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मंगलवार, 13 जनवरी 2009

व्यथित हृदय

व्यथित हृदय से क्या निकलेगा
लावा बरसों से उबल रहा हो जहाँ
कभी तो फूटेगा , कभी तो बहेगा
इस आग के दरिया में
बर्बादी के सिवा क्या मिलेगा
पता नही अपने साथ
किस किस को बहा ले जाएगा
अब दर्द बहुत बढ़ने लगा
कब ये हृदय फटेगा
कब इसमें से दर्द की
किरच किरच निकलेगी
कब ये jwalamukhi
हर बाँध तोडेगा
और इस व्यथित हृदय को
कुछ पलों का सुकून मिलेगा

4 टिप्‍पणियां:

  1. ये आस कभी खत्म न हो खुशी का एक कारण अपने मन को समझाना भी होता है.....
    कभी तो फूटेगा कभी तो बहेगा,.....
    बहुत ही अच्छा लिखा है........
    गहरे भावः प्रकट किए हैं....
    तो सुकून कैसे नही मिलेगा......
    मिलेगा....


    अक्षय-मन

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