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गुरुवार, 13 जून 2013

निष्ठुर प्रेमिका और दीवानावार प्रेमी



प्रेमी : तुम मुझे अच्छी लगती हो 
प्रेमिका : तो अपनी सीमा में रहकर चाहो 

प्रेमी : तुमसे प्यार करता हूँ 
प्रेमिका : तो अपने मन में सराहो 
उस चाहत का सरेआम 
क्यूँ बाज़ार लगाते हो ?
क्यूँ मेरी सीमाओं का अतिक्रमण करते हो ?

तुम्हारी 
पसंद तुम्हारी चाहत 
तुम्हारे वजूद का हिस्सा है 
क्यूँ उसे मेरे
वजूद पर हावी करते हो 
क्यूँ मुझसे अपने प्रेम का 
प्रतिकार चाहते हो 

प्रेमी : चाहत तो प्रतिकार चाहती ही हैं 
प्रेम का इज़हार चाहती है

प्रेमिका : मगर मैंने कब कहा 
तुमसे प्रेम करती हूँ ?

प्रेमी : जब तक इज़हार न करूंगा 
तो कैसे अपने प्रेम का 
बीज तुम्हारे ह्रदय में रोपूँगा 
जब प्रेम का अंकुर फूटेगा 
तब इज़हार स्वयं हो जाएगा 

प्रेमिका : तो जाओ ! 
धूनी रमाओ 
और करो कोशिश 
बीज रोपित करने की 
मगर इतना जान लो 
मरुभूमि में सिर्फ कैक्टस ही उगा करते हैं 

एक संवेदनहीन प्रेमिका 
एक दीवानावार प्रेमी 
एक तपता  रेगिस्तान 
एक शीतल हवा का झोंका 
किसी कहानी के टुकड़े सा 
क्या कभी एक कश्ती में सवार हो पाए हैं 
क्या कभी मोहब्बत के फूल 
चिताओं की राख पर उग पाए हैं 
प्रेमी प्रेमिका के संवाद की तरह 
क्या कभी कोई खुशबू बिखेर पाए हैं 
ख़ोज में हूँ ....संवाद की सार्थकता की  
उस निष्ठुर प्रेमिका की 
जो जलती लकड़ी सी हर पल सुलगती हो 
और उस दीवानावार प्रेमी की 
जो किसी दरवेश सा , किसी जोगी सा 
सिर्फ प्रेम की अलख जगाये 
मन के इकतारे पर एक धुन बजाता हो 
और मरुभूमि में उपजे कैक्टस में भी 
प्रेम रस की धारा बहाता हो ..................
जहाँ संवाद हकीकत बन जाए 
और एक प्रेम कुसुम मेरी रूह पर भी खिल जाए 
खोज रही हूँ ........खुद में वो निष्ठुर प्रेमिका 
और एक अदद ...............................

11 टिप्‍पणियां:

  1. समझ में नहीं आ रहा क्या कहूं..
    लेकिन जब बात ऐसी हो जाए,
    तो बस ईश्वर से प्रार्थना कि वो
    दोनों सद् बुद्धि दें।
    बढिया प्रस्तुति...

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  2. वाह यह तो हीर-रांझा फ़ि‍ल्‍म सी प्रेममय कवि‍ता है :-)

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  3. खोज रही हूँ ........खुद में वो निष्ठुर प्रेमिका
    और एक अदद ...............................
    दीवानावार :) बहुत खूब ...

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  4. आप तो बहुत ही अच्‍छा लिखती है ....

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  5. प्रमिका के हृदय में जब तक प्यार उपजेगा ...तब तक तो खुदा खेर करे

    गंभीर लेखन

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  6. गहरे बहरे रास्ते, काश सब एक दूसरे को समझ जाते प्रेम में।

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  7. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शुक्रवार (14-06-2013) के "मौसम आयेंगें.... मौसम जायेंगें...." (चर्चा मंचःअंक-1275) पर भी होगी!
    सादर...!
    रविकर जी अभी व्यस्त हैं, इसलिए मंगलवार की चर्चा मैंने ही लगाई है।
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  8. कहते हैं प्रेम में ऐसी आग होती है जो पत्थर को भी पिघला देती है,प्रेमी को यही आशा है . सुन्दर प्रस्तुति!
    latest post: प्रेम- पहेली
    LATEST POST जन्म ,मृत्यु और मोक्ष !

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  9. बहुत ख़ूबसूरत प्रेममयी प्रस्तुति..

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अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया