लोग आते हैं
अपनी कहते हैं
चले जाते हैं
हम सुनते हैं
ध्यान से गुनते हैं
दिल से लगा लेते हैं
जब तक संभलते हैं
वो किसी और
मुकाम पर
चले जाते हैं
और हम वहीं
उसी मोड़ पर
खाली हाथ
खड़े रह जाते हैं
कभी कभी लगता है
टिशु पेपर हूँ मैं
पेज
▼
रविवार, 28 नवंबर 2010
शुक्रवार, 26 नवंबर 2010
शायद जीना इसी का नाम है
साइकिल पर
रखकर सामान
सुबह सुबह
निकल पड़ते हैं
किस्मत से लड़ने
गली गली
आवाज़ लगाते
"फोल्डिंग बनवा लो "
और फिर
कभी कभार ही
कोई मेहरबान होता है
बुलाता है
मोल भाव करता है
और बड़ा
अहसान- सा करके
काम देता है
उस पर यदि कोई
बुजुर्ग हो बनाने वाला
तो वो उसे अपनी
किस्मत मान लेता है
और सौदा कर लेता है
जिस उम्र में हड्डियाँ
ठहराव चाहती हैं
उस उम्र में परिवार का
बोझ कंधे पर उठाये
जब वो निकलता होगा
ना जाने कितनी आशाओं
की लड़ियाँ सहेजता होगा
फोल्डिंग बनाते बनाते
हर पट्टी में जैसे
सारे दिन की दिनचर्या
बुन लेता होगा
सड़क पर बैठकर
कड़ी धूप में
पसीना बहाते हुए
उसे सिर्फ मिलने वाले
पैसों से सपने खरीदने
की चाह होती है
एक वक्त की
रोटी के जुगाड़
की आस होती है
कांपते हाथों से
दिन भर में
बा-मुश्किल
दो ही फोल्डिंग
बना पाता है
उन्ही में
जीने के सपने
सजा लेता है
और ज़िन्दगी के
संघर्ष पर
विजय पा लेता है
और शाम ढलते ही
एक नयी सुबह की
आस में सपनो का
तकिया लगाकर
सो जाता है
शायद
जीना इसी का नाम है
रखकर सामान
सुबह सुबह
निकल पड़ते हैं
किस्मत से लड़ने
गली गली
आवाज़ लगाते
"फोल्डिंग बनवा लो "
और फिर
कभी कभार ही
कोई मेहरबान होता है
बुलाता है
मोल भाव करता है
और बड़ा
अहसान- सा करके
काम देता है
उस पर यदि कोई
बुजुर्ग हो बनाने वाला
तो वो उसे अपनी
किस्मत मान लेता है
और सौदा कर लेता है
जिस उम्र में हड्डियाँ
ठहराव चाहती हैं
उस उम्र में परिवार का
बोझ कंधे पर उठाये
जब वो निकलता होगा
ना जाने कितनी आशाओं
की लड़ियाँ सहेजता होगा
फोल्डिंग बनाते बनाते
हर पट्टी में जैसे
सारे दिन की दिनचर्या
बुन लेता होगा
सड़क पर बैठकर
कड़ी धूप में
पसीना बहाते हुए
उसे सिर्फ मिलने वाले
पैसों से सपने खरीदने
की चाह होती है
एक वक्त की
रोटी के जुगाड़
की आस होती है
कांपते हाथों से
दिन भर में
बा-मुश्किल
दो ही फोल्डिंग
बना पाता है
उन्ही में
जीने के सपने
सजा लेता है
और ज़िन्दगी के
