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मंगलवार, 5 मार्च 2013

जलती आग के हिंडोलों पर पींगें भरने का अपना ही शऊर होता है


उफ़  ! ना ना ना
मत कोशिश करना
निकालने या गिनने की
ये तो हसरतें हैं
जो उगी हैं वक्त की सांसों पर
खराश बनकर
क्या फ़र्क पडता है
चेहरा सुन्न हो या
गुलाब सा खिला
हमने तो मोहब्बत कर ली है
जलते आतिशदानों से
आइनों की जरूरत क्या अब
जलती आग के हिंडोलों पर पींगें भरने का अपना ही शऊर होता है

23 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब ...
    मुहब्बत की कैसी इन्तहा ...
    कोई हद नहीं है मुहब्बत की ये सच है ...

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  2. बढ़िया है आदरेया- -
    शुभकामनायें आपको-

    जवाब देंहटाएं
  3. अरे वाह!
    कम शब्दों में बहुत कुछ कह दिया आपने तो!

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    धन्यवाद
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  5. मत कोशिश करना
    निकालने या गिनने की
    ये तो हसरतें हैं
    जो उगी हैं वक्त की सांसों पर
    खराश बनकर

    ....कितना कठिन है यह कार्य...बहुत संवेदनशील अभिव्यक्ति...

    जवाब देंहटाएं
  6. बस अब बढ़ने के बाद कदम रुकते कहाँ ....
    लाजवाब रचना !

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  7. क्या बात है वंदना जी...ठीक ही है..ये इश्क नहीं आसान...... एक आग का दरिया है और...

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  8. हाँ, प्रेम करना आग में जलने से क्या कम है?

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  9. वाह . एक अरसे के बाद इतनी जानदार नज़्म पढ़ी ...कमाल के अशआर हैं ...दिल की बात सीधे दिल तक पहुंची।

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