पेज

सोमवार, 21 नवंबर 2011

है प्रेम जगत में सार और कुछ सार नहीं

दोस्तों
आज बिंदु जी का बहुत चर्चित भजन लगा रही हूँ . इसकी दो पंक्तियाँ मैंने आदरणीय भोलाराम जी के ब्लॉग पोस्ट पर लगायी थीं तो उनकी तरफ से फरमाइश आई की पूरी पढवाइये तो सोचा आप सबको भी पढवानी चाहिए हो सकता है आप में से काफी लोगों ने पढ़ी हो ...........तो एक बार और सही.








है प्रेम जगत  में सार और कुछ सार नहीं
तू कर ले प्रभु से प्यार और कुछ प्यार नहीं
कहा घनश्याम ने उधो से वृन्दावन जरा जाना
वहाँ की गोपियों को ज्ञान का कुछ तत्व समझाना
विरह  की वेदना में वे सदा बेचैन रहती हैं
तडप कर आह भर कर और रो रोकर ये कहती हैं
है प्रेम जगत में सार...................................

कहा उधो ने हँसकर मैं अभी जाता हूँ वृन्दावन
ज़रा देखूं कि कैसा है कठिन अनुराग का बँधन
है कैसी गोपियाँ जो ज्ञान बल को कम बताती हैं
निरर्थक लोक  लीला का यही गुणगान गाती हैं
है प्रेम जगत में सार...................................

चले मथुरा से जब कुछ दूर वृन्दावन निकट आया
वहीँ से प्रेम ने अपना अनोखा रंग दिखलाया
उलझ कर वस्त्र में कांटे लगे उधो को समझाने
तुम्हारा ज्ञान  पर्दा फाड़ देंगे प्रेम दीवाने
है प्रेम जगत में सार...................................

विटप झुक कर ये कहते थे इधर आओ इधर आओ 
पपीहा कह रहा था पी कहाँ यह भी तो बतलाओ
नदी यमुना की  धारा शब्द हरि हरि का सुनाती थी
भ्रमर गुंजार से भी ये मधुर आवाज़ आती थी
है प्रेम जगत में सार......................................

गरज पहुंचे वहाँ था गोपियों का जिस जगह माडल
वहाँ थीं शांत पृथ्वी वायु धीमी थी निर्मल
सहस्त्रों गोपियों के मध्य में श्री राधिका रानी
सभी के मुख से रह रह कर निकलती थी यही वाणी 
है प्रेम जगत में सार.....................................

कहा  उधों ने यह बढ़कर कि मैं मथुरा से आया हूँ
सुनाता हूँ संदेसा श्याम का जो साथ लाया हूँ 
कि जब यह  आत्मसत्ता ही अलख निर्गुण कहाती  है
तो फिर क्यों मोह वश होकर वृथा यह गान गाती  है
है प्रेम जगत में सार.....................................

कह श्री राधिका ने तुम संदेसा खूब लाये हो
मगर ये याद रक्खों प्रेम की  नगरी में आये हो
संभालो योग की  पूँजी ना हाथों से  निकल जाए
कहीं विरहाग्नि में यह ज्ञान की  पोथी ना जल जाए
है प्रेम जगत में सार.................................

अगर निर्गुण हैं हम तुम कौन कहता है खबर किसकी?
अलख हम तुम हैं तो किस किस को लखती है नज़र किसकी 
जो हो अद्वैत के कायल तो फिर क्यों द्वैत लेते हो
अरे खुद ब्रह्म होकर ब्रह्म को उपदेश देते हो
है प्रेम जगत में सार...............................

अभी तुम खुद नहीं समझे कि किसको योग कहते हैं
सुनो इस तौर योगी द्वैत में अद्वैत रहते हैं 
उधर मोहन बने राधा  , वियोगिन की  जुदाई में
इधर राधा बनी है श्याम . मोहन की  जुदाई में
है प्रेम जगत में सार...................................

सुना जब प्रेम का अद्वैत उधो की  खुली आँखें
पड़ी थी ज्ञान मद की  धूल जिनमे वह धुली आंखें
हुआ रोमांच तन में बिंदु आँखों से निकल आया
गिरे श्री राधिका पग पर कहा गुरु मन्त्र यह पाया
है प्रेम जगत में सार...................................

34 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ...बहुत ही अनुपम भाव संयोजन करती अभिव्‍यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं





  2. आदरणीया वंदना जी
    सादर सस्नेहाभिवादन !

    बिंदु जीके इस सुंदर भजन को यहां प्रस्तुत करने के लिए आपको बहुत बहुत धन्यवाद !

    इस भजन सहित बिंदु जी के और भी बहुत सारे भजन मेरे गुरुतुल्य , मेरे शहर के वयोवृद्ध मधुर गायक शिरोमणि आदरणीय डॉ.रामेश्वर आनंद जी से वर्षों से सुनता आया हूं …

    अगर निर्गुण हैं हम तुम कौन कहता है खबर किसकी?
    अलख हम तुम हैं तो किस किस को लखती है नज़र किसकी
    जो हो अद्वैत के कायल तो फिर क्यों द्वैत लेते हो
    अरे खुद ब्रह्म होकर ब्रह्म को उपदेश देते हो
    है प्रेम जगत में सार...



    आभार और मंगलकामनाओं सहित…
    - राजेन्द्र स्वर्णकार

    जवाब देंहटाएं
  3. अभी तुम खुद नहीं समझे कि किसको योग कहते हैं सुनो इस तौर योगी द्वैत में अद्वैत रहते हैं उधर मोहन बने राधा , वियोगिन की जुदाई में इधर राधा बनी है श्याम . मोहन की जुदाई में है प्रेम जगत में

    बहुत खूबसूरत रचना ... गहन अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  4. योग और प्रेम की अनुभूति कराते सुंदर शब्द...बिन्दुजी का यह भजन सुंदर है उनका परिचय भी दीजिए.

    जवाब देंहटाएं
  5. ओह... अदभुत दृश्य आँखों के आगे छा गया

    जवाब देंहटाएं
  6. @ Anita JI
    बिन्दु जी के बारे मे मेरे पास सिर्फ़ इतनी जानकारी उपलब्ध है कि वो भारती भूषण कविता कलाधर , व्याख्यान वारिधि, साहित्य रत्न श्रि मानस हंस शिरोमणि आदि अनेक उपाधियो से विभूषित थे। गोस्वामी श्री बिन्दु जी महाराज रिसर्च स्कालर श्री राम चरित मानस के रहे हैं। उनके बारे मे यदि आप और जानकारी प्राप्त करना चाहे या ये पुस्तक मंगवाना चाहे तो मै प्रकाशक का नाम पता दे रही हूँ।

    व्यवस्थापक प्रेमधाम वृन्दावन (उत्तर प्रदेश) प्रेमधाम प्रेस वृन्दावन्।

    इस पुस्तक पर इतना ही पता लिखा है।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुभानाल्लाह.......है प्रेम जगत में.......गुनगुनाने को मन करता है......एक समां सा बांधती ये पोस्ट लाजवाब है |

    जवाब देंहटाएं
  8. प्रेम के जादुई भजन, बेहद खूबसूरत बधाई प्रस्तुतीकरण के लिए वंदना जी

    जवाब देंहटाएं
  9. वाह बहुत ही अनुपम प्रस्तुति |

    जवाब देंहटाएं
  10. सुन्दर रचना...गहन अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  11. गहरा असर हो रहा है इस भजन का ... बहुत सुन्दर...

    जवाब देंहटाएं
  12. निशब्द कर दिया आपकी रचना ने...बधाई स्वीकारें


    नीरज

    जवाब देंहटाएं
  13. स्नेहमयी वन्दना जी - पूरी रचना की प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ! गागर में ज्ञान का सागर है बिंदु जी की यह रचना ! निचोड़ है, मानवता के समग्र आध्यात्मिक चिंतन का ! इस रचना को पढ़ कर ,विशुद्ध मानव धर्म में प्रेम की अनिवार्यता के विषय में मेरी धारणा और भी पुष्टि हुई ! मेरा ज्ञान सम्वर्धन हुआ ! मैं इसे ज्यों का त्यों अपने संदेश में प्रकाशित करके इस प्रसंग का समापन करूँगा ! आभारी हूँ आपका

    जवाब देंहटाएं
  14. इस प्रस्तुति के लिए विशेष आभार!

    जवाब देंहटाएं
  15. sundar...ati sundar --क्या सुन्दर तर्क है..

    जो हो अद्वैत के कायल तो फिर क्यों द्वैत लेते हो अरे खुद ब्रह्म होकर ब्रह्म को उपदेश देते हो ...

    जवाब देंहटाएं
  16. कल 23/11/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, चलेंगे नहीं तो पहुचेंगे कैसे ....?
    धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  17. कहा उधो ने हँसकर मैं अभी जाता हूँ वृन्दावन ज़रा देखूं कि कैसा है कठिन अनुराग का बँधन है कैसी गोपियाँ जो ज्ञान बल ...

    इस अनोखे कृष्ण प्रेम को बहुत सहज ही इस भजन में उतार दिया है आपने ... अनुपम ... सुन्दर भक्ति-भाव लिए ...

    जवाब देंहटाएं
  18. आपकी प्रस्तुति के माध्यम से,प्रेम – रूपी,मोती पा लिया.
    प्रेम,विरह है,प्रेम सार है,अनुराग का बंधन कठिन है,प्रेम और ग्यान,नदी के दो किनारे हैं,
    जो कभी मिलते नहीं हैं----.

    जवाब देंहटाएं
  19. अभी तुम खुद नहीं समझे कि किसको योग कहते हैं
    सुनो इस तौर योगी द्वैत में अद्वैत रहते हैं
    उधर मोहन बने राधा , वियोगिन की जुदाई में
    इधर राधा बनी है श्याम . मोहन की जुदाई में

    आहा!! आदरणीय वंदना जी, क्या ही प्रवाह है इस भजन में... वाह!! तीन बार पढ़ चुका... वही आनंद हर बार....
    सचमुच....
    सादर आभार.....

    जवाब देंहटाएं
  20. प्रेम प्रेम सब कोउ कहत, प्रेम न जानत कोइ।
    जो जन जानै प्रेम तो, मरै जगत क्यों रोइ॥

    कमल तंतु सो छीन अरु, कठिन खड़ग की धार।
    अति सूधो टढ़ौ बहुरि, प्रेमपंथ अनिवार॥

    काम क्रोध मद मोह भय, लोभ द्रोह मात्सर्य।
    इन सबहीं ते प्रेम है, परे कहत मुनिवर्य॥

    बिन गुन जोबन रूप धन, बिन स्वारथ हित जानि।
    सुद्ध कामना ते रहित, प्रेम सकल रसखानि॥

    अति सूक्ष्म कोमल अतिहि, अति पतरौ अति दूर।
    प्रेम कठिन सब ते सदा, नित इकरस भरपूर॥

    प्रेम अगम अनुपम अमित, सागर सरिस बखान।
    जो आवत एहि ढिग बहुरि, जात नाहिं रसखान॥

    भले वृथा करि पचि मरौ, ज्ञान गरूर बढ़ाय।
    बिना प्रेम फीको सबै, कोटिन कियो उपाय॥

    दंपति सुख अरु विषय रस, पूजा निष्ठा ध्यान।
    इन हे परे बखानिये, सुद्ध प्रेम रसखान॥

    प्रेम रूप दर्पण अहे, रचै अजूबो खेल।
    या में अपनो रूप कछु, लखि परिहै अनमेल॥

    हरि के सब आधीन पै, हरी प्रेम आधीन।
    याही ते हरि आपु ही, याहि बड़प्पन दीन॥

    जवाब देंहटाएं
  21. अभी तुम खुद नहीं समझे कि किसको योग कहतेहैं
    सुनो इस तौर योगी द्वैत में अद्वैत रहते हैं
    उधर मोहन बने राधा , वियोगिन की जुदाई में
    इधर राधा बनी है श्याम . मोहन की जुदाई में

    सुन्दर भाव ..........

    जवाब देंहटाएं
  22. वाह प्रेम का मनोहारी चित्रण किया है
    बहत सुन्दर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  23. ह्रदय द्रवित कर देने वाली पंक्तियाँ

    जवाब देंहटाएं
  24. विशुद्ध प्रेम से ही भगवान को प्राप्त किया जा सकता है। बिना आत्म समर्पण के उस सत चित और आनंद स्वरूप का दर्शन संभव नहीं है।

    जवाब देंहटाएं

अपने विचारो से हमे अवगत कराये……………… …आपके विचार हमारे प्रेरणा स्त्रोत हैं ………………………शुक्रिया