सिर्फ देह की देहरी को ही
न पूजा होता
कभी इससे भी ऊपर
उठा होता
कभी देह की देहरी को
लाँघ पाया होता
तो शायद इन्सान
बन पाया होता
इस देहरी के पार
इक बार झाँका होता
तो मन का हर
पता पा गया होता
वो जो इसी दहलीज पर
टूटता बिखरता रहा
उस रिश्ते को कुछ तो
संभाल पाया होता
इसकी चौखटों पर टंगे
ख्वाबों की जलन को
जान पाया होता
कुछ पल उस ऊष्मा
में खुद को झुलसाया होता
तो शायद दर्द सहने का
सलीका जान पाया होता
बेजुबान अश्रुकणों को
कभी ऊँगली लगायी होती
तेज़ाब के कहर से
तेरी आँख भर आई होती
तू इक पल कभी
वहां रुका होता तो
मन के कोने में पड़ी
अपनी खंडित प्रतिमा
देख पाया होता
और जो सैलाब बरसों से
रुका पड़ा था
हर तटबंध को तोड़ता
तेरे आगोश में
सिमट आया होता
बस सिर्फ एक बार तूने
देह की देहरी लांघी तो होती
सच कहा है.संवेदनशील अभिव्यक्ति.
जवाब देंहटाएंनमस्कार वन्दना जी,
जवाब देंहटाएंये रचना देह की देहरी को कभी लांगा तो होता बहुत पसंद आयी है,
उसकी भी मजबूरी होगी जो ना लांघी, ना इन्सान बन पाया,
प्रेम तो मन के आँगन में ही पल्लवित होता है।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना ...
जवाब देंहटाएंमर्मस्पर्शी....
जवाब देंहटाएंस्त्री की देह ही नहीं ... देह से परे बहुत कुछ होता है , जहाँ प्यार ख्याल एहसासों की तहरीर होती हैं , लिखे होते हैं कुछ अनगाये गीत , लहराती हैं कुछ कोपलें , बया के घोसले सा होता है एक ख्याली घर , जिसमें सपनों के खिलौने होते हैं ....
जवाब देंहटाएंवाह,संवेदनशील अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
संवेदनाओं को अभिव्यक्ति मिली है, एक शे’र याद आ गया, शायद इस कविता से संबंधित न भी हो फिर भी ..
जवाब देंहटाएंकब से दरवाज़ों को दहलीज़ तरसती है ‘निज़ाम’
कब तलक़ गाल को कोहनी पे टिकाये रखिए
बेजुबान अश्रुकणों को
जवाब देंहटाएंकभी ऊँगली लगायी होती
तेज़ाब के कहर से
तेरी आँख भर आई होती
देह से परे भी जहाँ है और वही असली जहाँ है समझने की संवेदनशीलता कहाँ से लाये ये असंवेदनशील प्राणी, उसे तो समझाना ही गोगा और आप बखूबी कर रही है, बधाई
स्त्री के मन की गहराई दर्शाती हुई सुंदर रचना ....!!
जवाब देंहटाएंबहुत भावपूर्ण....
जवाब देंहटाएंबेजुबान अश्रुकणों को
जवाब देंहटाएंकभी ऊँगली लगायी होती
तेज़ाब के कहर से
तेरी आँख भर आई होती
बहुत संवेदनशील रचना ... गहन अभिव्यक्ति .. इससे आगे ही तो कदम नहीं बढते ..
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति , बधाई .....
जवाब देंहटाएं" ek sanvedan shil abhivyakti "
जवाब देंहटाएंसिर्फ एक बार तूने
जवाब देंहटाएंदेह की देहरी लांघी तो होती
यह देहरी ही शायद बाधा है विदेह पथ में
बहुत संवेदनशील रचना..देह तो एक प्रतीक है...इसे प्रतीक बना आपने बढ़िया नारी मन की विवेचना की है...बहुत सुन्दर कविता...
जवाब देंहटाएंबेहतरीन अभिव्यक्ति , बधाई वंदना जी।
जवाब देंहटाएंThere is a beautiful world waiting beyond flesh. Only an enlightened person can sense that fragrance.
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति् सुन्दर भाव…..….धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ति्....
जवाब देंहटाएंशब्द-शब्द संवेदना भरा है...
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना....
जवाब देंहटाएंआपकी रचना ने एक प्रसिध्द गजल की यादें ताजा कर दीं...
''जिस्म की बात नहीं है उनके दिल तक जाना है... लंबी दूरी तय करने में वक्त तो लगता है''
istree ke dard ko bayaan karati hui samvedan sheel rachanaa.badhaai sweekaren.
जवाब देंहटाएंplease visit my blog.thanks.
बहुत ही गहरी और संवेदनशील अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहरी और संवेदनशील अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर.....इस पोस्ट के लिए सलाम आपको......शरीर के बंधन से मुक्त होकर ही कोई मन तक पहुँचता है .....पर एक रास्ता इससे भी आगे जाता है और अंतिम पढाव तो वही है.....शानदार |
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