मेरे मन की वसुधा पर
अब घास उगती ही नही
फिर किस नेह जल से
सिंचित करोगे और किसे
देखो ना…………
हरियाली भी दम तोड चुकी है
और जमीन इतनी बंजर हो चुकी है
भावों की खेती भी नही होती
देखा है तुमने कहीं जलता आशियाँ?
वंदना जी शुभ शुभ बोलिए. बरसात का मौसम है. हरियाली का दम तोड़ेंगीं तो सूखा पड़ जायेगा. मन की मत पूछियेगा. मन में ही आनंद का सागर भी लहरा रहा है. जरा आवाहन कीजियेगा,सुखद बरसात न हो तो कहना.जब पद्मनाभं मंदिर में खजाना मिला है, तो मन-मंदिर के खजाने का तो कोई ओर छोर ही नहीं है.
बहुत सुंदर ! जलता आशियाँ ही नहीं हमने तो परमात्मा का सागर भी देखा है जो आज भी सींच रहा है आपके मन की वसुधा को ही नहीं हरेक के मन की धरा को तभी तो बार बार हार कर भी मन जीत जाता है...
बहुत सुन्दर कविता लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है- http://seawave-babli.blogspot.com/ http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
हरियाली भी दम तोड चुकी है
जवाब देंहटाएंऔर जमीन इतनी बंजर -- कमाल का एक्सप्रेशन .. वाह
फिर किस नेह जल से सिंचित करोगे....वाह...अद्भुत शब्द और भाव....
जवाब देंहटाएंनीरज
कम शब्दों में गंभीर कविता... बहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंjab mann ke srot sookh gaye to ab prashn kahan kaisa kisse
जवाब देंहटाएंवंदना जी शुभ शुभ बोलिए.
जवाब देंहटाएंबरसात का मौसम है.
हरियाली का दम तोड़ेंगीं तो सूखा पड़ जायेगा.
मन की मत पूछियेगा.
मन में ही आनंद का सागर भी लहरा रहा है.
जरा आवाहन कीजियेगा,सुखद बरसात न हो तो कहना.जब पद्मनाभं मंदिर में खजाना मिला है,
तो मन-मंदिर के खजाने का तो कोई ओर छोर ही नहीं है.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
बहुत सुंदर !
जवाब देंहटाएंजलता आशियाँ ही नहीं हमने तो परमात्मा का सागर भी देखा है जो आज भी सींच रहा है आपके मन की वसुधा को ही नहीं हरेक के मन की धरा को तभी तो बार बार हार कर भी मन जीत जाता है...
gahan bhavon ko abhivyakt kiya hai .aabhar
जवाब देंहटाएंऔर जमीन इतनी बंजर हो चुकी है
जवाब देंहटाएंभावों की खेती भी नही होती....
बहुत मर्मस्पर्शी और भावपूर्ण..कमाल के अहसास..आभार
दिल को छूती कविता |
जवाब देंहटाएंसंवेदना को झकझोर गयी आपकी कविता !
जवाब देंहटाएंआभार !
बधाई ||
जवाब देंहटाएंअच्छी प्रस्तुति ||
गहरा।
जवाब देंहटाएं:)...
जवाब देंहटाएंgahri soch ke saath likhi gayee...rachna..
क्या बात कही है - गागर में सागर
जवाब देंहटाएंघास की खूबी है कि वह पत्थर पर भी उग आती है, शायद इसीलिए ‘ नेह जल से सिंचित ’ किया जा रहा होगा।
जवाब देंहटाएंइतना दर्द.......सुभानाल्लाह|
जवाब देंहटाएंभावों की खेती भी नहीं होती .. यह पंक्ति लाजवाब ।
जवाब देंहटाएंजब बंजर जमीन में इतने शब्द उग रहे हैं
जवाब देंहटाएंतो जब उर्वरा होगी भूमि तो रचनाओं की बाढ़ निश्चितरूप से आ जाएगी!
मेरे मन की वसुधा पर
जवाब देंहटाएंअब घास उगती ही नही
गंभीर कविता... बहुत सुन्दर , आभार.
खुबसूरत प्रस्तुती....
जवाब देंहटाएंbahut udas rachna ..door door tak udaasi chhayi hai ...!!
जवाब देंहटाएंdil ke dard ko alfazo mein bahut khoob piroya hai :)
जवाब देंहटाएं________________________________
राजनेता - एक परिभाषा अंतस से ||
Sundar, ati sundar, badhai
जवाब देंहटाएंkya kehna..aapka
जवाब देंहटाएंभावों की रिक्तता को कहती अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंन्यूनतम शब्दों में अद्भुत अभिव्यक्ति. काफी प्रभावित किया आपकी रचना ने. आभार.
जवाब देंहटाएंअंबेडकर और गाँधी
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार....!
जवाब देंहटाएंbahut achchi kavita.
जवाब देंहटाएंbahut achchi kavita ...sadhuvad
जवाब देंहटाएंbahut achchi kavita.sadhuvad...
जवाब देंहटाएंसुन्दर और भाव पूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार...
जवाब देंहटाएंहरियाली भी दम तोड चुकी है
जवाब देंहटाएंऔर जमीन इतनी बंजर
कमाल के भाव,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
बहुत सुन्दर कविता लिखा है आपने! लाजवाब प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/