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मंगलवार, 18 जून 2019

हम शर्मिंदा हैं


मरे हुए लोग हाय हाय नहीं करते
मरे हुए लोगों की कोई आवाज़ नहीं होती
मरे हुए लोगों की कोई कम्युनिटी नहीं होती
जो कोशिशों के परचम लहराए
और हरी भरी हो जाए धरा मनोनुकूल

आइये हम अपने लिए शांति पाठ करें
यूँ कहकर
हम शर्मिंदा हैं कि हम मर चुके हैं
बच्चों हम से कोई उम्मीद मत रखना
हम बस तुम्हारे लिए नहीं
स्वयं के लिए
स्वयं को साबित करने के लिए
दो शब्द लिखने को जिंदा होते हैं
और फिर मर जाते हैं

हम भूल चुके हैं
जब एक बच्चा मरता है
तब लाखों उम्मीदें मरती हैं
और करोड़ों संभावनाएं
मरे हुए लोगों को नहीं होता सरोकार किसी जीवित से
फिर एक मरे या सौ

मरना हमारे समय का सबसे सुभीता शब्द है
आइये मरने को राष्ट्रीय शब्द घोषित करें

1 टिप्पणी:

  1. बेहद दुखद और अफसोसजनक,चिकित्सा विज्ञान कहाँ से कहाँ पहुँच गया है पर अब भी आम आदमी इससे वंचित है

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