निर्मल हास्य का आनंद लीजिये
चर्चाकारों की भी कुछ खबर लीजिये
व्यवस्थापक तो मौज उडाता है
बस बेचारा चर्चाकार फँस जाता है
व्यवस्थापक अपनी जिम्मेवारी
दूसरे के कन्धों पर ड़ाल
चैन की नींद सो जाता है
और बेचारा चर्चाकार
बेगारी में लग जाता है
ये कैसे सुनहरे जाल में फँस जाता है
ना निकल पाता है ना रह पाता है
बेबस जुबान ना खोल पाता है
अपने हाल पर रोता जाता है
पर मुफ्त के नाम पर कुर्बान हुआ जाता है
चर्चाकार को इतनी कीमत
तो चुकानी पड़ती है
अपनी नींद भी उड़ानी पड़ती है
सारा दिन भटकता फिरता है
हर ब्लॉग को पढता है
और उनमे से कुछ को
सेलेक्ट तो कुछ को रिजेक्ट करता है
किसी को हितैषी तो किसी को दुश्मन
दिखता है
जिसकी पोस्ट लेता है उसकी
बांछें खिल जाती हैं
जिसकी रह जाती हैं वो
आँखें तरेर लेता है
बेचारा चर्चाकार बुरा फँस जाता है
बेकार में नाम बदनाम हो जाता है
मगर व्यवस्थापक मौज उडाता है
और चर्चाकार अपने ब्लॉग भी भूल जाता है
बस चर्चा में ही लगा रह जाता है
किसी को नाराज नहीं करना चाहता है
इसलिए दिन रात खटता रहता है
पर सबको संतुष्ट नहीं कर पाता है
पर व्यवस्थापक मौज उडाता है
हाय रे चर्चाकार तेरी यही कहानी
तेरी पीड़ा किसी ने ना जानी
सब करते हैं अपनी मनमानी
फिर क्यूँ करता है नादानी
मान जा प्यारे छोड़ नाम का मोह
अपने नीड में वापस आ जा
कर अपने ब्लॉग को इतना बुलंद
कि सभी व्यवस्थापक कहें
तेरा ब्लॉग तो हम खुद ले लेंगे
और तुझे सैल्यूट भी करेंगे
छोड़ माया मोह का फंदा
चर्चा की माया से निकल जा प्यारे
नहीं तो बहुत पछतायेगा
कहीं का नहीं रह जाएगा
हर कोई तुझे सिर्फ
चर्चाकार ही बुलाएगा
और तू अपना असली नाम भूल जायेगा
पर व्यवस्थापक तो मौज उडाएगा
सबसे बढ़िया जुगाड़ है ये
सबको काम पर लगा देना
और खुद नाम कमा लेना
एक को देख दूसरा भी
उसी राह पर चल निकलता है
व्यवस्थापक का धंधा
खूब फलता है
और चर्चा का मंच
जोर शोर से चलता है
पर बेचारा चर्चाकार
मुफ्त में फंसता है
ना कहे तो छवि बिगडती है
हाँ कहे तो कहीं का नहीं रहता है
साँप छछूंदर वाली हालात होती है
ना उगलता है ना निगलता है
पर व्यवस्थापक तो मौज उडाता है
और चर्चाकार बुरा फँस जाता है ...............
दोस्तों
ये निर्मल हास्य है इसे कोई भी गंभीरता से ना ले………बस कल कुछ देखकर ये ख्याल आया………तो आज इसी पर लिख दिया……कोई भी व्यवस्थापक या चर्चाकार इसे निजी तौर पर ना ले………कभी कभी ऐसी दिल्लगी भी होती रहनी चाहिये इससे आनन्द बना रहता है और सबको एक नयी ऊर्जा प्राप्त होती रहती है तो आपकी सेहत के मद्देनज़र है आज की ये दिल्लगी…………:)
वंदना जी,निर्मल हास्य के माध्यम से चर्चाकारों की पीड़ा उजागर की है।
जवाब देंहटाएंआभार
आपने तो सच कहा है,
जवाब देंहटाएंइसमें बुरा मानने वाली तो बात ही नहीं है।
yatharth, behatar post
जवाब देंहटाएंबढ़िया है ...निर्मल आनंद...
जवाब देंहटाएंबढ़िया...
जवाब देंहटाएंhaha very light and good one....
जवाब देंहटाएंबस निर्मल हास्य की तरह ही लिया है।
जवाब देंहटाएंचर्चाकार की विवशता समझ में आती है
जवाब देंहटाएंपर इसी विवशता में उसकी योग्यता आंकी जाती है ...