संघर्ष पर
विजय पा लेता है
और शाम ढलते ही
एक नयी सुबह की
आस में सपनो का
तकिया लगाकर
सो जाता है
शायद
जीना इसी का नाम है
सोमवार, 22 नवंबर 2010
खाली पहर
आज एक
खाली पहर
बीत रहा है
कोई सांस नहीं
कोई आस नहीं
कोई चाह नहीं
अब इसमें
हर स्पंदन मौन
वक्त की मूक
अभिव्यक्ति का
गवाह बनता
ये पहर
कुछ छीने
भी जा रहा है
जैसे लूट कर
ले गया हो कोई
किसी की अस्मत
और जुबाँ भी
मौन हो गयी हो
बचा हो तो
सिर्फ उस पहर का
रीतापन
अपने बेसबब
हाल पर
कुंठाओं के
बीज बोता हुआ
अब कुछ नही बचा……………
शायद खालीपन का अहसास भी नही
जैसे बुहारा गया हो आंगन
और निशाँ सब मिट चुके हों
खाली पहर
बीत रहा है
कोई सांस नहीं
कोई आस नहीं
कोई चाह नहीं
अब इसमें
हर स्पंदन मौन
वक्त की मूक
अभिव्यक्ति का
गवाह बनता
ये पहर
कुछ छीने
भी जा रहा है
जैसे लूट कर
ले गया हो कोई
किसी की अस्मत
और जुबाँ भी
मौन हो गयी हो
बचा हो तो
सिर्फ उस पहर का
रीतापन
अपने बेसबब
हाल पर
कुंठाओं के
बीज बोता हुआ
अब कुछ नही बचा……………
शायद खालीपन का अहसास भी नही
जैसे बुहारा गया हो आंगन
और निशाँ सब मिट चुके हों
बुधवार, 17 नवंबर 2010
मै तो
मै तो हर समय
खूबसूरत समय
मे जीती हूँ
ख्वाब मे नही
जीती हूँ
हकीकत के
धरातल पर
समय से
लड्ती हूँ
खूबसूरत समय
मे जीती हूँ
ख्वाब मे नही
जीती हूँ
हकीकत के
धरातल पर
समय से
लड्ती हूँ
और समय को
अपने पल्लू मे
बाँध लेती हूँ
अपने पल्लू मे
बाँध लेती हूँ
सोमवार, 15 नवंबर 2010
अतिक्रमण
ना जाने क्यूँ
अतिक्रमण
करते हैं हम
कभी ज़मीन का
कभी अधिकारों का
कभी भावनाओं का
तो कभी मर्यादाओं का
शायद हमारे
लहू में ही
कोई जीन
अतिक्रमणता
का काबिज़
हो गया है
जो अपनी
सीमाओं में
रहने को
अपना अपमान
समझता है
सीमाओं का
उल्लंघन
उसकी
प्राथमिकता
होती है
फिर उससे चाहे
किसी का भी
जीवन धराशायी
क्यूँ ना हो जाये
अतिक्रमण करने
वालों का कोई
ईमान नहीं होता
उन्हें परवाह
नहीं होती
कितने दिल टूटे
किसका आशियाँ
उजड़ा
किसका जहाँ
बर्बाद हुआ
किसी के भी
अरमानों का
जनाजा ही
क्यूँ ना निकल जाए
कोई सरे बाज़ार
बदनाम ही
क्यूँ ना हो जाए
मगर अतिक्रमण
करना जरूरी है
और शायद
भावनाओं का तो
बेहद जरूरी
तभी हम
स्वयं को
शरीफ और
समाज की
सशक्त कड़ी
साबित कर पाएं
और अतिक्रमणता
को मुकाम दे पायें
अतिक्रमण
करते हैं हम
