्रस्तुति..

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  2. बहुत सुन्दर भक्तिभाव से ओतप्रोत रचना...जय श्री कृष्ण

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  3. श्‍याम को लिखती रोज हूं पाती,

    बिन पते के वापस आ जाती ...

    वाह .. वाह.. बहुत खूब ।

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  4. बहुत खूब
    भक्ति और विरह का बढ़िया संगम |
    बधाई |

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  5. वन्दना जी-- अच्छी कविता है..व सुन्दर भाव हैं...

    --वो श्याम ...से अर्थ निकलता है कि ’श्याम कई है”......या अपने किसी अपने विशेष श्याम की बातें होरही हैं न कि राधाजी के श्याम की...
    --अतः यदि जग प्रसिद्ध ’श्याम’ की बात हो रही है तो..."वो" ..शब्द निरर्थक व अनावश्यक है, सिर्फ़ ’श्याम नहीं आये’ ही
    अभीष्ट अर्थदायी है.. ...

    --- पन्क्तियों में मात्रायें भी गिन लिया कीजिये..जो सब में समान होनी चाहिये...

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  6. आपकी पोस्ट कल 5/4/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    http://charchamanch.blogspot.com
    चर्चा - 840:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  7. बहुत सुंदर गीतमई रचना ...वंदना जी ...
    शुभकामनायें ...

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  8. वंदना जी बहुत सुंदर गीत लिखा आपने
    बिलकुल भक्ति प्रेम में डूबा हुआ ....

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  9. सुन्दर भक्तिमय रचना...
    सुन्दर प्रस्तुति....

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  10. बहुत सुन्दर भावमय प्रस्तुति.
    अब तो श्याम को आना ही पड़ेगा.

    डॉ श्याम तो आ ही चुके हैं.
    वो वाले भी जरूर आयेंगें,वंदना जी.
    क्योंकि जो दिल से पुकारे,
    वो भी उसी के ही हैं जी.

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