कहकहों के सफ़र की जमीन ना पूछ
दलदली मिट्टी मे धंसे पाँव कब आगे बढे हैं
मै ना बढा ना सही मगर
उदासियों के कम्बल तू भी ना ओढ
हो सके तो इतना कर
मेरे पाँव के नीचे से ये दलदल निकाल दे
दे दे मुझे जमीन का एक टुकडा ही
जिस पर खडे हो आसमाँ निहार सकूँ
कुछ देर मुस्कुरा सकूँ
कर्ज़ उतारने के लिये
एक करम इतना ही कर दे .....ओ खुदा
मुस्कुराहटों पर से दर्द के लिबास ही उतार दे
बहुत सु्न्दर प्रस्तुति...
जवाब देंहटाएंकल 24/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
सुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंDard ka libas...bahut sundar abhiwakyti
जवाब देंहटाएंआमीन...मुस्कुराहटें मुबारक हों..
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति ।
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