कभी ज़मीन का
कभी अधिकारों का
कभी भावनाओं का
तो कभी मर्यादाओं का
शायद हमारे
लहू में ही
कोई जीन
अतिक्रमणता
का काबिज़
हो गया है
जो अपनी
सीमाओं में
रहने को
अपना अपमान
समझता है
सीमाओं का
उल्लंघन
उसकी
प्राथमिकता
होती है
फिर उससे चाहे
किसी का भी
जीवन धराशायी
क्यूँ ना हो जाये
अतिक्रमण करने
वालों का कोई
ईमान नहीं होता
उन्हें परवाह
नहीं होती
कितने दिल टूटे
किसका आशियाँ
उजड़ा
किसका जहाँ
बर्बाद हुआ
किसी के भी
अरमानों का
जनाजा ही
क्यूँ ना निकल जाए
कोई सरे बाज़ार
बदनाम ही
क्यूँ ना हो जाए
मगर अतिक्रमण
करना जरूरी है
और शायद
भावनाओं का तो
बेहद जरूरी
तभी हम
स्वयं को
शरीफ और
समाज की
सशक्त कड़ी
साबित कर पाएं
और अतिक्रमणता
को मुकाम दे पायें
गुरुवार, 11 नवंबर 2010
दुनिया का दस्तूर
दस्तूर तो दुनिया
सही निभाती है
कमी हम में ही है
जो ना समझ पाते हैं
सब अपने आप के साथी हैं
पल भर के मुसाफिर
मिलते हैं फिर
अपनी राह को
बढ़ जाते हैं
कौन किसी का
मीत यहाँ
कौन किसी का
साथी रे
कुछ पल के लगे
डेरे हैं
फिर बंजारों की टोली
चली जाती है
यहाँ ना कोई
किसी का दोस्त है
सब राह भर के
साथी हैं
दुनिया जानती है
इस दस्तूर को
तू भी सीख जायेगा
रे मनवा
यहाँ रिश्ते उधार
के जुड़ते हैं
जीते जी ना
चुकते हैं
मिलने बिछड़ने का
सिलसिला अनवरत
चलता रहता है
मगर कोई ना
किसी का होता है
इस दस्तूर की
घुट्टी बनाकर
पी जा प्यारे
दिल को पत्थर
बनाकर जीना
सीख जा प्यारे
दुनिया का दस्तूर
निभाना आ जायेगा
शायद तू भी तभी
"इंसान" कहा जाएगा
सही निभाती है
कमी हम में ही है
जो ना समझ पाते हैं
सब अपने आप के साथी हैं
पल भर के मुसाफिर
मिलते हैं फिर
अपनी राह को
बढ़ जाते हैं
कौन किसी का
मीत यहाँ
कौन किसी का
साथी रे
कुछ पल के लगे
डेरे हैं
फिर बंजारों की टोली
चली जाती है
यहाँ ना कोई
किसी का दोस्त है
सब राह भर के
साथी हैं
दुनिया जानती है
इस दस्तूर को
तू भी सीख जायेगा
रे मनवा
यहाँ रिश्ते उधार
के जुड़ते हैं
जीते जी ना
चुकते हैं
मिलने बिछड़ने का
सिलसिला अनवरत
चलता रहता है
मगर कोई ना
किसी का होता है
इस दस्तूर की
घुट्टी बनाकर
पी जा प्यारे
दिल को पत्थर
बनाकर जीना
सीख जा प्यारे
दुनिया का दस्तूर
निभाना आ जायेगा
शायद तू भी तभी
"इंसान" कहा जाएगा
रविवार, 7 नवंबर 2010
फिर क्यूँ ढूँढूँ अवलम्बन?
