शून्य से शून्य की ओर जाता ये जीवन
कभी न भर पाता ये शुन्य
पैसा, प्यार, दौलत ,शोहरत
कितना भी पा लो फिर भी
शून्यता जीवन की
कभी न भर पाती
हर पल एक भटकाव
कुछ पाने की लालसा
क्या इसी का नाम जीवन है
हर कदम पर एक शून्य
राह ताकता हुआ
शून्य स शुरू हुआ ये सफर
शून्य में सिमट जाता है
जीवन की रिक्तता
जीवन भर नही भरती
और हम
शून्य से चलते हुए
शून्य में सिमट जाते हैं
बहुत सुन्दर जीवन को परिभाषित किया है।
जवाब देंहटाएंबहुत बढिया रचना है।
jeevan ki sahi abhivyakti
जवाब देंहटाएंhar pankti apne aap mein ek sach hai
badhai
vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/
Kaphi arthpurna.
जवाब देंहटाएंशून्य में दुनिया समाई, शून्य से संसार है।
जवाब देंहटाएंशून्य ही तो गणित का आधार है।