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गुरुवार, 6 नवंबर 2014

खामोशियों के पाँव में घुँघरू नहीं होते

खामोशी का बीज वक्तव्य सिर्फ़ इतना था 
कोई मुझसे इतर मुझमें पैठा था 
जब भी झाँका ख्याले अंजुमन में 
सिर्फ़ चुप्पियों का कोलाहल था  

दरकने को न जमीं थी न सुराख़ को आस्माँ 
मेरी ख़ामोशियों का कोई राज़-ए -खुदा न था 

जब दिन की हँसी रातों के गुलाब खिलने का आसार था 
तब अश्कों के पलकों पर ठहरने के मौसम खुशगवार था 
ये जानकर खामोशियों के पाँव में घुँघरू नहीं होते 
यूँ इक रूह के भटकने का तमाम इंतजाम था 

शायद तभी ज़िद पर अडी खामोशियाँ किसी रुत की मोहताज़ नहीं होतीं ……



2 टिप्‍पणियां:

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