मै
अपने आप से
बेहद खुश
फिर किसलिये
ढूँढूँ अवलम्बन
स्वीकार नही
अब ना कोई
दीवार रही
मै अपने "मै" मे
जी लेती हूँ
शायद इसीलिये
हँस लेती हूँ
जब जान लिया
है खुद को
फिर क्यूँ
ढूँढूँ अवलम्बन
अपने आप से
बेहद खुश
फिर किसलिये
ढूँढूँ अवलम्बन
मुझे मेरा "मै"
भटकाता नही
उसके सिवा कुछ
उसके सिवा कुछ
रास आता नही
अब बंधन स्वीकार नही
अब ना कोई
दीवार रही
मै अपने "मै" मे
जी लेती हूँ
शायद इसीलिये
हँस लेती हूँ
जब जान लिया
है खुद को
फिर क्यूँ
ढूँढूँ अवलम्बन
गुरुवार, 4 नवंबर 2010
मधुरिम पल
कुसुम कुसुम से
कुसुमित सुमन से
तेरे मेरे मधुरिम पल से
अधरों की भाषा बोल रहे हैं
दिलों के बंधन खोल रहे हैं
लम्हों को अब हम जोड़ रहे हैं
भावों को अब हम तोल रहे हैं
नयन बाण से घायल होकर
दिलों की भाषा बोल रहे हैं
हृदयाकाश पर छा रहे हैं
मेघों से घुमड़ घुमड़ कर
तन मन को भिगो रहे हैं
पल पल सुमन से महक रहे हैं
मधुरम मधुरम ,कुसुमित कुसुमित
दिवास्वप्न से चहक रहे हैं
तेरे मेरे अगणित पल
तेरे मेरे अगणित पल
दोस्तो,
ये रचना आप लोगों ने नहीं पढ़ी होगी और जिन्होंने पढ़ी है उनमे से अब सिर्फ २-३ ही होंगे बाकी सब ब्लॉग जगत से जा चुके हैं इसलिए अब दोबारा लगाई है ..........उम्मीद है पसंद आएगी
कुसुमित सुमन से
तेरे मेरे मधुरिम पल से
अधरों की भाषा बोल रहे हैं
दिलों के बंधन खोल रहे हैं
लम्हों को अब हम जोड़ रहे हैं
भावों को अब हम तोल रहे हैं
नयन बाण से घायल होकर
दिलों की भाषा बोल रहे हैं
हृदयाकाश पर छा रहे हैं
मेघों से घुमड़ घुमड़ कर
तन मन को भिगो रहे हैं
पल पल सुमन से महक रहे हैं
मधुरम मधुरम ,कुसुमित कुसुमित
दिवास्वप्न से चहक रहे हैं
तेरे मेरे अगणित पल
तेरे मेरे अगणित पल
दोस्तो,
ये रचना आप लोगों ने नहीं पढ़ी होगी और जिन्होंने पढ़ी है उनमे से अब सिर्फ २-३ ही होंगे बाकी सब ब्लॉग जगत से जा चुके हैं इसलिए अब दोबारा लगाई है ..........उम्मीद है पसंद आएगी
मंगलवार, 2 नवंबर 2010
कभी हवा से भी बतिया कर देखिये
कभी हवा से भी बतिया कर देखिये
न जाने कितने पैगाम दे जायेगी
कुछ अनसुना सुना जायेगी
कुछ अनकहा कह जायेगी
तुम्हारे पैयाम ले जायेंगी
दर पर इक दस्तक दे जायेंगी
कभी बतियाकर तो देखिये
कभी हाथ लगाकर तो देखिये
ना भीग जाये तो कहना
हवाओं मे भी नम स्पर्श होता है
नमी हाथो की कहानी कह जायेगी
फिजाओं की हर सदा दे जायेगी
कैसे बहते हैं चश्मे - नम
हवाओ के साथ तुम भी जान लोगे
हवाओ को पहचान लोगे
उनसे अपना दामन बाँध लोगे
न जाने कितने पैगाम दे जायेगी
कुछ अनसुना सुना जायेगी
कुछ अनकहा कह जायेगी
तुम्हारे पैयाम ले जायेंगी
दर पर इक दस्तक दे जायेंगी
कभी बतियाकर तो देखिये
कभी हाथ लगाकर तो देखिये
ना भीग जाये तो कहना
हवाओं मे भी नम स्पर्श होता है
नमी हाथो की कहानी कह जायेगी
फिजाओं की हर सदा दे जायेगी
कैसे बहते हैं चश्मे - नम
हवाओ के साथ तुम भी जान लोगे
हवाओ को पहचान लोगे
उनसे अपना दामन बाँध लोगे
बस एक बार हवाओं से
बतिया कर तो देखिये
बतिया कर तो देखिये