भावुक मन की भावुक बातें भावुक दिल ही समझता है
हर भावुक मन में इक भावुक दिल धड़कता है
नारी ह्रदय की पीड़ा को
जब नारी ह्रदय भी
नही समझता है
हाय! ये कैसे दंश है
जो हर पल दिल में सिसकता है
पुरूष ह्रदय को कठोर कहने वालों
क्या तुम्हारा ह्रदय तड़पता है
नारी क्यूँ नारी की तड़प को
समझ नही पाती है
क्या वो तपिश उसने नही सही थी
हर पल हर नारी जब
उन्ही हालत से गुजरी हो
फिर कैसे नारी होकर
नारी का दर्द नही समझती है
ये कैसे नारी रूप है
ये कैसे नारी ह्रदय है
जो नारी के लिए न रोता है
नारी मन होकर भी
नारी का दुश्मन बन
नारी को ही तडपता है
फिर कहो कैसे
नारी ह्रदय को
कोमल ह्रदय मानें
ये तो पुरूष की
कठोरता से भी
कठोर बन जाता है
जब पुरूष नारी के
उत्थान में साथ हो सकता है
उसके दर्द को समझ सकता है
फिर क्यूँ
नारी ही नारी की नही बन पाती है
उल्लेखनीय प्रविष्टि। धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत सजग कविता है!
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना....
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा.....
जवाब देंहटाएंvandana ji , bahut achai kavita ,
जवाब देंहटाएंin fact naariyon ki bhaavnao ko aapne achi tarah se ujagar kiya hai .
badhai
जब पुरूष नारी के
जवाब देंहटाएंउत्थान में साथ हो सकता है
उसके दर्द को समझ सकता है
फिर क्यूँ
नारी ही नारी की नही बन पाती है
बहुत सच्ची बात लिखी है आपने...सहज शब्दों में नारी मन की पीड़ा को खूब उजागर किया है आपने...
नीरज