पेज

बुधवार, 2 नवंबर 2016

आ जाओ या बुला लो

आ जाओ या बुला लो
इन्ही रूई के फाहों सम
कि
पिघल न जाऊँ
गुजरे वक्त के साथ
फिर तुम आवाज़ दो तो भी आ न सकूँ


कि
यादों के आगोश में
इक बर्फ अब भी पिघलती है
क्या नम नहीं हुईं तुम्हारी हथेलियाँ


यूँ कि ये
बर्फ के गिरने का समय है
या
तुम्हारी यादों का कहर
गोया अनजान तो नहीं होंगी तुम
जानता हूँ मैं


आ जाओ या बुला लो
वक्त के फिसलने से पहले ...


पहली पंक्ति विजय सपत्ति से साभार 


डिसक्लेमर :
ये पोस्ट पूर्णतया कॉपीराइट प्रोटेक्टेड है, ये किसी भी अन्य लेख या बौद्धिक संम्पति की नकल नहीं है।
इस पोस्ट या इसका कोई भी भाग बिना लेखक की लिखित अनुमति के शेयर, नकल, चित्र रूप या इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रयोग करने का अधिकार किसी को नहीं है, अगर ऐसा किया जाता है निर्धारित क़ानूनों के तहत कार्रवाई की जाएगी।
©वन्दना गुप्ता vandana gupta

1 टिप्पणी:

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया