कोई महबूब होता
तो झटकती जुल्फों से
गिरती बूंदों को सहेज लेता
कोई महबूब होता
तो आँखों में ठहरे
सागर को घूँट भर पी लेता
कोई महबूब होता
तो होठों पर रुकी बातों की
मुकम्मल इबादत कर लेता
कोई महबूब होता
तो अदाओं की शोखियों से
एक नगमा बुन लेता
कोई महबूब होता
तो दर्द की जकड़नों से
मोहब्बत की रूह आज़ाद कर देता
कोई महबूब होता
तो रेशम के पायदानों पर
गुलाब बिछा सिज़दे किया करता
कोई महबूब होता
तो चौखट पर खड़ा हो
मोहब्बत के मुकम्मल होने तक आमीन किया करता
कोई महबूब होता
तो चेनाब के पानी से
मोहब्बत के घड़े भरा करता
दर्द के गुबार हों
ज़ख्मों के मेले
ग़मों के शहरों में
नहीं लगा करते मह्बूबों के मेले
ये जानते हुए भी
जाने क्यों रूह बावस्ता हुए जाती है
इक अदद महबूब की ख्वाहिश में सुलगे जाती है
उफ़ ………… मोहब्बत
क्यों ठहर जाती है तेरी चाहत
अधूरी प्यास के अधूरे तर्पण सी
कोई महबूब होता तक ही ……
वाह जी वाह , बरसते मेघ और मुहब्बत राग ...अहा :) गजब जुगलबंदी साधी आपनी :) :)
जवाब देंहटाएंbadhiya !
जवाब देंहटाएं@अजय कुमार झा जी क्या करें मोहब्बत होती ही पहाडी घटा सी है कब बरस जाये कौन जानता है , बस भीगने को तैयार रहना चाहिए :)
जवाब देंहटाएंहा हा हा दोस्त जी , खूब भीगें और हमें भी अपनी स्नेहिल बूंदों की बौछार से सराबोर होने दें ...बहुत बहुत शुभकामनाएं आपको
जवाब देंहटाएंकोई नहीं खुद को बनना होगा खुद का महबूब और तब सारी कायनात बन जाती है महबूब...
जवाब देंहटाएंkhoo6surat vichaar..
जवाब देंहटाएंkhoo6surat vichaar..
जवाब देंहटाएंKoi mahboob hota to ......waah kya baat hai..sunder !!
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