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शुक्रवार, 29 जनवरी 2016

घुलनशील पदार्थ




अपने आने जाने के क्रम में
कितनी ही उठापटक कर लें
मगर हश्र अंततः मिटना ही है
फिर वो कोई भी हो
चिंताएं , ज़िन्दगी या इन्सान

तिल तिल कर जलने से नहीं मिटा करतीं
जबरन चाहतों पर फूल नहीं चढवाये जा सकते
चिंताओं की अनगिनत लकीरों में
उम्र के तकाज़े फीके पड़ने लगते हैं

तमाम पोशीदा राज़ मानो
उघड़ने को आतुर हो उठते हों
मगर
नफीरियों के बजने से ही तो
नहीं होता इल्म बारात का
वक्त की नज़ाकतें ही
तजवीजें उपलब्ध कराती हैं
मुक्ति की

ये एक आत्मघाती हमला है
बचाव का कोई साधन नहीं
फिर भी
जाने क्यों ढोई जाती हैं चिता तक
जबकि जानते हैं सब
घुलनशील पदार्थ सी तो होती हैं चिंताएं

5 टिप्‍पणियां:

  1. चिन्तायें घुलनशील होती हैं, अस्तित्व में घुल जाती हैं।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (30-01-2016) को "प्रेम-प्रीत का हो संसार" (चर्चा अंक-2237) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग जगत की एक और नायाब पोस्‍ट

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    जवाब देंहटाएं

  4. आज पांच लिंकों का आनंद अपना 200 अंकों का सफर पूरा कर चुका है.. इस विशेष प्रस्तुति पर अपनी एक दृष्टि अवश्य डाले....
    आपने लिखा...
    और हमने पढ़ा...
    हम चाहते हैं कि इसे सभी पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 02/02/2016 को...
    पांच लिंकों का आनंद पर लिंक की जा रही है...
    आप भी आयीेगा...

    जवाब देंहटाएं

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया