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शनिवार, 15 अक्टूबर 2011

करवाचौथ पर दो ख्याल





सबने कहा आज चाँद 
आस्मां  मे देखना 
तभी व्रत का पारण करना
मगर किसी ने ये तो
बताया ही नही
वो आस्माँ है किधर
जिसमे चांद का दीदार हो
मेरा चांद तो हर पल
मेरे आस्माँ पर चमकता है
अब बताये कोई 
कौन से चाँद का दीदार करूँ 
किसे देख व्रत का पारण करूँ 
उसे जो घटता बढता रहता है
या उसे जो पूर्णता से मुझमे रहता है
कौन सा अर्घ्य दूं
अक्षत मिश्रित जल का 
या प्रेम सिंचित नेह का 
यहाँ तो रोज ही 
अर्घ्य देती हूँ
व्रत रखती हूँ
और चाँद का दीदार करती हूँ
फिर कैसे उसे एक दिन के
बंधनों में जकड दूं 
मैने तो सुना है मोहब्बत का पारण कभी नही होता







एक उम्र गुजर गयी
कभी मिटटी का तेल लगाया 
तो कभी चूना लगाया
तो कभी विक्स लगायी
तो कभी लोंग की भाप देती रही
कृत्रिम तरीके आजमाती रही 
और खुद को बहलाती रही
और अपने पर इतराती रही
मगर इतना ना समझ पाई
जबकि हर बार हाथों में लगी
फीकी मेहँदी यही समझाती रही
कब तक खुद को बहलाओगी 
कब इतना समझ पाओगी
ज़बरदस्ती के रंग कब ठहरे हैं 
पोलिश कभी तो उतरती ही है
मगर यहाँ तो पोलिश भी नहीं 


25 टिप्‍पणियां:

  1. दोनो खयाल उम्दा भाव लिये हुए.
    कृत्रिमता से परे जो रंग चढेगा वह नहीं उतरेगा

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  2. बहुत बढ़िया प्रस्तुति ||
    शुभ-कामनाएं ||

    http://neemnimbouri.blogspot.com/2011/10/blog-post_15.html

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  3. हमारे घर में तो यह चांद देखने की रस्म ही नहीं निभाई जाती है। इसलिए आपकी रचना के दोनों ख़्याल अच्छे लगे।

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  4. दोनों करवा चौथ की कविताएँ अच्छी लगीं । दोनों में कितना विरोधाभास है । एक प्रेमरस में डूबी तो दूसरी वंचित ।

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  5. दोनों ख्याल बढ़िया है /// पहला वाला ज्यादा पसंद आया

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  6. vandna jee ,badhaayee . vrindaavan men bhee vishwaas ke vrat ke naam
    kuchh hai vo chaand ==

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  7. दोनों ही रचनायें बहुत ही भावुक कर देनेवाली.एक नई सोच-एक नई कल्पना.

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  8. रंग तो चढेगा ही. खूबसूरत बहुत सुंदर प्रस्तुति ||

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  9. बहुत ही अच्छी और भावपूर्ण रचना,बधाई!

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  10. दोनों ख्याल सुंदरता से अभिव्यक्त हुए है!

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  11. आप बताइए कि अगर मॉडरेशन का विकल्प हो,तो आप दोनों ख़्यालों में से किसे मॉडरेट करना चाहेंगी?

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  12. dono khyal apni apni jagah behtar hai
    bat to yeh hai ki apne sabd-bilom ka achchha dhyan diya


    madhu tripathiMM
    tripathi873@gmail.com
    http://kavyachitra.blogspot.com

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  13. दोनों कविताये एक से बढ़कर एक हैं... प्रीत का चाँद तो सदा भीतर जगमगाता ही रहता है कोई देखने वाला चाहिए और प्रीत की मेहँदी कभी फीकी पड़ती ही नहीं कोई लगाने वाला चाहिए... बाहर का चाँद और बाहर की मेहँदी तो उस भीतर वाले की याद दिलाने के लिये हैं...

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  14. बहुत सुन्दर भाव पूर्ण प्रस्तुति ..शुभकामनायें !!

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  15. लाजवाब कर दिया आपने...दोनों पक्ष बहुत सशक्त ढंग से प्रस्तुत किये हैं आपने...बधाई स्वीकारें

    नीरज

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  16. दोनों रचनाएं अलग अलग मूड को दर्शाती हैं ... और अपने आप में सच भी हैं ...

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