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रविवार, 25 जनवरी 2015

ये कैसा बसंत आया ...........

ये कैसा बसंत आया सखी री 
न आम के नए बौर आये 
न कोयल ही कुहुकी 
न सरसों ही खिली 
न पी कहाँ पी कहाँ कह 
पपीहे ने शोर मचाया 
ये कैसा बसंत आया सखी री 

शीत लहर ही अपने रंग दिखाए 
अबके न अपने देस जाए 
जाने कौन पिया इसके मन भाये 
जो ये खेतिहरों को रही डराय 
ये कैसा बसंत आया सखी री 

न मन में उमंग उठी 
न गोरी कोई पिया मिलन को चली 
न कंगना कोई खनकाय 
न पायल कोई छनकाय 
जो मतवाली हो ऋतु बसंत 
प्रेमियों को देती थी भरमाय 
ये कैसा बसंत आया सखी री 
ये कैसा बसंत आया ...........


3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही सुन्दर और सार्थक प्रस्तुति, गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाये।

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  2. लगता है वसंत अभी आने को है...जरा सा इंतजार..

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  3. अनुपम रचना...... बेहद उम्दा और बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
    नयी पोस्ट@मेरे सपनों का भारत ऐसा भारत हो तो बेहतर हो
    मुकेश की याद में@चन्दन-सा बदन

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