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा शनिवार (09-07-11 )को नयी-पुरानी हलचल पर होगी |कृपया आयें और अपने बहुमूल्य सुझावों से ,विचारों से हमें अवगत कराएँ ...!!
जवाब देंहटाएंआद. वंदना जी,
जवाब देंहटाएंचर्चाकार की व्यथा बयान करती निर्मल हास्य की कविता बहुत अच्छी लगी ,शायद इसलिए भी कि इसमें सच्चाई की खुशबू भी समाहित है !
आभार !
आपका हार्दिक अभिनन्दन ||
जवाब देंहटाएंआभार ||
हर कोई तुझे सिर्फ
जवाब देंहटाएंचर्चाकार ही बुलाएगा
और तू अपना असली नाम भूल जायेगा
पर व्यवस्थापक तो मौज उडाएगा
सबसे बढ़िया जुगाड़ है ये
सबको काम पर लगा देना
और खुद नाम कमा लेना
बहुत खूब...
करारा कटाक्ष....
vandana ji bilkul sahi kaha hai.
जवाब देंहटाएंAabhaar !!
मिठाई में लपेटी,कड़वी सच्चाई .
जवाब देंहटाएंवन्दना जी ,बधाई हो बधाई ||
शुभकामनायें !
बढ़िया है जी..........वैसे हम तो इन चर्चा-वर्चा से दूर ही रहते हैं....की कहीं चर्चा की जगह पर्चा न छप जाये :-)
जवाब देंहटाएंहा हा हा .
जवाब देंहटाएंहाय रे चर्चाकार तेरी यही कहानी,
करे मेहनत भारी फिर भी सुने गाली.
(तुलसी दास जी से क्षमा याचना सहित )
निर्मल हास्य की ही तरह लिया है :)
ह ह ह ह .. बस निर्मल हास्य की तरह ही लिया है !!
जवाब देंहटाएं:):)बढ़िया और सही ...
जवाब देंहटाएंआपके ब्लॉग
जवाब देंहटाएंका नाम हमने
यूं ही बैठ-ठाले
दो-चार बार लिये
ज़ख़्म ... जो फूलों ने दिये ...
ज़ख़्म ... जो फूलों ने दिये ...
फिर पढ़ी कविता
बही मन में हास्य की निर्मल सरिता
कविता को पढ़कर
मुझे सूझा रह-रह कर
यह तो है
एक
फूल
जो ज़ख़्मों ने दिये।
सही ही तो कहा है आपने...
जवाब देंहटाएंbechari charchakara...:)
जवाब देंहटाएंitna nimral anand:)
Vandna ji -nirmal hasya ka yah roop bhi bahut bhaya .chand shabdon me charchakar ke man ki har bat ko likh dala hai .bdhai
जवाब देंहटाएंचर्चाकार की पीड़ा को भी आपने निर्मल हास्य में बदल दिया...कमाल है...आभार
जवाब देंहटाएंजोर का झट्का धीरे से दे गये
जवाब देंहटाएंदिल की बात दिल्लगी में कह गये.
देर से समझे पर दुरुस्त समझे
जान ही गये तो किसका इन्त्जार हो करते.
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंआभार- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
इस निर्मल हास्य का जवाब नहीं जी!
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच और नई पुरानी हलचल पर यह बात लागू नहीं होती!
उनके व्यवस्थापक तो अन्य चर्चाकारों की तरह ही परिश्रम कर रहे हैं!
हाहाहहाहा.. अच्छा है
जवाब देंहटाएं...चर्चाकार को इतनी कीमत
जवाब देंहटाएंतो चुकानी पड़ती है
अपनी नींद भी उड़ानी पड़ती है
सारा दिन भटकता फिरता है
हर ब्लॉग को पढता है
sach kaha aapne ye koi aasan kam nahin ! bahut badhiya ! aabhaar !
aapka nirmal-hasy bahut nirmal hai.....bahut pyara andaz.....
जवाब देंहटाएंहर कोई तुझे सिर्फ
जवाब देंहटाएंचर्चाकार ही बुलाएगा
और तू अपना असली नाम भूल जायेगा
bahut khub nilman aand aaya .
sabhi ki baat hai shabd aapke hain aannad sabka hai
rachana
हाहा.. चर्चाकार फंसता है.. ये तो सही है.. हमारे ऑफिस में भी यही होता है..
जवाब देंहटाएंबॉस कहता है ये काम करो.. हम कर देते हैं.. बाद में बड़ा बॉस आ कर हमें डांटता है.. हम चर्चाकार है.. हमारा बॉस व्यवस्थापक और बड़ा बॉस जनता.. :)
परवरिश पर आपके विचारों का इंतज़ार है..
आभार