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शनिवार, 2 अक्टूबर 2010

टुकडियां

अपने साये से भी घबरा जाते हैं
अब भीड बर्दाश्त नही होती

 

मौसमी बुखार सा
तेरी मोहब्बत
गुबार छोड
जाती है
और हम
...उस गुबार मे
अपने अस्तित्व
को ढूँढते
रह जाते हैं

 

उफ़ ये खामोशी तडपा गयी
रैन बीती भी ना थी
कि तेरी याद आ गयी

 

उदासी को भी हसीन बना दिया
कुछ इस तरह मेरे यार ने
मौत को भी जश्न बना दिया

 

 

सोच के तकियों में
चुभते यादों के नश्तर
तमाशबीन बना जाते हैं

शायद हवायें बहक गयी हैं

 

 

अपना रकीब इन्साँ खुद होता है
बाकी गैर मे इतनी जुर्रत कहाँ

 

 

मेरे गरल पीने पर
खुश था ज़माना
गरल पीकर ज़िन्दा
रहने पर क्यूँ
बरपा दिया हंगामा

 

 

 मिलन का ये अन्दाज़ भी रास आया

मुझे "मै" तेरे ख्यालों मे मिली

 

 

 

दिल के छालों का
बीमा करा लेना
कहीं कोई आकर
नश्तर ना चुभा जाये

 

 

ये बेरुखी का आलम

ये तन्हाइयाँ

तूफ़ान आना लाज़िमी है

 

 

ज़िन्दगी सब कुछ सिखा देती है
कैसे गुलकंद को नीम बना देती है

 

 

किसी भी मोड से गुजरो

हादसे इंतज़ार मे होते हैं

 

 

कभी कभी लफ़्ज़ों की बनावट
चेहरा बन जाती है
और कभी
लफ़्ज़ चेहरे पर उतर आते हैं

 

 


 

 

 

 

21 टिप्‍पणियां:

  1. किसी भी मोड से गुजरो
    हादसे इंतज़ार मे होते हैं

    बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति ...

    जवाब देंहटाएं
  2. टुकड़ियों के सभी शब्द-चित्र बहुत असरदार हैं!
    --
    दो अक्टूबर को जन्मे,
    दो भारत भाग्य विधाता।
    लालबहादुर-गांधी जी से,
    था जन-गण का नाता।।
    इनके चरणों में श्रद्धा से,
    मेरा मस्तक झुक जाता।।

    जवाब देंहटाएं
  3. कभी लफ़्ज़ों की बनावट
    चेहरा बन जाती है
    और कभी
    लफ़्ज़ चेहरे पर उतर आते हैं

    प्रत्येक अपने आप में सम्पूर्ण

    जवाब देंहटाएं
  4. टुकड़ों में लिखी गई बेहरतरीन अभिव्यक्ति.. अलग अलग भाव लेकिन प्रेम और जीवन के सूत्र में बंधी हुई..

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर टुकडियाँ ! अपने आप में सम्पूर्ण और फिर भी माला में गुंथे मोतियों की तरह !
    अपना रकीब इन्साँ खुद होता है
    बाकी गैर मे इतनी जुर्रत कहाँ
    विशेष रूप से पसंद आयी ! अति सुन्दर !

    जवाब देंहटाएं
  6. वंदना जी ,सर्वप्रथम तो मेरे ब्लॉग पर आने और तारीफ के लिए बहुत शुक्रिया....आपकी रचना ''टुकड़ियाँ''पढ़ी...बेहतरीन अभिव्यक्ति'''अभी ब्लॉग पर आये मुझे ज्यादा समय नहीं हुआ है....इसलिए अभी सीख ही रही हूँ...आप जैसे स्थापित रचनाकारों को पढने का मौका मिलता है यही मेरे लिए ख़ुशी का सबब है
    धन्यवाद .

    जवाब देंहटाएं
  7. वंदना जी ,सर्वप्रथम तो मेरे ब्लॉग पर आने और तारीफ के लिए बहुत शुक्रिया....आपकी रचना ''टुकड़ियाँ''पढ़ी...बेहतरीन अभिव्यक्ति'''अभी ब्लॉग पर आये मुझे ज्यादा समय नहीं हुआ है....इसलिए अभी सीख ही रही हूँ...आप जैसे स्थापित रचनाकारों को पढने का मौका मिलता है यही मेरे लिए ख़ुशी का सबब है
    धन्यवाद .

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  8. वंदना जी ,सर्वप्रथम तो मेरे ब्लॉग पर आने और तारीफ के लिए बहुत शुक्रिया....आपकी रचना ''टुकड़ियाँ''पढ़ी...बेहतरीन अभिव्यक्ति'''अभी ब्लॉग पर आये मुझे ज्यादा समय नहीं हुआ है....इसलिए अभी सीख ही रही हूँ...आप जैसे स्थापित रचनाकारों को पढने का मौका मिलता है यही मेरे लिए ख़ुशी का सबब है
    धन्यवाद .

    जवाब देंहटाएं
  9. दिल के छालों का
    बीमा करा लेना
    कहीं कोई आकर
    नश्तर ना चुभा जाये

    wah ji jakham ko naya andaaz de do jinda karne ke liye wohi jakham purane

    जवाब देंहटाएं
  10. kya kahun vandana ..
    bahut dino baad aisa kuch padhne ko mila hai .. amazing .. meri ek hi request hai ki , sabko long poems me convert karo .. wakayi shaanda poems ban jaayengi..

    just amazing ..

    जवाब देंहटाएं

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया