पेज

रविवार, 8 फ़रवरी 2009

क़र्ज़ अहसासों का

हर क़र्ज़ अहसासों का भी चुकाना होगा
अहसास क्यूंकि अभी जिंदा हैं
अहसासों से परे जाने से पहले
अहसासों को भी सुलाना होगा
किसी मिटटी में दबाना होगा
जहाँ से फिर कोई अहसास जन्म न ले
हर अहसास इक ज़ख्म बन जाता है
अब इन अहसासों की दवा न करनी होगी
अहसासों को अब दवा बिन सूखना होगा
दवा के पानी से न इन्हें सींचना होगा
सूखे हुए अहसासों को फिर
भुरभुराकर रेत में दबाना होगा
हर अहसास का अहसास मिटाना होगा
कुछ इस तरह इन जिंदा अहसासों का
क़र्ज़ चुकाना होगा

3 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही भावपूर्ण और सुन्दर रचना है।

    जवाब देंहटाएं
  2. कुछ इस तरह इन जिंदा अहसासों का
    क़र्ज़ चुकाना होगा

    behad arthpoorn ,,...
    badhai

    जवाब देंहटाएं
  3. इन अहसासों को इतने सुन्दर ढ़्ग से लिखकर हमसे परिचय कराया। बहुत खूब।

    जवाब देंहटाएं

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया