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सोमवार, 19 सितंबर 2011

भरम कायम रखने के लिये चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये…………

यूँ तो अलग हो जाती है धारायें
किसी ना किसी मोड पर
कभी ना कभी ये मोड
देते है दस्तक हर ज़िन्दगी मे
पर अलगाववाद की सीमाओं पर
ये अहम के पहरेदार
आखिर कब तक ? 
अलगाववाद की सीमा पर शायद
तभी दस्तक नही होती
क्योंकि भरम की दीवारों मे
रौशनी नही होती

भरम कायम रखने के लिये
चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये…………


29 टिप्‍पणियां:

  1. यूँ देखें तो यह सारा जगत ही एक भ्रम का नाम है न जाने कितनी बार बिछड़े कितनी बार मिले हैं लोग, गिनती भी याद नहीं... छोटे से जीवन में क्या शिकवे और क्या शिकायत...

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  2. भरम की दीवारों मे
    रौशनी नही होती
    भरम कायम रखने के लिये
    चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये………bahut hi gahre bhaw

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
    पढ़कर आनंदित हुआ ||
    बधाई ||

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  4. हम सब जीवित हैं- इससे बड़ा भ्रम कोई दूसरा नहीं है।
    सीख देती हुई कविता।

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  5. भरम कायम रखने के लिये ...गहन भाव समेटे यह अभिव्‍यक्ति ।

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  6. वंदनाजी आपकी रचना में बहुत ही गहरी बातें बहुत ही सुंदर शब्दों के चयन के साथ और बहुत ही शानदार ढंग से प्रस्तुत की जातीं हैं जिसको पढ़कर मन बहुत कुछ सोचने को मजबूर हो उठता है /बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति /बहुत बधाई आपको /
    मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है /जरुर पधारिये /आभार /

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  7. भरम कायम रखने के लिये
    चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये
    बेहतरीन!!!

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  8. खूबसूरत और प्रश्न उठाती पोस्ट बधाई

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  9. जब नमीं होती है आंखों में तो सब धुंधला दिखता है।

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  10. भरम की दीवारों मे
    रौशनी नही होती
    भरम कायम रखने के लिये
    चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये……

    बेहद शानदार लाजवाब .....

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  11. आपका शब्द कौशल कमाल का है..बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  12. बहुत खुबसूरत..........बहुत पसंद आई पोस्ट|

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  13. दस्तक तो देती हैं ये धाराएँ .. पर अहम की दिवार सुनने नहीं देती ..

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  14. इस खूबसूरत कविता को पढकर बस एक शब्द कहा जा सकता है -- आमीन!

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  15. मोड़ पर से भिन्न राहों पर चल देना तो नियति ही है...
    सुन्दर अभिव्यक्ति!

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  16. क्यूंकि भरम की दीवारों में रोशनी नहीं होती
    भरम कायम रखने के लिए
    चसमों में नमी तो होनी चाहिए।
    गहरे भाव लिए सुंदर अभिवक्ती...

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  17. behatarin bhaavon ke saath bahut hi sunder shabd chayan...bahut bahut badhai aapko..

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  18. भरम कायम रखने के लिए चश्मों में नमी होनी चाहिए ...
    वाह ...बहुत खूब !

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  19. वन्दना जी नमस्कार। सुन्दर भावपूर्ण लाइनें हैं-भरम कायम रखने के लिये चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये।

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  20. पर अलगाववाद की सीमाओं पर
    ये अहम के पहरेदार
    आखिर कब तक ?

    सार्थक रचना...
    सादर..,

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  21. भरम कायम रखने के लिये
    चश्मो मे नमी तो होनी चाहिये…………

    गहन भाव को समेटे हुए अच्छी प्रस्तुति

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  22. नमी की कमी
    सबसे बडी कमी
    होती है।अच्छी रचना।

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  23. अलगाववाद की सीमा पर शायद
    तभी दस्तक नही होती

    बहुत गहन चिंतन है आपका.
    कभी कभी तो सोचता ही रह
    जाता हूँ कि क्या कह दिया है
    आपने.

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