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शुक्रवार, 18 जनवरी 2013

स्त्री तो स्त्री होती है

स्त्री तो स्त्री होती है
फिर चाहे वो
पड़ोस की हो
पडोसी नगर की हो 
या पडोसी मुल्क की
मिल जाता है तुम्हें लाइसेंस
उसके चरित्र के कपडे उतारने का
उसको शब्दों के माध्यम से बलात्कृत करने का
उसको दुश्चरित्र साबित करने का
फिर चाहे उम्र , ओहदे या चरित्र में
तुमसे कितनी ही ऊँची हो
और इस  जद्दोजहद में तुम
दे जाते हो अपने चरित्र का प्रमाणपत्र
दे जाते हो तुम अपने संस्कारों का प्रमाणपत्र
कर जाते हो शर्मिंदा उस कोख को भी
जिसने तुम्हें जन्म दिया
मगर तुम्हारी जड़ सोच को जो न बदल सकी
माँ  , बहन , बेटी बनकर भी ..........
मगर तुम्हें फर्क नहीं पड़ता
आदिम वर्ग के मनु
मानसिक विक्षिप्त हो
तुम , तुम्हारी सोच और तुम्हारी जाति भी 


और अब मैं शतरुपा 
प्रतिनिधित्व कर रही हूँ 
स्त्री जाति का , उसके अस्तित्व का ,उसके सम्मान का बिगुल फ़ूँक कर ……


क्योंकि
जान गयी हूँ
तुम्हारे लिए
स्त्री तो सिर्फ स्त्री होती है
फिर चाहे वो
पड़ोस की हो
पडोसी नगर की हो 
या पडोसी मुल्क की .............

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सशक्त रचना .... पुरुष मानसिकता को उजागर करती हुई ।

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  2. पुरुष प्रधान समाज का यथार्थ...

    जवाब देंहटाएं
  3. सबके प्रति एक दृष्टि..सुन्दर आलेख..

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत सशक्त , झकझोरती प्रस्तुति,आभार

    जवाब देंहटाएं
  5. प्रभावशाली ,
    जारी रहें।

    शुभकामना !!!

    आर्यावर्त (समृद्ध भारत की आवाज़)
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    जवाब देंहटाएं
  6. क्योंकि
    जान गयी हूँ
    तुम्हारे लिए
    स्त्री तो सिर्फ स्त्री होती है
    फिर चाहे वो
    पड़ोस की हो
    पडोसी नगर की हो
    या पडोसी मुल्क की .............


    समाज की असल तस्वीर से रुबरू कराती सार्थक रचना.. बहुत प्रभावी

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  7. बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  8. समाज की असलियत दिखाती एक सार्थक रचना।

    जवाब देंहटाएं

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