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गुरुवार, 19 फ़रवरी 2009

कुछ नही बचा अब

अब समटने को कुछ नही है
सब कुछ टूट रहा है
बिखर रहा है
दोनों हाथों से
संभाले रखा था जिसे
वो रिश्ता अब
रेत की मानिन्द बिखर रहा है
कतरा कतरा खुशियों का
समेटा था जिस आँचल में
वो आँचल अब गलने लगा है
कब तक आँचल में पनाह पायेगा
इस आँचल से अब तो खून
रिसने लगा है
कब तक कोई ख़ुद की
आहुति दिए जाए
अपने अरमानों की लकडियों से
हवन किए जाए
अब तो लकडियाँ भी
सीलने लगी हैं
किसी के आंसुओं में
भीगने लगी हैं
फिर कैसे इन लकडियों को जलाएं
अरमानों की अर्थी को
कौन से फूलों से सजाएं
अब समेटने को कुछ नही है

14 टिप्‍पणियां:

  1. भावुक एहसास लिए है आपकी यह कविता सुंदर

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  2. kisi se bichardne ka gam saaf jhalak raha hai .. lekin sahi baat hai koi kitna sahega ... very nice

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत मार्मिक रचना है...इतनी उदासी किसलिए?

    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  4. मार्मिक रचना प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
    इश्वर से प्रार्थना है कि ये आप बीती न हो.
    ऐसे लोग जो इस तरह से सहनशील है और अपनी इसी सहनशीलता के गुण के कारण इस दुखद स्थिति में आ गए हैं उनके लिए ही मेरा है निम्न संदेश:

    जिंदगी जिन्दादिली का नाम है,
    अपनी सहन शक्ति को नमन करें
    उसे दो अगरबत्तियां जला कर पुष्प काढा कर उर्जा प्रदान करें
    और आप पाएंगी कि दुर्गा जैसी शक्ति स्वतः कहाँ से उत्पन्न हो गई.

    चन्द्र मोहन गुप्त

    जवाब देंहटाएं
  5. मार्मिक रचना प्रस्तुति के लिए धन्यवाद.
    इश्वर से प्रार्थना है कि ये आप बीती न हो.
    ऐसे लोग जो इस तरह से सहनशील है और अपनी इसी सहनशीलता के गुण के कारण इस दुखद स्थिति में आ गए हैं उनके लिए ही मेरा है निम्न संदेश:

    जिंदगी जिन्दादिली का नाम है,
    अपनी सहन शक्ति को नमन करें
    उसे दो अगरबत्तियां जला कर पुष्प काढा कर उर्जा प्रदान करें
    और आप पाएंगी कि दुर्गा जैसी शक्ति स्वतः कहाँ से उत्पन्न हो गई.

    चन्द्र मोहन गुप्त

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  6. दिल के दर्द को लफ्ज़ोँ मेँ उतारती रचना

    जवाब देंहटाएं

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया